उसे अंदाज नहीं था कि ये खुशबु बिखेरता हुआ कठोर अपशिष्ट है क्या लेकिन जब उसने इसका पता किया तो पता लगा कि उसके हाथ एक खजाना लग गया. उसका ये 04 किलो का गोबरनुमा महकमा हुआ पत्थर 210,000 डॉलर यानि 1.5 करोड़ रुपए में बिका. दरअसल ये गोबरनुमा पत्थर व्हेल की उल्टी थी. जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मंहगी बिकती है. अब इस शख्स की जिंदगी बदल चुकी है. ताइवान न्यूज साइट ने पिछले दिनों इस पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की
क्या आपको मालूम है कि व्हेल मछली की उल्टी सोने से भी ज्यादा महंगी बिकती है. जहां जहां व्हेल मछलियां दिखती हैं, वहां कुछ ऐसे लोग भी नजर आने लगते हैं कि व्हेल मछली उल्टी करे और वो उसके ठोस रूप को हासिल करके बाजार में बेच दें.
पिछले दिनों मुंबई और देश के कई हिस्सों में छापे में व्हेल मछली के ठोस उल्टी बरामद किए जाने की खबरें मीडिया में जोरशोर से आईं थी. जिनकी कीमत करोड़ों में आंकी गई थी. कई ऐसी खबरें भी गाहे-बगाहे प्रकाशित हुईं हैं जिसमें व्हेल मछली की उल्टी ने गरीब मछुआरों की जिंदगी बदल कर रख दी.
भारत में कोंकण तट पर पिछले कुछ समय में व्हेल मछलियों का आना जाना शुरू हुआ है और वहां भी तमाम ऐसे लोग देखे जाने लगे हैं जो तट के किनारे या समुद्र के तट के करीबी छोर में नीचे की ओर डूबकी लगाकर व्हेल की उल्टी का ठोस रूप खोजते हैं. माना जाता है कि व्हेल की उल्टी कुछ ही समय में ठोस पत्थर का रूप ले लेती है. फिर ये जितनी पुरानी होती जाती है, उतनी ही बेशकीमती भी हो जाती है.
आखिर यह पत्थर है क्या?
कई वैज्ञानिक इसे व्हेल की उल्टी बताते हैं तो कई इसे मल बताते हैं. यह व्हेल के शरीर के निकलने वाला अपशिष्ट होता है जो कि उसकी आंतों से निकलता है और वह इसे पचा नहीं पाती है. कई बार यह पदार्थ रेक्टम के ज़रिए बाहर आता है, लेकिन कभी-कभी पदार्थ बड़ा होने पर व्हेल इसे मुंह से उगल देती है. वैज्ञानिक भाषा में इसे एम्बरग्रीस कहते हैं.
एम्बरग्रीस व्हेल की आंतों से निकलने वाला स्लेटी या काले रंग का एक ठोस, मोम जैसा ज्वलनशील पदार्थ है. यह व्हेल के शरीर के अंदर उसकी रक्षा के लिए पैदा होता, ताकि उसकी आंत को स्क्विड(एक समुद्री जीव) की तेज़ चोंच से बचाया जा सके.
आम तौर पर व्हेल समुद्र तट से काफी दूर ही रहती हैं, ऐसे में उनके शरीर से निकले इस पदार्थ को समुद्र तट तक आने में कई साल लग जाते हैं. सूरज की रोशनी और नमकीन पानी के संपर्क के कारण यह अपशिष्ट चट्टान जैसी चिकनी, भूरी गांठ में बदल जाता है, जो मोम जैसा महसूस होता है.
व्हेल की पेट से निकलने वाली इस एम्बरग्रीस की गंध शुरुआत में तो किसी अपशिष्ट पदार्थ की ही तरह होती है, लेकिन कुछ साल बाद यह बेहद मीठी हल्की सुगंध देता है. इसे एम्बरग्रीस इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह बाल्टिक में समुद्र तटों पर मिलने वाले धुंधला एम्बर जैसा दिखता है. यह इत्र के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है और इस वजह से काफी कीमती होता है. इसकी वजह से इत्र की सुगंध काफी समय तक बनी रहती है. इसी वजह से वैज्ञानिक एम्बरग्रीस को तैरता सोना भी कहते हैं. इसका वज़न 15 ग्राम से 50 किलो तक हो सकता है.
परफ्यूम के अलावा कहां इस्तेमाल?
एम्बरग्रीस ज्यादातर इत्र और दूसरे सुगंधित उत्पाद बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. एम्बरग्रीस से बना इत्र अब भी दुनिया के कई इलाकों में मिल सकता है. प्राचीन मिस्र के लोग एम्बरग्रीस से अगरबत्ती और धूप बनाया करते थे. वहीं आधुनिक मिस्र में एम्बरग्रीस का उपयोग सिगरेट को सुगंधित बनाने के लिए किया जाता है. प्राचीन चीनी इस पदार्थ को "ड्रैगन की थूकी हुई सुगंध" भी कहते हैं.
यूरोप में ब्लैक एज (अंधकार युग) के दौरान लोगों का मानना था कि एम्बरग्रीस का एक टुकड़ा साथ ले जाने से उन्हें प्लेग रोकने में मदद मिल सकती है. ऐसा इसलिए था क्योंकि सुगंध हवा की गंध को ढक लेती थी, जिसे प्लेग का कारण माना जाता था.
इस पदार्थ का भोजन का स्वाद बढ़ाने के और कुछ देशों में इसे सेक्स पावर बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. मध्य युग के दौरान यूरोपीय लोग सिरदर्द, सर्दी, मिर्गी और अन्य बीमारियों के लिए दवा के रूप में एम्बरग्रीस का उपयोग करते थे.