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पैरेंट्स ने कहा था- पढ़ो, बॉक्सिंग से कुछ नहीं होगा, अब दीपक कुमार ने जीता सिल्वर मेडल

Gulabi
2 March 2021 1:54 PM GMT
पैरेंट्स ने कहा था- पढ़ो, बॉक्सिंग से कुछ नहीं होगा, अब दीपक कुमार ने जीता सिल्वर मेडल
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72वें स्ट्रांजा मेमोरियल मुक्केबाजी टूर्नामेंट में भारत के दीपक कुमार (Deepak Kumar) ने सिल्वर मेडल जीता

72वें स्ट्रांजा मेमोरियल मुक्केबाजी टूर्नामेंट में भारत के दीपक कुमार (Deepak Kumar) ने सिल्वर मेडल जीता. इस टूर्नामेंट में उन्होंने उम्मीदों से बढ़कर प्रदर्शन किया. इसके जरिए दीपक कुमार ने अपने माता-पिता और दादी के उन सवालों का जवाब दे दिया जो उनसे 2008 में करियर शुरू करने के समय पूछा गया था. दीपक को आज भी याद है कि उनके अभिभावक कहते थे कि पढ़ाई में ध्यान दो, मुक्केबाजी से कुछ नहीं मिलेगा. दीपक ने हालांकि 10 साल के बाद 2018 में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप और 2019 में पहली बार एशियाई चैम्पियनशिप में भाग लेते हुए रजत पदक और फिर अभी बुल्गारिया में पिछले दिनों रजत पदक जीत कर अपने अभिभावकों को इस सवाल का जवाद दे दिया.


हरियाणा के हिसार के 23 साल के इस खिलाड़ी ने इस खेल से खुद के जुड़ाव का श्रेय अपने चाचा को दिया. दीपक ने पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा, 'वह मेरे चाचाजी थे जिन्होंने महसूस किया कि मैं एक मुक्केबाज बन सकता हूं. उन्होंने ऐसा क्यों महसूस किया यह मुझे भी नहीं पता. हो सकता है कि वह भी मुक्केबाज बनना चाहते हो लेकिन उनका मार्गदर्शन करने वाला कोई नहीं था. चाचा जी (रवींदर कुमार) के दोस्तों की टोली मुक्केबाजी से जुड़ी हुई थी और उन्होंने ही मुझे इस खेल से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और मुझे यह अच्छा लगा. अपने परिवार में मैं पहला खिलाड़ी हूं और यह काफी गर्व करने वाली बात है. इसके साथ ही चाचा जी मेरे जरिये अपने सपने को पूरा कर रहे है.'

सेना में नायब सूबेदार हैं दीपक कुमार
भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर काबिज दीपक ने इस मौके पर अपने होमगार्ड पिता और मां की बातों को याद किया जो मुक्केबाजी को अधिक समय देने के कारण दीपक से खुश नहीं थे. उन्होंने कहा, '

वे चाहते थे कि मैं पढ़ाई में ध्यान दूं. वे दोनों कहते थे कि 'इससे तुम्हें क्या हासिल होगा?' मेरी दादी भी ऐसे सवाल करती थी लेकिन चाचा ने इसके लिए जोर दिया और फिर मुझे सबका साथ मिला. ऐसा नहीं है कि मेरी परवरिश मुश्किल परिस्थितियों में हुई लेकिन मैं हमेशा से आत्मनिर्भर होकर अपने माता-पिता की मदद करना चहता था. इसलिए अपने शुरुआती वर्षों में मैं एक दोस्त की अखबार की वेंडिंग एजेंसी के लिए कलेक्शन का काम करता था. मैं खुद विक्रेता नहीं था, मैं कभी-कभी भुगतानों का कलेक्शन करने जाता था. यह कुछ पॉकेट खर्च कमाने के साथ-साथ डाइट की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए था.

स्ट्रांजा टूर्नामेंट में ओलिंपिक चैंपियन को दी थी मात
पहली बार स्ट्रांजा मेमोरियल मुक्केबाजी टूर्नामेंट में भाग लेते हुए उन्होंने कुछ बड़े खिलाड़ियों को मात दी. इसमें सबसे बड़ा नाम ओलिंपिक और विश्व चैम्पियन शखोबिदिन जोइरोव का था. भारतीय खिलाड़ी ने उज्बेकिस्तान के इस मुक्केबाज को सेमीफाइनल में हराया था. उन्होंने कहा, '

यह बड़ी जीत थी और मैं कह सकता हूं कि मेरे अब तक के करियर का यह सबसे बड़ा पदक है. यह मेरे लिए एशियाई चैम्पियनशिप से बड़ा पदक है क्योंकि वहां मैंने 49 किग्रा भार वर्ग में चुनौती पेश की थी, इस भार वर्ग में मैं अधिक सहज नहीं रहता हूं. मैं 52 क्रिग्रा भार वर्ग में ज्यादा सहज महसूस करता हूं. स्ट्रांजा मेरे अनुभव के लिए काफी अच्छा रहा. मुझे पता चला कि बड़े खिलाड़ियों के खिलाफ भी मैं बेखौफ होकर खेल सकता हूं.

दीपक बोले- मैं लंबी रेस का घोड़ा हूं
टूर्नामेंट के फाइनल में स्थानीय मुक्केबाज डेनियल असेनोव के खिलाफ दो दौर में दबदबा बनाने के बाद भी जजों का फैसला दीपक के पक्ष में नहीं गया. अपने पसंदीदा भार वर्ग में विश्व के नंबर एक मुक्केबाज अमित पंघाल के साथ प्रतिस्पर्धा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह अपनी जगह खुद बनाएंगे. पंघाल एशियाई खेल और एशियाई चैंपियन है. उन्होंने पहले ही टोक्यो ओलंपिक का टिकट कटा लिया है. दीपक ने कहा, 'इससे मुझे ज्यादा असर नहीं पड़ता, आने वाले समय में मैं अपनी जगह खुद बनाउंगा. मुझे मिलेगा पर देर से मिलेगा. मुझे पता है कि मैं लंबी रेस का घोड़ा हूं.'


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