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जेब्रा को देखने के बाद कभी सोचा है कि इसकी स्किन काली है या सफेद
जेब्रा को देखने के बाद कभी सोचा है कि इसकी स्किन काली है या सफेद. इसके शरीर पर मौजूद इन काली-सफेद पट्टियों का रोल क्या है? विज्ञान कहता है, इसके पीछे की वजह है शरीर में मौजूद पिंगमेंट, जो तय करता है कि जेब्रा की स्किन का रंग. लेकिन इसकी बनावट इतनी अलग क्यों है और इससे जेब्रा को क्या फायदा होता है, यह समझने की जरूरत है. जानिए इसके पीछे का विज्ञान…
लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, जेब्रा की स्किन का रंग ब्लैक होता है. इस काले रंग के लिए जिम्मेदार होती हैं मिलेनोसाइट्स कोशिकाएं. यह कोशिकाएं मिलेनिन नाम के पिगमेंट का निर्माण करती हैं. यह पिगमेंट जिस भी हिस्से में होता है वहां का रंग काला होता है. जेब्रा की स्किन में यह काफी मात्रा में बनता है इसलिए उसके पूरे शरीर का रंग काला होता है.
अब बात करते हैं जेब्रा के शरीर पर बनीं सफेद रंग की स्ट्रिप की. विज्ञान कहता है, जेब्रा की स्किन का रंग तो काला होता है लेकिन इस पर उगने वाले फर यानी रोएं का रंग सफेद होता है. ऐसा होने की भी वजह है. दरअसल, यह मिलेनोसाइट्स के जिस हिस्से से निकलते हैं वहां मिलेनिन पिगमेंट नहीं मौजूद होता, इसलिए इनका रंग सफेद होता है.
अब समझते हैं, जेब्रा के शरीर पर बनीं स्ट्रिप इसके लिए कितनी काम की हैं. जेब्रा स्ट्रिप पर हंगरी की इवोव्स लॉरेंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने रिसर्च की है. रिसर्च कहती है, ये धारियां जेब्रो को हॉर्सफ्लाय से बचाती हैं जो खून पीने का काम करती हैं. जब भी जेब्रा रोशनी में खड़ा होता है तो प्रकाश की किरणें इसकी सफेद धारियों से परावर्तित यानी रेफ्लेक्ट हो जाती है जिससे हॉर्सफ्लाई भ्रमित हो जाती है और अपने शिकार को नहीं पहचान पाती.
इवोव्स लॉरेंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि रिसर्च की पुष्टि करने के लिए यह प्रयोग किया गया. इसके लिए इंसानी पुतलों के शरीर पर ऐसी काली, सफेद और भूरी धारियां बनाई गईं. रिसर्च के दौरान यह देखा गया हॉर्सफ्लाई सफेद पुतलों से दूर रहीं। सफेद के मुकाबले भूरे रंग के पुतले की ओर हॉउसफ्लाई 10 गुना ज्यादा ज्यादा आकर्षित हुईं।
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