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जानिए कैसे बनती है माचिस

Admin2
24 Jun 2023 2:10 PM GMT
जानिए कैसे बनती है माचिस
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हमारे रसोई घर से लेकर अन्य कई कामों में उपयोग होने वाली माचिस का निर्माण कैसे हुआ।आप कभी कभी माचिस को देखते होंगे तो आपके भी मन में इसे लेकर कई सवाल आतें होंगे। आइए आज हम माचिस के इतिहास के बारे में जानेंगे:

भारत में माचिस के निर्माण की शुरुआत साल 1895 से हुई थी। माचिस की पहली फैक्ट्री अहमदाबाद में और फिर कलकत्ता में खुली थी। जो अब तक कलकत्ता में ही माचिस के के व्यापार को दुनिआ भर में फैला रही है।दुनिया में सबसे पहले माचिस का आविष्कार ब्रिटेन में 31 दिसंबर 1827 में हुआ था। जिसके आविष्कारक थे ब्रिटेन के वैज्ञानिक जॉन वॉकर। पहले तो उनके द्वारा बनाई गई माचिस ज्यादा सुरक्षित नहीं थी। जो किसी भी खुरदरी जगह पर रगड़ने से जल जाती थी। दरअसल, माचिस की तीली पर सबसे पहले एंटिमनी सल्फाइड, पोटासियम क्लोरेट और स्टार्च का इस्तेमाल किया गया था।

जिसकी वाजह से नतीजा ये हुआ कि माचिस की तीली जैसे ही रेगमाल पर रगड़ी जाती, तभी छोटा विस्फोट होता। जिसके इसके बाद, माचिस को लेकर कई प्रयोग किए गए। जिसके फलस्वरूप साल 1832 में फ्रांस में एंटिमनी सल्फाइड की जगह माचिस की तीली पर फॉस्फोरस का इस्तेमाल किया गया। सफ़ेद फोस्फोरस मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बड़ा ही हानिकारक होता है और यह एक ज्वलनशील प्रदार्थ होता है। पहले सफेद फॉस्फोरस का इस्तेमाल किया गया जिससे गंध की समस्या का तो समाधान हो गया था. लेकिन जलते वक्त निकले वाला धुआं भी काफी विषैला होता था। इससे बाद में सफेद फॉस्फोरस के इस्तेमाल पर बैन लगा दिया था।सफेद फास्फोरस के गंभीर प्रभावों के कारण कई देशों में 1874 में डेनमार्क, 1897 में फ्रांस, 1898 में स्विट्जरलैंड और 1901 में नीदरलैंड में,बर्न कन्वेंशन, के तहत सितंबर 1906 में बर्न, स्विट्जरलैंड में हुआ था जिसने माचिस में सफेद फास्फोरस के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

जिसके बाद “स्वच्छ” या “सुरक्षा मैच” का विकास हुआ। जिसे सेफ्टी माचिस भी कह जाता है। फास्फोरस का यौगिक रूप ‘फॉस्फोरस सेस्क्यूसल्फाइड’ का माचिस बनाने में इस्तेमाल किया जाने लगा। जो मनुष्य के लिए हानिरहित था। ब्रिटिश कंपनी अलब्राइट एंड विल्सन व्यावसायिक रूप से ‘फॉस्फोरस सेस्क्यूसल्फाइड’ माचीस का उत्पादन करने वाली पहली कंपनी थी। जिसने 1899 में ‘फॉस्फोरस सेस्क्यूसल्फाइड’ की व्यावसायिक मात्रा बनाने का एक सुरक्षित साधन विकसित किया और इसे बेचना शुरू किया। स्वीडन के जोहान एडवर्ड और उनके भाई कार्ल फ्रैंस लुंडस्ट्रॉम ने 1847 के आसपास जोंकोपिंग, स्वीडन में बड़े पैमाने पर मैच उद्योग शुरू किया।

माचिस बनाने के लिए किन किन चीजों की आवश्यकता होती है। आपको बता दें की, इतनी छोटी से माचिस की डब्बी को बनाने में 14 कच्चे माल की जरूरत होती है। जिसमें लाल फास्फोरस, मोम, कागज, स्प्लिंट्स, पोटेशियम क्लोरेट और सल्फर का मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है। इसके अलावा माचिस की डिब्बी दो तरह के बोर्ड से बनते हैं।सबसे अच्छी माचिस की तीली अफ्रीकन ब्लैकवुड से बनती है। पाप्लर नाम के पेड़ की लकड़ी भी माचिस की तीली बनाने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। माचिस की तीली कई तरह की लकड़ियों से बनाई जाती हैं।

भारत में माचिस स्वीडन और जापान से निर्यात किए जाते थे। साल 1910 के आसपास एक जापानी परिवार कलकत्ता में आकर बस गया और उन्होंने देश में माचिस का निर्माण शुरू कर दिए और देखते ही देखते, माचिस बनाने की और भी कई छोटी-छोटी फैक्ट्री लगने लगीं।लेकिन 1927 में तमिलनाडु के शिवाकाशी शहर में माचिस की फैक्ट्री लगने के बाद धीरे-धीरे भारत में माचिस निर्माण का ज्यादा काम दक्षिण भारत में बढ़ने लगा। जिसके बाद आज भी शिवकाशी को माचिस उत्पादन के लिए जाना जाता है। अब भारत में फिलहाल माचिस की कई कंपनिया हैं। अधिकतर फैक्टरीज में अब भी हाथों से काम होता है। जबकि कुछ फैक्ट्रियों में मशीनों की मदद से माचिस बनाई जाती है।

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