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भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने इतिहास और अपनी प्रचीन परंपराओं के साथ अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं
भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपने इतिहास और अपनी प्रचीन परंपराओं के साथ अपनी वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध हैं. इन मंदिरों आज भी नवीन तकनीकी और विज्ञान की सुविधाओं के बाद भी इस प्रकार की वास्तुकला को हकीकत में उतार पाना बहुत ही मुश्किल है. इसी कड़ी में आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं है.
हम बात कर रहे हैं एलोरा के कैलाश मंदिर की जिसे बनाने में मात्र 18 वर्षों का समय लगा. लेकिन जिस तरीके से यह मंदिर बना है. जबकि पुरातत्वविज्ञानियों की मानें तो 4लाख टन पत्थर को काटकर किए गये इस मंदिर का निर्माण इतने कम समय में संभव ही नहीं है. उनकी मानें तो अगर 7हजार मजदूर डेढ़ सौ वर्षों तक दिन-रात काम करें तो ही इस मंदिर का निर्माण हो सकता है. जो कि नामुमकिन सी बात है.
एलोरा की गुफाओं में है ये मंदिर
यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एलोरा की गुफाओं में. यह मंदिर मात्र एक चट्टान को काटकर और तराशकर बनाया गया है. महाराष्ट्र के औरंगाबाद की एलोरा की गुफाओं में. यह मंदिर मात्र एक चट्टान को काटकर और तराशकर बनाया गया है.
कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में करीब 40 हजार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था. इस मंदिर में देश-विदेश से सैकड़ों लोग दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां एक भी पुजारी नहीं है. आज तक कभी पूजा नहीं हुई. यूनेस्को ने 1983 में ही इस जगह को 'विश्व विरासत स्थल' घोषित किया है.
कहते हैं कि इसे बनवाने वाले राजा का मानना था कि अगर कोई इंसान हिमालय तक नहीं पहुंच पाए तो वो यहां आकर अपने अराध्य भगवान शिव का दर्शन कर ले. इस मंदिर का निर्माण कार्य मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (757-783 ई.) ने शुरु करवाया था. और करीब 7000 मजदूरों ने दिन-रात एक करके इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था.
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