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सरकार द्वारा यह भी चेतावनी जारी की गई कि कोई भी व्यक्ति दिन ढलने के पश्चात इस स्थान पर ना रुके।
देवी-देवताओं की भूमि है भारत। यहाँ हर नगर अपनी पौराणिक इतिहास की गाथा को बयां करता है। इन्हीं स्थानों में से एक है धनुषकोटि। यह वही धनुषकोटि है जिसका रामायण में भी वर्णन है। इस धार्मिक स्थान की साथर्कता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हिन्दू धर्म में धनुषकोटि को पवित्र स्थानों में से एक माना गया है। यह स्थान भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर स्थित रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी भाग पर स्थित छोटा सा शहर है।
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लंका विजय के बाद भगवान राम ने उस राज्य का शासन विभीषण को सौंप दिया था। राजा बनने के बाद विभीषण ने प्रभु राम से यह निवेदन किया कि वे लंका तक आने वाले रामसेतु को तोड़ दें। राम ने निवेदन को स्वीकारते हुए अपने धनुष के एक छोर से सेतु को तोड़ दिया।तभी से उस स्थान को धनुषकोटि कहा जाता है. धनुषकोटि ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है।
रावण को एक नकारात्मक शक्ति के रूप में जाना जाता है लेकिन इसके अतिरिक्त वह एक महान ज्योतिषशास्त्री और शिव भक्त था। धनुषकोटि के विषय में यह कथा प्रचलित है कि रावण से युद्ध में विजय के पश्चात भगवान राम ने ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए यहाँ यज्ञ किया था।
जहाँ एक ओर धनुषकोटि धार्मिक स्थलों में सबसे पवित्र स्थान के रूप लोग जानते हैं वहीं दूसरी ओर इसे भूतिया स्थान के रूप में भी देखा जाता है। यहां प्रेत-आत्माओं को महसूस किए जाने के दावे किए गए हैं। इन दावों के पीछे का कारण है 1964 में यहां आया भयंकर चक्रवात है। जिसने धनुषकोटि की खूबसूरती को हमेशा के लिए मातम में बदल दिया था।
1964 में आया चक्रवात से पहले धनुषकोटि की खूबसूरती और पौराणिक महत्व था। इस भयंकर चक्रवात के दौरान 20 फीट की ऊंची लहर ने पूरे शहर को तबाह कर दिया। 8 गज उची चक्रवात में करीब 1800 लोग मारे गए।
इस आपदा के बाद यहां आने वाले लोगों ने कई अजीबोगरीब हलचलें महसूस की। लोगों का कहना है कि इस स्थान पर हमेशा किसी के होने का आभास होता है। तमिलनाडु सरकार ने इस स्थान को भूतिया करार देकर इसे रहने के लिए अयोग्य करार दे दिया है।सरकार द्वारा यह भी चेतावनी जारी की गई कि कोई भी व्यक्ति दिन ढलने के पश्चात इस स्थान पर ना रुके।
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