जरा हटके

जानिए देश की पहली फीमेल बाउंसर के जीवन की सच्ची कहानी

Gulabi
14 March 2021 11:57 AM GMT
जानिए देश की पहली फीमेल बाउंसर के जीवन की सच्ची कहानी
x
अगर बाउंसर बनने का काम सिर्फ मर्दों का ही होता है तो आप किसी गलतफहमी में हैं.

अगर बाउंसर बनने का काम सिर्फ मर्दों का ही होता है तो आप किसी गलतफहमी में हैं. हम आज एक ऐसी महिला की बात करने करने जा रहे हैं जो एक मशहूर महिला बाउंसर है. 34 साल की मेहरूनिसा नाइट क्लब में होने वाली लड़ाई को खत्म कराने के साथ साथ महिला ग्राहकों पर नजर रखने तक का काम करती हैं. मेहरुनिशा शौकत अली को आप ग्राहकों या सहकर्मियों के साथ बात करने के तरीके से अंदाजा नहीं लगा पाएंगे कि इसके पीछे एक कड़क मिजाज बाउंसर भी छिपा हुआ है.


34 साल की मेहरूनिसा यूपी के सहारनपुर जिले से ताल्लुक रखती हैं. साल 2004 से ही इस लाइन से जुड़ गई, और 10वीं क्लास से ही बाउंसर का काम करने लगी, हालांकि शुरूआत में बाउंसर की जगह उन्हें सिक्योरिटी गार्ड कहा जाता था, जिसका उन्होंने विरोध किया. मेहरूनिशा ने बताया, मैं देश की पहली महिला बाउंसर हूं, ये दर्जा प्राप्त करने के लिए मैंने बहुत लड़ाई लड़ी. जब मुझे गार्ड कहा जाता तो बहुत गुस्सा आता था. लेकिन कड़े संघर्ष के बाद मुझे देश की पहली महिला बाउंसर का दर्जा प्राप्त हुआ.

बेटी हो तो मेहरूनिसा जैसी
हालांकि उनके इस काम से उनके पिता खफा रहते थे. स्थानीय लोगों के ताने सुन कर उनके पिता हर वक्त नौकरी छोड़ने के लिए कहते. लेकिन वक्त ने ऐसी करवट ली कि लोग अब यह कहते हुए सुनाई पड़ते हैं कि बेटी हो तो मेहरूनिशा जैसी. मेहरूनिसा के परिवार में कुल 3 भाई और उनके अलावा 4 बहने हैं. अब मेहरुनिशा के अलावा उनकी एक और बहन भी उन्हीं के नक्शे कदम पर बढ़ चुकी हैं. हालांकि मेहरूनिशा के पास इस वक्त कोई काम नहीं है. कोरोना काल मे क्लब बंद हो जाने के बाद उनकी नौकरी चली गई. वहीं प्राइवेट इवेंट्स भी आने बंद हो गए. जिसकी वजह से अब वो बेरोजगार है.

आर्मी या पुलिस की नौकरी करना चाहती थी
मेहरूनिसा ने आगे बताया कि, शुरूआत में बहुत परेशानी देखी, न परिवार साथ देता था और न ही वक्त. मेरा वजन भी ज्यादा था, इसके बाद मैंने एनसीसी ज्वाइन किया. मुझे आर्मी या पुलिस की नौकरी करनी थी लेकिन मेरा पिता को यह पसंद नहीं था. मैंने एक परीक्षा भी दी थी, जिसमे मैंने उसे पास कर लिया था. यदि मेरे पिता उस वक्त हां कर देते तो मुझे सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिल जाती. इतना कुछ हासिल करने के बावजूद भी वह खुश नहीं हैं. उनके मुताबिक जिस तरह उनका संघर्ष रहा, उन्हें वह पहचान नहीं मिल सकी और अब तो हालत ये हो गई है कि फिलहाल उनके पास नौकरी तक नहीं है.

उनके ऊपर एक किताब लिखी जा रही है
उन्होंने आगे बताया कि, जिंदगी मे इतना संघर्ष रहा कि मैं शादी भी नहीं कर सकी. एक सड़क हादसे के बाद मेरी बहन के पति ने उसे छोड़ दिया, जिसके बाद उनके बच्चों की जिम्मेदारी मेरे पास आ गई. मेरी शादी के रिश्ते आते हैं लेकिन बच्चों की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. मेहरूनिसा को अब तक कई अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. हाल ही में उन्हें 8 मार्च को महिला दिवस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से भी अवार्ड से सम्मानित किया गया. इतना ही नहीं उनके ऊपर एक किताब भी लिखी जा रही है


Next Story