जरा हटके

ध्रुवों पर रंगीन रोशनी, मन का भ्रम या ब्रह्मांड का रहस्य? मशहूर वैज्ञानिक ने किया इन आवाजों को सुने जाने का दावा

Gulabi
8 Oct 2021 7:19 AM GMT
ध्रुवों पर रंगीन रोशनी, मन का भ्रम या ब्रह्मांड का रहस्य? मशहूर वैज्ञानिक ने किया इन आवाजों को सुने जाने का दावा
x
मन का भ्रम या ब्रह्मांड का रहस्य?

कैंब्रिज: धरती के ध्रुवों पर आसमान को रंगीन होता देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। यह नजारा देखने में तो दिलकश होता है लेकिन क्या इस दौरान कुछ खास आवाजें भी आती हैं? इस बात पर वैज्ञानिक असहमत रहे हैं लेकिन साल 2016 में फिनलैंड में की गई एक स्टडी में दावा किया गया है कि Northern Lights या ऑरोरा के दौरान ऐसी आवाजें निकलती हैं जो इंसान को सुनाई दे सकती हैं। एक रिसर्चर ने रिकॉर्डिंग भी बनाई है जिसमें यह आवाज सुनने का दावा किया गया है। अभी यह नहीं साफ है कि ऐसा मुमकिन कैसे है?

20वीं शताब्दी से चर्चा
द कन्वर्जेशन के मुताबिक रिसर्चर फियोना ऐमरी ने अपनी रिसर्च में इस आवाज का पता लगाने की कोशिश की है। उनके मुताबिक 20वीं शताब्दी में इसे लेकर काफी चर्चा रहा करती थी जब उन इलाकों में रहने वाले लोग रोशनी के साथ आवाज सुनने का दावा करते थे। कुछ लोग इसे अजीब सा बताते भी थे। खासकर तब जब रोशनी ज्यादा तेज और सक्रिय होती थी। कुछ लोग इसे रेशन जैसा तो कभी लकड़ी के रगड़ने जैसा बताते थे।
धरती के पास आती हैं आवाजें
ऐसी ही खबरें कनाडा और नॉर्वे से आती थीं। कहा जाता था कि जो रोशनी कम ऊंचाई पर रहती थी, उससे आवाज सुनने की ज्यादा संभावना रहती थी। वहीं, साल 1932-1933 के बीच ऑरोरा ज्यादातर धरती से 100 किमी ऊपर रहे और बहुत ही कम 80 किमी तक आए। ऐसे में यह नामुमकिन समझा गया कि धरती की तरह तक रोशनी से ऐसी आवाज ट्रांसमिट हो सके जिसे सुना जा सके। इस वजह से ज्यादातर वैज्ञानिक इस पर शक करते रहे। यही कहा जाता रहा कि यह लोगों के मन का भ्रम है।
धरती की तरह ही कई दूसरे ग्रहों के ध्रुवों पर भी ये दिखाई देते हैं। बृहस्पति की मैग्नेटिक फील्ड धरती से 20 हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली है। इसलिए यहां बनने वाले Aurora भी ज्यादा एनर्जी वाले होते हैं। बृहस्पति के Aurora से X-Ray भी निकलती हैं। बृहस्पति के चांद Io से निकलने वाले इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड सल्फर और ऑक्सिजन आयन से बनती हैं। स्टडी के सह-रिसर्चर झॉन्गहुआ याओ ने Space.com को बताया कि यह पूरी प्रक्रिया क्या होती है, इसे करीब 40 साल से वैज्ञानिक समझने की कोशिश कर रहे थे। इसके लिए रिसर्चर्स ने बृहस्पति का चक्कर काट रहे NASA के Juno प्रोब की मदद ली और इसके चुंबकीय क्षेत्र को स्टडी किया।
इसके साथ ही, धरती का चक्कर काट रहे यूरोपियन स्पेस एजेंसी के XMM-Newton टेलिस्कोप की मदद से बृहस्पति की एक्स-रेज का अनैलेसिस किया। Space.com के मुताबिक बृहस्पति के हर Aurora से इतनी ऊर्जा निकलती है जो धरती पर कोई एक पावर स्टेशन कई दिन में बनाएगा। ये एक्स-रे Aurora घड़ी की तरह लगातार बीट्स पर चलती हैं। ये बीट्स कुछ मिनट की होती हैं और कई घंटों तक रहती हैं। वैज्ञानिकों ने पाया है कि ये एक्स-रेज बृहस्पति की मैग्नेटिक फील्ड लाइन्स में होने वाले vibration (कंपन) की वजह से बनती हैं।
वाइब्रेशन की वजह से प्लाज्मा जनरेट होता है जो हेवी आयन्स को मैग्नेटिक फील्ड लाइन्स पर पहुंचा देता है। वहां से वायुमंडल से टकराने पर ये एक्स-रे की शक्ल में ऊर्जा रिलीज करती हैं। ऐसे ही प्लाज्मा की तरंगों के कारण धरती पर Aurora बनता है। स्टडी के को-लीड विलियम डन ने Space.com को बताया कि ऐसा लगता है कि बृहस्पति की विशालता के बावजूद Aurora बनने की प्रक्रिया एक सी ही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतरिक्ष के पर्यावरण की प्रक्रियाएं एक सी ही होती हैं। ये स्टडी साइंस अडवांसेज जर्नल में छपी है।
वैज्ञानिक ने किया दावा
मशहूर वैज्ञानिक कार्ल स्टॉर्मर ने अपने दो असिस्टेंट्स के हवाले से इन आवाजों को सुने जाने का दावा किया। इसके बाद इसे गंभीरता से लिया जाने लगा। उनके असिस्टेंट हांस का कहना था कि उन्हें सीटी जैसी आवाज सुनाई दी जो ऑरोरा के साथ चल रही थी। वहीं, दूसरे असिस्टेंट जॉन ने जलती हुई घास या स्प्रे जैसी आवाज सुनी। हालांकि, बावजूद इसके यह साफ नहीं हो सका कि इस रोशनी से आवाज निकल कैसे सकती है।
क्या हो सकती है वजह?
कुछ हद तक इसका जवाब मिल सकता है कनाडा के ऐस्ट्रॉनमर क्लैरेंस चांट की थिअरी में। उनके मुताबिक ऑरोरा धरती के चुंबकीय क्षेत्र में ऐसे बदलाव करता है जिससे वायुमंडल में विद्युतिकरण होता है और धरती के पास इसकी आवाज सुनाई देती है। यह आवाज किसी ऑब्जेक्ट, जैसे कपड़ों या चश्मे या पेड़ों से टकराने पर पैदा हो सकती है। हालांकि, उनकी थिअरी को शुरुआत में किसी ने सही नहीं माना लेकिन 1970 के दशक में इसे पहचान मिली।
Next Story