भारत की एक ऐसा गुफा, जिसका महाभारत काल से जुड़ा है महत्व
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। धरती पर प्राचीन काल की ऐसी बहुत सारी गुफाएं या जगहें हैं, जहां कुछ ना कुछ रहस्य जरूर छुपे हुए हैं। ऐसी जगहों के बारे में जानने के बाद लोग हैरत में पड़ जाते हैं। आज हम आपको महाभारत काल की एक ऐसी गुफा के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां एक ऐसा रहस्य छुपा हुआ है, जिसके बारे में कोई भी नहीं जानता है। कहा ये भी जाता है कि उस रहस्य को चाहकर भी कोई इंसान जान नहीं सकता है। ये रहस्यमय गुफा उत्तराखंड के माणा गांव में है। इस गांव को 'हिंदुस्तान का आखिरी गांव' या 'उत्तराखंड का आखिरी गांव' भी कहा जाता है।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं 'व्यास गुफा' के बारे में, जो उत्तराखंड के माणा में स्थित है। वैसे तो यह एक छोटी सी गुफा है, लेकिन इसके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेद व्यास ने इसी गुफा में रहकर वेदों और पुराणों का संकलन किया था।
मान्यता यह भी है कि इसी गुफा में वेद व्यास ने भगवान गणेश की सहायता से महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। वेद व्यास गुफा अपनी अनोखी छत को लेकर भी देशभर में चर्चित है। इस छत को देखने पर ऐसा लगता है, जैसे बहुत से पन्नों को एक के ऊपर एक रखा हुआ है।
व्यास गुफा के छत को लेकर एक बेहद ही रहस्यमय धारणा लोगों के बीच प्रचलित है। कहा जाता है कि ये महाभारत की कहानी का वो हिस्सा है, जिसके बारे में महर्षि वेद व्यास और भगवान गणेश के अलावा और कोई नहीं जानता है।
मान्यता है कि महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश से महाभारत के वो पन्ने लिखवाए तो थे, लेकिन उसे उस महाकाव्य में शामिल नहीं किया और उन्होंने उन पन्नों को अपनी शक्ति से पत्थर में बदल दिया। आज दुनिया पत्थर के इन रहस्यमय पन्नों को 'व्यास पोथी' के नाम से जानती है।
अब सोचने वाली बात ये है कि आखिर वो कौन सा राज था, जिसे वेद व्यास दुनिया को बताना नहीं चाहते थे। हालांकि, महाभारत का ये 'खोया अध्याय' सच है या कोई कहानी, इसके बारे में तो कोई नहीं जानता है। लेकिन पहली नजर में तो व्यास गुफा की छत ऐसी ही लगती है, जैसे उसपर कोई विशालकाय पुस्तक रखी हुई है।