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खाने के बाद गिलास प्लेट फेंकते नहीं खा जाते हैं यहां के लोग, हैरान कर देगी वजह

Apurva Srivastav
11 May 2021 7:20 AM GMT
खाने के बाद गिलास प्लेट फेंकते नहीं खा जाते हैं यहां के लोग, हैरान कर देगी वजह
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कई जगहों पर लोग खाना खाने के बाद गिलास-प्लेट फेंकते नहीं है बल्कि उन्हें भी खा जाते हैं.

घर में खाना खाने के लिए जिन बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है वे या तो किसी मेटल के होते हैं या फिर कांच और मिट्टी के होते हैं जिन्हें आमतौर पर इस्तेमाल के बाद धोकर रख दिया जाता है. इसके अलावा यदि हम बाहर किसी रोडसाइड स्टॉल पर जाते हैं तो हमें पेपर प्लेट या फिर प्लास्टिक की कटलरी में खाना सर्व किया जाता है, जिन्हें इस्तेमाल के बाद कचरे में डाल दिया जाता है. लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां के लोग खाना खाने के बाद प्लेट या गिलास धोने और फेंकने के बजाए उन्हें भी खा जाते हैं. जी हां, आपने बिल्कुल सही पढ़ा. उत्तरी अमेरिका, लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप, पश्चिमी यूरोप, जापान और भारत में भी कई जगहों पर लोग खाना खाने के बाद गिलास-प्लेट फेंकते नहीं है बल्कि उन्हें भी खा जाते हैं.

कई फ्लेवर में आ रही हैं एडिबल कटलरी
विश्व के कई देशों में एडिबल कटलरी (Edible Cutlery) की शुरुआत हो चुकी है जिसमें प्लेट, गिलास, कटोरी और चम्मच भी शामिल हैं. एडिबल कटलरी को इसलिए खाया जा सकता है क्योंकि इसे खाद्य पदार्थों से ही बनाया जाता है. शुरुआत में एडिबल कटलरी सिर्फ गेहूं के भूंसे से तैयार की जाती थी लेकिन अब इसमें कई बदलाव हो रहे हैं. कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में तो कई फ्लेवर वाली एडिबल कटलरी बनाई जाती है जिसमें चॉकलेट फ्लेवर भी शामिल है. इसके साथ ही इसमें कई मसाले भी मिलाए जाते हैं ताकि इन्हें खाने में भी स्वाद मिले. इसके अलावा ये पर्यावरण के लिए बिल्कुल सुरक्षित हैं जो किसी भी प्रकार से कुदरत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. एडिबल कटलरी की सबसे खास बात ये है कि इसमें ठंडा या गर्म किसी भी प्रकार का खाना या ड्रिंक सर्व किया जा सकता है.
प्लास्टिक कटलरी के मुकाबले महंगे हैं एडिबल कटलरी
भारत के कई रेस्टॉरेंट्स और घरों में इस तरह की एडिबल कटलरी का प्रयोग किया जा रहा है. हालांकि, इसकी कीमत प्लास्टिक कटलरी के मुकाबले काफी ज्यादा है. यदि हम साधारण प्लास्टिक से बने चम्मच से इसकी तुलना करें तो इसकी कीमतों में अंतर समझा जा सकता है. थोक बाजार में साधारण प्लास्टिक से बने 100 चम्मच की कीमत 15 रुपये से 100 रुपये या इससे ज्यादा भी हो सकती है. वहीं एडिबल चम्मच की कीमत 300 रुपये से शुरू होकर 500 रुपये या इससे ज्यादा हो सकती है. एडिबल चम्मचों की कीमत उसकी क्वालिटी, क्वांटिटी और फ्लेवर भी निर्भर करती है.
पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने में प्लास्टिक का सबसे बड़ा रोल
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने किसी दूसरे ग्रह के लोग यहां नहीं आते, हम हीं हैं जो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते आ रहे हैं और लगातार कर भी रहे हैं. रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक का इस्तेमाल और फिर इसे यूं ही इधर-उधर फेक देना कुदरत को काफी ठेस पहुंचा रहा है. साल 2012 में सीपीसीबी के अनुमान के मुताबिक, भारत रोजाना करीब 26,000 टन प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न करता है. हैरानी की बात ये है कि हमारे देश में प्रतिदिन करीब 10,000 टन से ज्यादा प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा ही नहीं हो पाता. प्लास्टिक का जो कचरा इकट्ठा नहीं हो पाता, वह पर्यावरण को भयानक नुकसान पहुंचाता है. पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भारत सरकार के लिए फिलहाल वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ा सिरदर्द है.
पर्यावरण को बचाने के लिए हो रहे हैं कई प्रयोग
हम सभी रोजाना खाने-पीने के लिए ही न जाने कितना प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं. हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में प्लास्टिक के जिस गिलास, प्लेट, कटोरी, चम्मच, कप का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह पर्यावरण को ही नष्ट कर रहा है और इसका सीधा प्रभाव हमारे ऊपर ही पड़ रहा है. पर्यावरण को बचाए रखने के लिए कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं. प्लास्टिक कटलरी के इस्तेमाल को खत्म करने या फिर कम करने के लिए बाजारों में पहले लकड़ी से बनी कटलरी आईं जो पर्यावरण का नुकसान नहीं पहुंचाती. इसके बाद अब गेहूं के भूंसे से बनी कटलरी आने लगी हैं. जी हां, गेहूं के भूंसे से बनी कटलरी न तो कुदरत को ठेस पहुंचाएंगी और हम इसे अपनी इच्छानुसार खा भी सकते हैं.


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