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अक्सर ऐसा कहा जाता है कि कुछ लोग इतिहास बनाते हैं और कुछ इतिहास बन जाते हैं
अक्सर ऐसा कहा जाता है कि कुछ लोग इतिहास बनाते हैं और कुछ इतिहास बन जाते हैं. तारीख के इस दौर में अक्सर उन्हीं लोगों के ही किस्से दोहराए जाते हैं. इस कड़ी में आज हम आपको ठगी की दुनिया के एक ऐसे व्यक्ति का किस्सा बताने जा रहे हैं जो ठगी और चोरी का प्रतीक बन चुका है.
हम बात कर रहे हैं नटवरलाल की. वैसे तो उसका वास्तविक नाम मिथलेश कुमार श्रीवास्तव था. लेकिन लोगों कहना है कि इस शख्स ने चोरी और ठगी के लिए 50 से भी ज्यादा नकली नाम रखे थे. इन्हीं नामों के सहारे वह कई सारी ठगी को अंजाम देता था. वो एक ऐसा ठग था जो देश की बड़ी-बड़ी जेलों से 8 बार भागने में कामयाब रहा.
फर्जी हस्ताक्षर करने में माहिर था ये शख्स
कहते है ये ठग फर्जी हस्ताक्षर करने में माहिर था. नटवरलाल ने चोरी की शुरुआत 1 हजार रुपये से की उसने यह 1 हजार रुपए पड़ोसी के नकली हस्ताक्षर करके उसके बैंक से निकाले थे. नटवरलाल का हुनर ऐसा था कि वह एक ही नजर में किसी के भी हस्ताक्षर कर लेता था.
इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि नटवरलाल ने नकली चेक और डिमांड ड्राफ्ट देकर कई दुकानदारों से लाखों रुपए ऐंठे. 70, 80 और 90 के दशक में इसका नाम पूरे भारत में लोकप्रिय हुआ. इस ठग पर 100 से ज्यादा ठगी के केस दर्ज हुए और 8 राज्यों की पुलिस उसकी तलाश में थी. वह पकड़ा भी गया और उसे जेल की सजा भी हुई. लेकिन, देश की कोई भी जेल नटवरलाल को रोक नहीं पाई.
कई बार राष्ट्रपति भवन, लाल किला, ताजमहल और संसद बेच चुका था
ऐसा कहा जाता है कि नटवरलाल रंगबाज इंसान था. उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में अच्छे से अच्छा बुद्धिमान आदमी फंस जाता था. इस हुनर के कारण उसने कई बड़े व्यापारियों को उसने चूना लगाया. आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन यह बात सच है कि नटवरलाल ने कई मर्तबा ताज महल और लाल-किले को बेचा था. नटवरलाल ने बड़ा सरकारी अफसर बनकर विदेशियों को तीन बार ताजमहल, दो बार लालकिला, एक बार राष्ट्रपति भवन और एक बार संसद भवन तक बेच दिया था.
कहते हैं, एक बार पड़ोस के गांव में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद आए हुए थे. नटवरलाल को उनसे मिलने का मौका मिला. नटवरलाल ने उनके सामने भी अपने हुनर का प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति के भी हुबहू हस्ताक्षर करके सबको हैरान कर दिया. नटवरलाल ने राष्ट्रपति से कहा कि यदि आप एक बार कहें तो मैं भारत पर विदेशियों का पूरा कर्ज चुका सकता हूं और वापस कर उन्हें भारत का कर्जदार बना सकता हूं.
2004 में नटवरलाल का नाम अंतिम बार आया था. इस दौरान एक वकील ने बताया कि नटवर लाल ने अपनी वसीयतनामा उसको दी है. नटवर लाल की मृत्यु कब और कैसे हुई? ये राज से अब तक पर्दा नहीं उठ पाया है. हालांकि,कई लोगों का कहना है कि उसकी मृत्यु 2009 में हुई थी. वहीं उसके परिजनों का दावा है कि नटवरलाल 1996 में ही मर गया था.
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