फिजी में इसे परंपरा को निभाने को प्रेम की सबसे बड़ी अभिव्यक्ति कहा गया है. ये प्रथा सदियों से है. अब हर कोई तो समुद्र में जाकर व्हेल के दांत नहीं ला सकता, लिहाजा ये काम पेशेवर लोग करते हैं. खरीदार इस विशाल मछली के दांतों से बनी माला या कोई दूसरी चीज लेकर तोहफे में देते हैं.
तबुआ का अर्थ है पवित्र. मान्यता है कि इस दांत में सुपर-नेचुरल ताकत होती है और इसे रखने पर शादी हमेशा बनी रहती है. ये मान्यता इतनी गहरी है कि फिजी के पूरे 300 द्वीप समूहों में इस प्रथा को मानने वाले हैं. इसके लिए हर नया जोड़ा जोर-शोर से व्हेल के दांत खोजने और खरीदने में जुट जाता है. शादी के अलावा ये मौत और जन्म के मौके पर भी तोहफे की तरह दिया जाता है.
फिजी में ये प्रथा 18वीं सदी से चली आ रही है. ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट के मुताबिक अगर पहले कोई कबीला किसी दूसरे कबीले के प्रमुख को मारना चाहता था, तो उसे हत्यारे को पैसे नहीं, बल्कि व्हेल के दांत देने होते थे.
दांतों के लिए एक खास तरह की व्हेल मछली का शिकार किया जा रहा है, जिसे स्पर्म व्हेल कहते हैं. ये दांत वाली मछलियों की श्रेणी की सबसे बड़ी मछली है. इसके विशालकाय सिर में 20 से 26 जोड़ा दांत होते हैं. हर दांत की लंबाई 10 से 20 सेंटीमीटर होती है. लेकिन सबसे मजे की बात है इन दांतों का वजन. हरेक दांत कम से कम 1 किलोग्राम तक वजनी होता है.
वैसे वैज्ञानिक अब तक ये रहस्य नहीं समझ सके हैं कि स्पर्म व्हेल के मुंह में इतने सारे और मजबूत दांत क्यों होते हैं. दरअसल ये व्हेल एक तरह का घोंघा ही खाती है, जिसके लिए ऐसे दांतों को कोई जरूरत नहीं. लगभग सभी जीव-जंतुओं में गैरजरूरी अंग गायब हो चुके हैं या हो रहे हैं, ऐसे में स्पर्म व्हेल के दांत क्यों बने हुए हैं, इसका कारण किसी को नहीं पता.
घोंघे खोजने के दौरान व्हेल लंबी गोताखोरी करती है. 35 मिनट से लगभग घंटेभर की गोताखोरी के बाद इसे सतह पर आने की जरूरत पड़ जाती है. स्पर्म व्हेल तभी लगभग 10 मिनट के लिए समुद्री की सतह पर आती है. यही बात उसपर भारी पड़ जाती है. ये वही समय होता है, जब मछली को पकड़ने के लिए तस्कर नजरें लगाए होते हैं.
केवल तबुआ ही नहीं, बल्कि ऐसी कई मान्यताओं के कारण स्पर्म व्हेल को मारा जा रहा है. यही वजह है कि ये मछली अब दुर्लभ हो चुकी है. दूसरी ओर इसकी डिमांड तेजी से बढ़ी है. मछली के दांत इतने बेशकीमती माने जाने लगे हैं कि एक दांत का एक छोटा सा हिस्सा लगाए हुए माला भी लाखों में मिल रही है.
यहां तक कि इन दांतों की डिमांड को देखते हुए नकली माल भी चल निकला है. लोग प्लास्टिक के दांतों को व्हेल के दांत बताकर बेचने लगे हैं. लेकिन खरीदार इसकी जांच का तरीका भी साथ लेकर चलते हैं. अगर दांत को माचिस की लौ दिखाने पर उसके रंग पर कोई फर्क न हो और न ही वो पिघले तो दांत व्हेल के ही हैं.
इस मछली के लुप्त होने को ध्यान में रखते हुए कई प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. जैसे Marine Mammal Protection Act (MMPA) ने इसके शिकार पर पूरी तरह से रोक लगाई हुई है, हालांकि तस्कर तब भी चोरी-छिपे ये काम कर रहे हैं. तस्करों पर लगाम कसने के लिए Endangered Species Act भी इस व्हेल के मामले में लागू कर दिया गया लेकिन तब भी ब्लैक मार्केट में इसके दांतों की कीमत बढ़ती ही जा रही है.
एक अनुमान के मुताबिक अब पूरी दुनिया में लगभग 3 लाख स्पर्म व्हेल ही बाकी हैं और आशंका है कि जिस धड़ल्ले से इसकी तस्करी हो रही है, ये जल्दी ही खत्म हो जाएंगी.