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केरल की पहाड़ियां पर 12 सालों के बाद खिले नीलकुरिंजी के फूल, गुलजार हुई

Shiddhant Shriwas
3 Aug 2021 8:01 AM
केरल की पहाड़ियां पर 12 सालों के बाद खिले नीलकुरिंजी के फूल, गुलजार हुई
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हमारे देश भारत में हर 12 सालों के अंतराल पर केवल महाकुंभ मेला ही नहीं लगता है, बल्कि एक खास फूल भी खिलता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हमारे देश भारत में हर 12 सालों के अंतराल पर केवल महाकुंभ मेला ही नहीं लगता है, बल्कि एक खास फूल भी खिलता है। केरल के नीलगिरी पहाड़ियों में हर 12 साल के बाद नीलकुरिंजी के फूल खिलते हैं। यह फूल दुनिया के कुछ असाधारण फूलों में से एक हैं। पर्यटकों को इन फूलों की खूबसूरती को देखने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ता है। हालांकि, इस मायने में ये साल बेहद खास है, क्योंकि नीलकुरिंजी के फूलों के खिलने से नीलगिरी पहाड़ी जामुनी रंगों से सराबोर हो गई है।

यूं तो केरल के पहाड़ गहरे हरे और नीले हैं, लेकिन नीलकुरिंजी फूलों के खिलने के बाद बैंगनी नजर आने लगते हैं। बता दें कि केरल स्थित मुन्नार को नीलकुरिंजी फूलों का सबसे बड़ा घर माना जाता है। करीब 3000 हेक्टेयर में घुमवादार पहाड़ियों वाला मुन्नार दक्षिण भारत के सबसे खास पर्यटन स्थलों में से एक है। नीलकुरिंजी के फूल मुन्नार की सुंदरता को और बढ़ा देते हैं।


केरल के लोग इस फूल को कुरिंजी कहते हैं। ये स्ट्रोबिलेंथस की एक किस्म है। इसकी करीब 350 फूलों वाली प्रजातियां भारत में ही हैं। स्ट्रोबिलेंथस की अलग-अलग प्रजातियों के फूलों के खिलने का समय भी अलग-अलग है। कुछ चार साल में खिलते हैं, तो कुछ आठ, दस, बारह या सोलह साल में खिलते हैं।


साल 2006 में केरल के जंगलों का 32 वर्ग किलोमीटर इलाका इस फूल के संरक्षण के लिए सुरक्षित रखा गया था। इसे कुरिंजीमाला सैंक्चुअरी का नाम दिया गया। ये सैंक्चुअरी कुरिंजी कैंपेन काउंसिल की कोशिशों का नतीजा है। वैली ऑफ फ्लॉवर के बाद ये भारत की दूसरी फ्लॉवर सैंक्चुअरी है। यहां नीलकुरिंजी की तमाम प्रजातियां संरक्षित की जाती हैं।


नीलकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा है। यानी एक बार फूल आने के बाद इसका पौधा खत्म हो जाता है। फिर नए बीज के पनपने के लिए और उसमें फूल आने के लिए 12 साल का इंतजार करना पड़ता है।

हिंदू अखबार के पूर्व संपादक रॉय मैथ्यू ने अपनी किताब में लिखा है कि केरल की मुथुवन जनजाति के लोग इस फूल को रोमांस और प्रेम का प्रतीक मानते हैं। इस जनजाति की पारंपरिक कथाओं के मुताबिक, इनके भगवान मुरुगा ने इनकी जनजाति की शिकारी लड़की वेली से नीलकुरिंजी फूलों की माला पहनाकर शादी की थी।

बता दें कि नीलकुरिंजी के फूलों का खिलना पूरे केरल के लिए खुशहाली का प्रतीक है। इसके खिलने से पर्यटन का कारोबार फलता-फूलता है।







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