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सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस, जानें

Gulabi
13 Feb 2022 9:31 AM GMT
सरोजिनी नायडू के जन्मदिन पर क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय महिला दिवस, जानें
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आजाद भारत में उन्होंने देश के कई पदों को सुशोभित किया
भारत (India) में हर साल 13 फरवरी को स्वतंत्रता सेनानी रहीं सरोजिनी नायडू के जन्मदिन (Sarojini Naidu Birthday) पर राष्ट्रीय महिला दिवस (National Women Day 2022) मनाया जाता है. बचपन से ही कुशल वक्ता रहीं सरोजिनी ने हमेशा ही देश सेवा के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और महिलाओं का नेतृत्व कर उन्हें देशकार्यों के लिए भागीदारी के लिए प्रेरित किया. आजाद भारत में उन्होंने देश के कई पदों को सुशोभित किया.
भारत (India) में राष्ट्रीय महिला दिवस (National Women's Day) 13 फरवरी को मनाया जाता है और यह दिन देश की स्वर कोकिला कही जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) के जन्मदिन पर मनाया जाता है. देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान के सम्मान में ही सरोजनी नायडू का जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. सरोजनी नायडू ने ऐसे समय में महिलाओं को जागृत करने का काम किया था जब देश अंग्रेजों से आजादी हासिल करने के लिए जूझ रहा था. सरोजनी नायडू ने देश के बहुत सारी महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार बनाने के काम किया था.
सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) को केवल एक स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) के रूप में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल रही थीं. वे 1925 में कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनाई गईं थी. भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका के कारण अंग्रेजों ने उन्हें 21 महीने तक जेल में रखा था. भारत की पहली महिला गवर्नर (First Woman Governor) भी थीं.
सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu) का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदाराबाद (Hyderabad) के बंगाली परिवार में अघोरनाथ चट्टोपाध्यायन के घर में हुआ था. वे बचपन से ही पढ़ने लिखने में तेज और कविता लिखने की शौकीन थी. 12 साल की उम्र में ही मेट्रिकुलेशन की परीक्षा कक्षा पास करने के बाद 16 साल की उम्र में लंदन (London) कैंब्रिज चली गई थीं.
सरोजनी नायडू (Sarojini Naidu) भारत (India) लौटने के बाद जल्दी ही एक कुशल वक्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गईं. उन्होंने भारत की आजादी के साथ महिलाओं के अधिकार (Women's Rights) और विशेषकर महिला शिक्षा के लिए सशक्त आवाज उठाई. 1906 में कलकत्ता में उनके भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और इंडियन सोशल कॉन्फ्रेंस के संबोधन बहुत पसंद किए गए थे.
सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) के द्वारा बाढ़ पीड़ितों के लिए किए गए काम के कारण उन्हें 1911 में कैसर-ए- हिंद पदक दिया गया जिसे बाद में उन्होंने जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में 1919 में लौटा दिया था. 1914 में उनकी मुलाकात इंग्लैंड (England) में गांधी जी (Mahatma Gandhi) से हुई थी जिसके बाद उनमें देशसेवा के प्रति ने नया उत्साह जागृत हो गया था.
सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) 1917 में वुमिनस इंडिया एसोसिएशन की सह संस्थापक रहीं उसी साल उन्होंने अपनी मित्र एनी बेसेंट (Annie Besant) के साथ लंदन में सार्वभौमिक मताधिकार के समर्थनन में अपने भाषण से दुनिया के प्रभावित किया. 1916 में उन्होंने लखनऊ समझौते का समर्थन किया था जो ब्रिटिश राजनैतिक सुधार के लिए हिंदू मुस्लिम मांगों को संयुक्त मसविदा था.
अपनी वाककौशल की वजह से 1925 के कानपुर कांग्रेस अधिवेशन में सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) अध्यक्ष चुनी गईं. वे इस पद का पाने वाली दूसरी महिला और पहली भारतीय महिला थीं. उन्होंने गांधी जी की हर आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया और आंदोलनों को महिला मोर्चों की कमान भी संभाली. नमक सत्याग्रह में महिलाओं की भागीदारी के लिए गांधी जी को मनाने के लिए उनका भी योगदान था.
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