जनता से रिश्ता। शिवाजी के बारे में हम सभी जानते हैं परंतु ऐसे और भी शूरवीर योद्धा हमारे देश में है जिनके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। ऐसे ही योद्धाओं में से एक थे - "तानाजी मालुसरे"
तानाजी बहुत सुलझे हुए योद्धा थे एवं सूझबूझ से युद्ध को लड़ने के लिए तत्पर रहते थे। मराठा साम्राज्य के कुशल सेनापति थे। तानाजी हमेशा अपने कार्य में कर्तव्यनिष्ठ ईमान कुशल व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। तानाजी को बचपन से ही तलवारबाजी का बहुत शौक था।
तानाजी और शिवाजी की मित्रता के लिए इतिहास भी गवाह है कि तानाजी और शिवाजी आपस में बहुत अच्छे मित्र थे। वे बचपन के मित्र थे, इसलिए दोनों के बीच आपसी सामंजस्य बहुत ही अच्छा था।
तानाजी शिवाजी के साथ मिलकर औरंगजेब से मिलने गए थे। तभी औरंगजेब ने अपने छल से उनको हथियार बना कर दोनों को बंदी बना लिया। उसी समय उन दोनों ने एक योजना का निर्माण किया और इस योजना के तहत दोनों मिठाई के पिटारे में बंद होकर वहां के बंदीगृह से बाहर निकले।
कोंढाने के किले के बारे में बहुत सारे लोगों ने अलग अलग बात कही हैं। कहा जाता है कि उस समय तानाजी के बेटे रायबा के विवाह की जोर-शोर से तैयारियां चल रही थी और तानाजी छत्रपति शिवाजी को आमंत्रण देने के लिए उनके राज महल पहुंचे।
पहुंच कर उन्हें ज्ञात हुआ की शिवाजी महाराज कोंढाने के किले की चढ़ाई करने वाले हैं। तानाजी ने शिवाजी महाराज को निमंत्रण पत्र सौंपते हुए कहा, महाराज मैं आपके साथ कोंढिना किले की चढ़ाई में साथ दूंगा। तानाजी ने अपने पुत्र रायबा के विवाह के बारे में भी एक बार नहीं सोचा क्योंकि उनके लिए दोस्ती का मान रखना उन्होंने अनिवार्य समझा।
हालांकि कोंढाने के किले पर चढ़ाई करना कोई आसान आसान बात नहीं थी, शिवाजी को यह पता था कि इस किले के अंदर पहुंचना अत्यंत विपरीत परिस्थितियों का सामना करना है फिर भी वह उस किले को जीतने के लिए तत्पर थे। मुगल सैनिकों ने किले को अधिक मात्रा में जोड़कर घेरा हुआ था और किले की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी उदयभान सिंह को दे रखी थी
यह तो सभी जानते हैं कि उदयभान सिंह एक हिंदू शासक थे। परंतु उदयभान सिंह ने सत्ता की लालच में आने के कारण अंग्रेजों का साथ देना उचित समझा और किले के रक्षक बनकर मुगलों का साथ दिया। उदयभान की प्रकृति बिल्कुल राक्षस के समान थी वह 1 दिन में 20 सेर चावल और 2 भेड़ खा जाता था। जो कि उसके लिए बहुत आम बात थी। इन सब परिस्थितियों में कौंढाना पर विजय पाने के लिए मराठों के पास केवल एक भाग था पश्चिम दिशा का भाग।
परंतु उसमें भी उन्हें पहाड़ियों के सहारे किले पर पहुंचना संभव था। संपूर्ण विचार-विमर्श के बाद तानाजी ने रणनीति बना और उसी रणनीति के अनुसार सब कुछ तय किया गया। घोरपड़ की सहायता से किले की चढ़ाई की गई।
प्राचीन समय में बड़े-बड़े किलो की चढ़ाई करने के लिए घोड़पड़ ही एकमात्र साधन हुआ करता था। जो उन्हें नीचे से ऊपर की ओर पहुंचा देता था। यह एक विशालकाय छिपकली होती है, जो की चट्टानों पर चिपक जाती है और उसकी सहायता से ऊपर चढ़ना -उतरना आसान होता है।
कोंढाने के किले को जीतने की धुन शिवाजी के मन में उनकी मां के कारण जागी, क्योंकि उनकी माता जीजाबाई लाल महल से कोंढाने के किले को एकटक लगाए देख रही थी। बस उसी पल शिवाजी ने अपनी माता के लिए कोंढाने के किले को जीतने की ठानी।
तानाजी ने अपने मन ही मन में किले की विजय को स्वीकार कर लिया था। अतः उन्होंने युद्ध के लिए निकलते समय उनके साथ उनके भाई सूर्याजी मालुसरे, मामा श्री शेलार तथा पूरे 342 सैनिकों के साथ उन्होंने किले पर हमला किया।
तानाजी अत्यंत ही हष्ट-पुष्ट एवं शक्ति पुर्ण योद्धा थे।
तानाजी रणनीति के क्षेत्र में भी बहुत सफल एवं कुशल योद्धा थे। तानाजी ने सभी सैनिकों को टुकड़ी में बाटकर पश्चिम भाग से निकलने का तय किया। अर्धरात्रि में उन्होंने घोरपड़ की सहायता से चट्टानों को लांघा। मैंने अपने लेख में पहले ही बता दिया है कि घोरपड़ क्या है। इसे हम उर्ध्व सतह पर खड़ी चट्टानों पर रखकर चुपचाप ऊंचे से ऊंची चढ़ाई कर सकते हैं और यह कई पुरुषों का भार सहन कर सकती है।
तानाजी की सूझबूझ और समझदारी के बाद ही बनाई गई रणनीति के अनुसार उनके कुछ साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए और जाकर कोंढाना का सर्वप्रथम कल्याण दरवाजा खोला। उसके बाद ही मुगलों पर हमला शुरू हो गया। फरवरी 1670 की रात तानाजी के पास मात्र 342 सैनिक थे।
परंतु उदयभान राठौर जो कि मुगल शासक को सहयोग दे रहा था उसके पास 5000 मुगल सैनिक थे। तानाजी के साथ उनके सैनिकों को किले में घुसते ही मुगलों की सेना में हलचल मच गई और मराठा सैनिक की कम संख्या होने के बाद इतना आत्म बल को देखकर मुगल कांप उठे। यह सब देखते ही देखते उस अंधेरी अर्धरात्रि में कोंढाना का किला युद्ध का मैदान बन गया। सारे मराठा सैनिक मुगल सैनिकों पर काल के रूप में बनकर टूट पड़े।
सबसे ज्यादा घमासान युद्ध तानाजी मालुसरे और उदयभान के बीच में हुआ इस लड़ाई में उदयभान राठौर ने वीर योद्धा तानाजी पर छल करके वार किया। जिस कारण तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए और मृत्यु को प्राप्त कर गए।
तानाजी के शेलार मामा यह नहीं देख पाए और उदयभान को मौत के घाट उतार दिया तथा तानाजी की मौत का बदला लेकर वीरता का परिचय दिया।
तानाजी के छोटे भाई सूर्याजी मालुसरे की मृत्यु - यह तो आप जान चुके हैं कि सूर्याची मालुसरे तानाजी के छोटे भाई थे। उन्होंने कल्याण द्वार में से मोर्चा संभाला था। सूर्यजी मालुसरे ने भी मुगलों के साथ उन्हें खदेड़ कर किले पर विजय प्राप्त कर वीरता का परिचय दिया।