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इस देश में है नरक का द्वार, दशकों से गड्ढे में धधक रही हैं आग की लपटें

Gulabi
2 Jun 2021 8:35 AM GMT
इस देश में है नरक का द्वार, दशकों से गड्ढे में धधक रही हैं आग की लपटें
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नरक का द्वार

लोगों के मन में नरक के द्वार (Door To Hell) को लेकर कई सवाल हैं. दुनियाभर के असंख्य दरवाजों में नर्क का द्वार (Door To Hell) ही एकमात्र ऐसा है, जिसे किसी ने देखा नहीं है लेकिन उसके लिए मन में उत्सुकता खूब है. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि दुनिया में वास्तव में नरक का दरवाजा है तो क्या आप यकीन करेंगे? दरअसल, तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan) के काराकुम रेगिस्तान (Karakum Desert) को नरक का दरवाजा माना जाता है.

अजीब देश है तुर्कमेनिस्तान
पूरा देश कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) से जूझ रहा है. पिछले साल कोरोना की खबरों के बीच तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan News) से एक बिल्कुल अलग तरह की खबर सामने आई थी. वहां कोरोना (Coronavirus) शब्द बोलने तक पर पाबंदी थी और सरकारी दावा था कि देश में एक भी कोरोना केस नहीं है. यह बात काफी अजीब थी लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें, तुर्कमेनिस्तान में मौजूद काराकुम रेगिस्तान (Karakum Desert Fire) में उससे भी ज्यादा रहस्यमयी (Weird) चीज है.
नरक के दरवाजे से निकलती है आग
तुर्कमेनिस्तान के काराकुम रेगिस्तान (Karakum Desert) में दरवाजा (Darwaza Gas Crater) नाम का एक गड्ढा है. इसमें पिछले 5 दशकों से आग धधक रही है (Karakum Desert Fire). पूरी दुनिया में इसे नरक का दरवाजा (Door To Hell) कहा जाता है. यह गड्ढा दरअसल एक गैस क्रेटर (Natural Gas Crater) है, जिसमें से मीथेन गैस (Methane Gas) की वजह से आग निकल रही है. अपने इसी रहस्य के चलते यह जगह सैलानियों के लिए बड़ा आकर्षण है.
दूसरे विश्व युद्ध में बना था नरक का द्वार
तुर्केमेनिस्तान पहले सोवियत संघ का हिस्सा था. सत्तर के दशक की शुरुआत में यहां प्राकृतिक गैस (Natural Gas Reserve) के बड़े भंडार का पता लगा था. तब रूस दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद आई आर्थिक कमजोरी से जूझ रहा था. इसे दूर करने में गैस के भंडार (Gas Reserve) से मदद मिल सकती थी. प्राकृतिक गैस निकालने की होड़ में साल 1971 में यहां बड़ा विस्फोट हो गया. इस विस्फोट से वह गड्ढा बना, जिसे आज डोर टू हेल (Door To Hell) कहते हैं.
हादसे में मीथेन गैस के फैलाव को रोकने के लिए वैज्ञानिकों ने एक तरीका आजमाया. उन्होंने गड्ढे के सिरे पर आग लगा दी. वैज्ञानिकों का अनुमान था कि गैस के खत्म होते ही आग बुझ जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आज पूरे 50 साल बीतने के बाद भी आग वैसे ही जल रही है.
काफी ऊंचाई तक दिखती हैं लपटें
जिस गड्ढे में आग जल रही है, वह 229 फीट चौड़ा है और उसकी गहराई तकरीबन 65 फीट है. इससे जलने पर निकलने वाली मीथेन और सल्फर की बदबू काफी दूर तक फैली रहती है. यह आग इतनी भयानक है कि इसकी लपटें कई मीटर की ऊंचाई तक उठती रहती हैं. साथ ही गड्ढे के भीतर खौलती हुई मिट्टी भी दिखाई देती है.
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