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संस्कृत के बिलुप्ट होते खजाने
जब भी संस्कृत की बात होती है तो आपको धार्मिक कार्यक्रमों में बोले जाने वाले मंत्र या कोई पंडित जी याद आते होंगे. दरअसल, होता क्या है कि अक्सर हमें सिर्फ पंडित जी के मंत्रों में ही संस्कृत सुनाई देने को मिलती है. इसके अलावा संस्कृत का इस्तेमाल आम जीवन में काफी कम है. लेकिन, भारत में एक ऐसी जगह है, जहां संस्कृत सिर्फ मंत्रों की ही नहीं, बल्कि आम बोलचाल की भाषा है. आपको क्षेत्रीय भाषा, हिंदी, अंग्रेजी बोलने वाले कई लोग मिले होंगे, लेकिन संस्कृत बोलने वाले कम ही लोग मिलते हैं, इस वजह से संस्कृत की बातचीत की रिपोर्ट हैरान कर देने वाली है.
ऐसे में जानते हैं कि वो कौन-कौन सी जगह हैं, जहां लोग आम बोलचाल में भी संस्कृत में ही बात करते हैं. जानिए आखिर वहां ऐसा क्यों किया जाता है और उस गांव का क्या माहौल है…
संस्कृत है अपने आप में खास
वैसे आपको बता दें कि संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है. कहा जाता है कि यह भाषा 3500 साल से भी पुरानी है. सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी इसका काफी जगह जिक्र है यानी इन धर्मों के कई दस्तावेज संस्कृत में ही मिलते हैं. एक रिपोर्ट में कई तथ्य ऐसे सामने आए हैं, जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. बताया जाता है कि संस्कृत का सिर्फ 5 फीसदी हिस्सा ही धार्मिक टेक्स्ट के लिए इस्तेमाल किया गया है, इसके अलावा मेडिसिन, साइंस, गणित, फिलोसॉपी में 95 फीसदी संस्कृत का इस्तेमाल किया गया है.
कहां है संस्कृत का बोलबाला?
भारत का ये गांव संस्कृत के बिलुप्ट होते खजाने को बचाने का प्रयास कर रहा है. इस जगह का नाम है मत्तुर, जो कर्नाटक में है. मत्तुर ऐसा गांव है, जहां के लोग आम बोलचाल में संस्कृत का इस्तेमाल करते हैं. मत्तुर सांकेथिक्स वर्ग के लोग रहते हैं, जो केरल से आए हैं. ये लोग संस्कृत में ही बात करते हैं. यह गांव चोकोर है और गांव के बीच में एक पेड़ और मंदिर है. ये लोग वैदिक लाइफ जीते हैं और वेद आदि पढ़ते हैं.
रिपोर्ट्स के अनुसार, मंदिर में सब्जी बेचने वाले से लेकर मॉडर्न युवा तक सभी लोग संस्कृत में बात करते हैं. दरअसल, यहां संस्कृत को लेकर वर्कशॉप लगाई गई थी और वहां से यहां संस्कृत का विकास होता रहा और लोगों ने इसे आपसी भाषा के रूप में स्वीकार किया है. इसका नतीजा ये है कि यहां हर कोई संस्कृत में बात कर रहा है. यहां वेदिक पढ़ाई भी करवाई जाती है. इतना ही देश के ही नहीं, बाहर के लोग भी यहां संस्कृत पढ़ना पसंद करते हैं. साथ ही इसे बचाने की कोशिश करते हैं.
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