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दुर्लभ बीमारी! इलाज के लिए हर साल खर्च होते हैं 2.75 करोड़, बीक जाती है जमीन-जायदाद

Gulabi
21 Feb 2021 7:14 AM GMT
दुर्लभ बीमारी! इलाज के लिए हर साल खर्च होते हैं 2.75 करोड़, बीक जाती है जमीन-जायदाद
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किसी भी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए जरूरत होती है उसके सबसे कारगर इलाज की

किसी भी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए जरूरत होती है उसके सबसे कारगर इलाज की. हर बीमारी का अचूक इलाज खोजने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक एक साथ खड़े हुए दिखाई देते हैं, ताकि कोई भी बीमारी लाइलाज न रह सके. कई बार कुछ बीमारियों का इलाज बहुत महंगा होता है और ये बीमारी करोड़ों लोगों में से किसी एक को होती है. ऐसी ही एक बीमारी है पोम्पे रोग जो एक रेयर डिजीज है.


राजस्थान के बाड़मेर जिले में रहने वाले ललित सोनी को जो बीमारी है वो करोड़ों में एक या दो को होती है. इस बीमारी का नाम है पोम्पे रोग (Pompe Disease). ये बीमारी क‍ितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके इलाज में सालाना 2 करोड़ 75 लाख का खर्च आता है. हैरत की बात तो ये है कि ललित का बड़ा भाई भी पोम्पे रोग से ग्रसित था और एक साल पहले इस दुर्लभ बीमारी से जूझते हुए उसकी मौत हो गई. अब ललित अपने मां-बाप का इकलौता सहारा है और वो भी इस बीमारी से ग्रसित है.
इंजेक्शन का खर्च सालाना 2 करोड़ 75 लाख है
सोशल मीडिया पर बाड़मेर के लोग ललित को बचाने के लिए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक हर किसी से गुहार लगा रहे हैं. इस बीमारी में जो इंजेक्शन अमेरिका से आता है, उसका खर्च सालाना 2 करोड़ 75 लाख आता है. ललित के परिवार के पास जो भी पैसा था वो सब दोनों बेटों की दवाई, रिपोर्ट में चला गया और अब परिवार के पास कुछ भी नहीं बचा. ललित के पिता बताते हैं कि उनके बड़े बेटे को भी यही बीमारी थी, पिछ्ले साल ही उसकी मौत हुई है. उन्होंने बताया क‍ि ललित के शरीर में ये बीमारी दिन-ब-दिन फैलती जा रही है. इसका एक ही इलाज अमेरिका से टीके मंगवा कर लगवाना है.
उन्होंने कहा कि मैंने प्रधानमंत्री से लेकर सभी नेताओं से मदद मांगी है कि मेरा एक बेटा तो पहले ही चला गया, अब मेरा आखिरी सहारा बचा है अगर सरकार चाहे तो बेटा बच सकता है. पोम्पे रोग में बॉडी सेल्स में ग्लाइकोजन नाम का कॉम्प्लेक्स शुगर इकट्ठा हो जाता है. शरीर इस प्रोटीन का निर्माण नहीं कर पाता. इसका इकलौता इलाज एंजाइम थेरेपी है जिसमें एक साल में 26 इंजेक्शन लगते हैं.इसमें 24 घंटे में से 16 घंटे ऑक्सीजन पर रखना पड़ता है.


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