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एक ऐसा विश्वविद्यालय, जहां कभी पढ़ने के लिए आते थे कई देशों के छात्र

Shiddhant Shriwas
28 July 2021 8:36 AM GMT
एक ऐसा विश्वविद्यालय, जहां कभी पढ़ने के लिए आते थे कई देशों के छात्र
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शिक्षा के मामले में आज भले ही भारत दुनिया के कई देशों से पीछे हो, लेकिन एक समय था, जब हिंदुस्तान शिक्षा का केंद्र हुआ करता था।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। शिक्षा के मामले में आज भले ही भारत दुनिया के कई देशों से पीछे हो, लेकिन एक समय था, जब हिंदुस्तान शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। भारत में ही दुनिया का पहला विश्वविद्यालय खुला था, जिसे नालंदा विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में हुई थी, लेकिन सन् 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था।

बिहार के नालंदा में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आते थे। इस विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस और तुर्की से आते थे। यहां करीब दो हजार शिक्षक पढ़ाते थे। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम (450-470) ने की थी। नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह चुका है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आते हैं।


प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में तीन सौ कमरे, सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौ मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था, जिसमें तीन लाख से भी अधिक किताबें थीं।


इस विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन होती थी। इसमें सिर्फ प्रतिभाशाली छात्र ही प्रवेश पा सकते थे। इसके लिए उन्हें तीन कठिन परीक्षा स्तरों को उत्तीर्ण करना होता था।


प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो अब नष्ट हो चुकी हैं। नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें इतनी चौड़ी हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है।


सन् 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया। कहते हैं कि यहां के पुस्तकालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग धधकती रही थी। इसके अलावा उसने कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला था।






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