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जिसके बारे में लोगों को जानने की उत्सुकुता दिखाई दी. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर इतने कम उम्र में कैसे वह लड़का रतन टाटा का करीबी बन गया
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रतन नवल टाटा (Ratan Naval Tata) एक जानी-मानी हस्ती हैं जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसने इनका नाम न सुना हो. कई उद्यमी उन्हें एक उदाहरण के रूप में देखते हैं. भले ही वह एक धनी परिवार से संबंध रखते हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी पॉवर या पैसों को हल्के में नहीं लिया. हाल ही में, उनका बर्थडे सेलिब्रेशन का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें एक युवा शख्स भी साथ दिखाई दिया. उस युवा शख्स ने रतन टाटा के कंधे पर हाथ रखा हुआ था, जिसके बारे में लोगों को जानने की उत्सुकुता दिखाई दी. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर इतने कम उम्र में कैसे वह लड़का रतन टाटा का करीबी बन गया.
कौन है शांतानु नायडू? (Who is Shantanu Naidu)
28 साल की उम्र में शांतनु नायडू (Shantanu Naidu) ने बिजनेस इंडस्ट्री में एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जो कई लोगों के लिए हमेशा एक सपना बना रहता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शांतनु नायडू रतन टाटा को स्टार्टअप्स में निवेश के लिए बिजनेस टिप्स देते हैं. शांतनु नायडू का जन्म 1993 में पुणे महाराष्ट्र में हुआ था. वह एक प्रसिद्ध भारतीय व्यवसायी, इंजीनियर, जूनियर असिस्टेंट, डीजीएम, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, लेखक और उद्यमी हैं. शांतनु नायडू टाटा (Shantanu Naidu) ट्रस्ट के उप महाप्रबंधक के रूप में देश भर में काफी लोकप्रिय हैं.
कॉर्नेल विश्वविद्यालय से एमबीए शांतनु नायडू टाटा समूह में काम करने वाले अपने परिवार की पांचवीं पीढ़ी हैं. उनके लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक, शांतनु जून 2017 से टाटा ट्रस्ट में काम कर रहे हैं. इसके अलावा नायडू ने टाटा एलेक्सी में डिजाइन इंजीनियर के तौर पर भी काम किया है.
कैसे रतन टाटा के साथ काम करना शुरू किया?
नौजवान शांतनु नायडू (Shantanu Naidu) का सपना तब साकार हुआ जब रतन टाटा ने अपने फेसबुक पोस्ट के बाद उन्हें एक मीटिंग के लिए आमंत्रित किया, जहां उन्होंने आवारा कुत्तों के लिए रिफ्लेक्टर के साथ बनाए गए डॉग कॉलर के बारे में लिखा था ताकि ड्राइवर उन्हें मुंबई की सड़कों पर देख सकें. शांतनु नायडू ने अपने पोस्ट में लिखा, 'बात फैल गई और टाटा न्यूजलेटर में हमारा काम छप गया.' एक स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन होने के नाते, इन कॉलरों को बनाने के लिए शांतनु के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे. इसलिए, उन्होंने कॉलर बनाने के लिए बेस मैटेरियल के रूप में डेनिम पैंट का उपयोग करने का निर्णय लिया. उन्होंने अलग-अलग घरों से डेनिम पैंट इकट्ठे किये. इसके बाद पुणे में 500 रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाए और 500 कुत्तों को कॉलर पहनाया.
कुछ ऐसे रतन टाटा के करीब आए शांतनु नायडू
उनके द्वारा बनाए गए इन कॉलरों को पहने हुए कुत्तों को रात में बिना स्ट्रीट लाइट के भी वाहन ड्राइवर्स दूर से ही देख सकते थे और इसलिए गली के कुत्तों की जान बचाई जा सकती थी. उनके काम को कई लोगों ने देखा और खूब सराहा. जल्द ही शांतनु नायडू के काम पर सभी का ध्यान जाना शुरू हो गया और टाटा कंपनी के समाचार पत्र में इसे उजागर किया गया, जिसने उन्हें टाटा समूह के पूर्व अध्यक्ष और एक एनिमल एक्टिविस्ट रतन टाटा से खुद मुंबई का निमंत्रण मिला.
2016 में, शांतनु नायडू अमेरिका में कॉर्नेल विश्वविद्यालय में एमबीए करने गए. जब उन्होंने अपनी डिग्री पूरी की और 2018 में वापस आए, तो उन्होंने चेयरमैन ऑफिस में डिप्टी जनरल मैनेजर के रूप में टाटा ट्रस्ट में शामिल हो गए.
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