मेंढकों को बचाने के लिए किए जा रहे उपयों के बारे में वाइल्डलाइफ कनजर्वेशन से जुड़ी एक संस्था की डायरेक्टर मोनिका हचटेल कहती हैं कि कई-कई बार तो ऐसा होता था कि बहुत सारे मेंढक गाड़ियों से कुचलकर मर जाते थे। ये देखते हुए हमने उन्हें सड़क पार करने के दौरान बचाने का जिम्मा ले लिया। अब कई संस्थाएं काफी समय से मेढको को सड़क पार कराने के लिए काम कर रही हैं।
मेंढकों को बचाने के लिए कई चरण में होता है काम
मेंढकों को बचाने के लिए कई तरह के तरीकों को उपयोग में लाया जाता है। मेंढकों को सड़क पार कराने के लिए सड़कों के नीचे सुरंग बना दी जाती है, जहां से ये आराम से कभी भी इस पार से उस पार जा सकते हैं। इसके साथ ही मेंढकों को बचाने के लिए फेंसिंग बनाई गई हैं।
एनजीओ और जर्मनी की सरकार ने मिलकर पूरे बॉन शहर में 800 फेंसिंग बनवाई हैं, जो मेंढकों की सड़कों पर चलती गाड़ियों से सुरक्षा करती हैं। एनजीओ के लोग रोजाना फेंस चेक करते हैं और बंद हुए मेंढकों को पास के जंगल में छोड़ आते हैं।
आखिर बचाना क्यों है जरूरी?
विशेषज्ञों के मुताबिक, मेंढकों की ये प्रजाति जहरीले और नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाती है, इससे उनपर नियंत्रण रहता है। इसके साथ ही ये मच्छरों को भी खाते हैं। इन्हीं सब वजहों से मेंढकों को बचाना इतना जरूरी समझा जाता है। वैश्विक स्तर पर भी देखा जाए, तो मेंढकों की प्रजाति जिंदा रहना बहुत जरूरी है। मेढक पानी में मौजूद एल्गी खाते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता बनी रहती है।
मेंढ़कों के नाम है सड़क
जर्मनी में केवल बॉन में ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों में भी मेंढकों को बचाने पर जोर दिया जा रहा है। गाड़ी के नीचे दबने से मरने के अलावा तेज चलती गाड़ियों के एयर फ्लो से भी मर जाते हैं। अगर मेढक 40 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से अधिक चल रही गाड़ियों के पास से गुजरते हैं, तो उनके शरीर में आंतरिक रक्तस्त्राव होता है और मारे जाते हैं। ऐसे में गाड़ियों के स्पीड कंट्रोल के लिए कई सड़कों का नाम मेंढकों के नाम पर ही रख दिया गया है।