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फुटबॉलर बिना स्किल के भी बना रहा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी
जो लोग खेल जगत से जुड़े होते हैं उनका बस यही सपना होता है कि वो अपने खेल में सबसे बेस्ट बन जाएं. उनकी खूब पूछ हो, उनके बारे में देश-दुनिया में चर्चे शुरू हो जाएं और फिर उनकी तगड़ी कमाई भी होने लगे. पिछले काफी वक्त से दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी फुटबॉल का क्रेज सिर चढ़कर बोल रहा है. रोनाल्डो-मेसी (Ronaldo-Messi) को देखकर लोग फुटबॉलर बनना चाहते हैं, मैदान पर अच्छी परफॉर्मेंस देना चाहते हैं मगर एक शख्स 12 साल से फुटबॉल (Footballer never played single match) की दुनिया से जुड़ा था मगर एक भी मैच नहीं खेला.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कार्लोस हेनरीक रापोसा (Carlos Henrique Raposo) के बारे में जिसे लोग कार्लोस कायजार (Carlos Kaiser) के नाम से भी जानते थे. कहने को तो कार्लोस ब्राजील (Brazilian footballer never played match) का बेहद फेमस फुटबॉलर था मगर चौंकाने वाली बात ये है कि सालों के संबे करियर में उसने एक भी मैच नहीं खेला. यहां तक कि चलते मैच के बीच एक बार भी बॉल को नहीं छुआ मगर अपने वक्त का बेहद फेमस फुटबॉलर बना रहा.
बिना स्किल के भी बना रहा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी
कार्लोस को फुटबॉल की दुनिया में ठग के तौर पर जाना जाता है जिसने हर किसी को ठगा और सबको ये यकीन दिला दिया कि वो सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी है लेकिन असल में उसका फुटबॉल खेलने का हुनर इतना आम था कि वो टीम में रहने लायक ही नहीं था. शख्स के फुटबॉल स्किल तो अच्छे नहीं थे मगर लोगों से जुड़ने का और उन्हें अपनी तरफ झुका लेने का हुनर इतना था कि उसने टीम से लेकर पत्रकारों और कई सीनियर खिलाड़ियों को भी अपनी तरफ कर लिया था. उनके जरिए ये बात फैलती चली गई कि कार्लोस फुटबॉल के जादूगर हैं.
नाटक कर के खुद को मैच खेलने से रोका
वो ब्राजील के फेमस क्लब फ्लैमेंगो से जुड़े थे. फिर 1979 में ब्राजील से बाहर जाकर मेक्सिकन क्लब प्यूबेला से भी जुड़े. मगर एक भी गेम खेले बिना ही क्लब चेंज कर दिया. इसके बाद वो वापिस ब्राजील आए और कई क्लब्स में छोटे-छोटे कॉन्ट्रैक्ट किए. इसके बाद वो हर टीम को यही कहते कि उन्हें शेप में आने के लिए सिर्फ 5 हफ्ते का वक्त चाहिए. उसे 5 हफ्ते में वो अपनी ट्रेनिंग से क्लब को इंप्रेस कर लेते. इसके बाद जब प्रैक्टिस मैच होते तो वो चोट लगने का नाटक करने लगते और खेल से बाहर हो जाते. इस तरह वो अपने बेकार हुनर और फुटबॉल में नौसिखिये पन को छुपा लेते थे. उस दौरान ऐसी तकनीक भी नहीं बनी थी जो ये जांच कर पाए कि खिलाड़ी सच बोल रहे हैं या झूठ. इस तरह वो हमेशा खेलने से बचते रहे. एक बार बांगू नाम के क्लब के लिए खेलते वक्त वो असली मैच में खेलने के बहुत करीब आ गए थे मगर तब उन्होंने जानबूझकर दूसरी टीम के सदस्य से लड़ाई कर ली जिसके चलते उन्हें रेड कार्ड मिल गया.
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