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New Zealand: 19 करोड़ सालों से जिंदा है ये गिरगिट, तीन आंखों वाले इस जानवर से हर कोई खाता है खौफ

Soni
14 March 2022 9:14 AM GMT
New Zealand: 19 करोड़ सालों से जिंदा है ये गिरगिट, तीन आंखों वाले इस जानवर से हर कोई खाता है खौफ
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न्यूजीलैंड (New Zealand) में एक छिपकली पाई जाती है. जिसे कहते हैं तुआतारा (Tuatara). यह धरती की सबसे रहस्यमयी छिपकली (Most Mysterious Reptile) है. साथ ही इसे वैज्ञानिक जीवित जीवाश्म (Living Fossils) भी कहते हैं. क्योंकि इसका संबंध 19 करोड़ साल पुराने इसके पूर्वज से हैं, जिनसे इनके अंदर बेहद कम बदलाव हुआ है या फिर ये कहें कि अब भी 19 करोड़ साल पुराने तुआतारा ही हैं. न्यूजीलैंड के तुआतारा (Tuatara) किसी साधारण इगुआना (Iguana) की तरह दिखते हैं. लेकिन असल में ये छिपकली नहीं है. वैज्ञानिक तो इसे सिर्फ सरिसृप (Reptiles) बुला रहे हैं.



ये कांटेदार जीव प्राचीन रहस्यमयी सरिसृपों रिंचोसिफैलिंयस (Rhynchocephalians) के वंशज हैं. ज्यादातर रिंचोसिफैलियंस डायनासोरों के समय में ही खत्म हो गए थे. लेकिन कुछ बच गए, जिनके वंशज आज भी बिना ज्यादा बदलाव के न्यूजीलैंड में पाए जाते हैं. सरिसृपों (Reptiles) की दुनिया के बेहद अजीबो-गरीब प्राणी हैं. तुआतारा (Tuatara) बेहद आराम से सौ साल जी लेते हैं. ये ठंडी से ठंडी जगह पर विपरीत परिस्थितियों को बर्दाश्त कर लेते हैं. इनके जबड़े पीछे से आगे की ओ खिसकते हैं. जिनसे ये कीड़ों समुद्री पक्षियों आदि का शिकार करते हैं. इनकी सबसे बड़ी खासियत होती है इनकी तीसरी आंख. जो कि सिर के ऊपर बीचों-बीच त्वचा की परतों के नीचे छिपी होती है, जो सूरज की रोशनी को ट्रैक करने में मदद करती है. अब तुआतारा (Tuatara) की इन्ही खासियतों की वजह से जैविक पुरातत्वविद यानी प्राचीन समय के जीवों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक हैरान हैं. क्योंकि ये खासियतें डायनासोर के समय में पाई जाने वाली सबसे रहस्यमयी सरिसृप रिंचोसिफैलिंयस (Rhynchocephalians) में पाई जाती थीं. बाकी सरिसृप, छपकलियां सांप ने समय के साथ बदलाव किया खुद को विकसित करते चले गए. लेकिन यह प्रजाति ज्यादातर खत्म हो गई. ये बात मिसोजोइक काल (Mesozoic Era) की है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के म्यूजियम ऑफ कंपेरेटिव जूलॉजी में वर्टिब्रेट पैलियोंटोलॉजी की क्यूरेटर स्टेफनी पियर्स ने कहा कि हमने हाल ही में एक छिपकली के पूरे जीवाश्म की स्टडी की, जो हथेली के आकार का था. यह जीवाश्म 1982 में उत्तरी एरिजोना के कायेंटा फॉर्मेशन में मिला था. यहां पर डायनासोरों के जमाने के कई जीवाश्म दफन है. ऐसा माना जाता है कि उस दौर में डिलोफोसॉरस जैसे डायनासोरों ने मगरमच्छों जैसे जीवों के साथ संबंध बनाया होगा. जिससे ये रिंचोसिफैलिंयस (Rhynchocephalians) नाम के जीव पैदा हुए होंगे.

तुआतारा (Tuatara) बेहद प्राचीन जीव है. इसमें स्तनधारियों के भी गुण हैं सरिसृपों के भी. इसलिए इसे सबसे रहस्यमयी छिपकली (Most Mysterious Reptile) कहा जाता है. इस जीवाश्म का अध्ययन करते समय डॉ. स्टेफनी पियर्स उनके पोस्टडॉक्टोरल स्टूडेंट टियागो सिमोस ने देखा कि यह जीव छिपकलियों के शुरुआती सतत विकास यानी इवोल्यूशन की पहली कड़ी लगती है. यह स्टडी हाल ही में Communications Biology में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों ने इस नए जीव को नाम दिया है नावाजोसफेनोडोन सानी (Navajosphenodon sani). यह इसके जीनस स्पीसीस दोनों का ही नाम है. जिसका मतलब होता है ज्यादा उम्र. जहां पर यह जीवाश्म मिला था, वहां पर नावाजो (Navajo) आदिवासी रहते हैं. उनकी भाषा में नावाजो का मतलब होता है ज्यादा उम्र. वैज्ञानिकों ने उस जीवाश्म के अध्ययन के लिए माइक्रो-सीटी स्कैन की मदद ली. उसके बाद उसका थ्रीडी मॉडल बनाया. जब इस जीवाश्म के मॉडल का अध्ययन शुरू किया गया तो पता चला कि इसकी खोपड़ी (Skull) तुआतारा की तरह है. इसके दांत तीखे इंटरलॉकिंग सिस्टम में सेट थे, जो कि उसके जबड़ों की हड्डियों के साथ खास तरीके से जुड़े थे. इसकी खोपड़ी में दोनों आंखों के पीछे तीन अतिरिक्त छेद भी थे. यह एक बड़ा अंतर है जो तुआतारा को अन्य छिपकलियों से अलग करता है. तुआतारा की तीसरी आंख भी होती है. 19 करोड़ साल बाद भी इन जीवों में ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं. ये आज भी अपने प्राचीनता को बरकरार रखे हुए हैं. यह जीवाश्म बताता है कि तुआतारा (Tuatara) आज भी जीवित जीवाश्म है.

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