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जानिए सुपर अर्थ कैसे बन जाते हैं बाह्यग्रह

Gulabi
5 Feb 2022 2:24 PM GMT
जानिए सुपर अर्थ कैसे बन जाते हैं बाह्यग्रह
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ग्रहों का वर्गीकरण कई तरह से किया जा सकता है
ग्रहों का वर्गीकरण (Classification of Planets) कई तरह से किया जा सकता है. इसका आधार कई बार हमारा सौरमंडल (Solar System) ही होता है. सौरमंडल से दूर स्थित तारों के ग्रहों की विशेषताएं मामले को और भी जटिल बना देती हैं. आमतौर पर आकार के आधार पर बाह्यग्रहों (Exoplanet) का वर्गीकरण होता है. लेकिन पिछले कुछ समय से खगोलविद ऐसे ग्रहों की खोज कर रहे हैं जो पृथ्वी से बड़े, लेकिन नेप्च्यून से छोटे होते हैं जिनके वायुमंडल भी बहुत पतले होते हैं. नए अध्ययन ने इस तरह के ग्रह के निर्माण और उनके वायुमंडल के उड़ने के कारणों का पता लगाया है.
ग्रहों का वर्गीकरण
हमारे सौरमंडल में ही दो प्रकार के ग्रह हैं एक पृथ्वी की तरह पथरीले और दूसरे गुरु ग्रह की तरह विशाल गैसीय ग्रह.कई तरह के ग्रह हमारे सौरमंडल की श्रेणियां में फिट नहीं बैठते. इन दुर्लभ ग्रहों की त्रिज्या पृथ्वी से अधिक और नेप्च्यून से कम होती है. इस श्रेणी में नीचे के ग्रह, जो पृथ्वी से थोड़े बड़े होते हैं उन्हें सुपर अर्थ कहा जाता है, वहीं जो नेप्च्यून से छोटे होते हैं मिनी नेप्च्यून कहलाते हैं.
कैसे बनता है सुपर अर्थ
वैज्ञानिक लंबे समय से ऐसे ग्रहों की निर्माण की जानकारी हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं. मिनी नेप्च्यून जैसे ग्रहों की शुरुआत नेप्च्यून के घने और छोटे प्रारूप से होती है, लेकिन पास के तारे से आने वाले विकिरण उस ग्रह के हाइड्रोजन और हीलियम वाले वायुमंडल को इतना गर्म कर देते हैं कि ये गैसें बाहर चली जाती हैं और पीछे एक घना पथरीली क्रोड़ रह जाती है तो जो तब भी पृथ्वी से बड़ी होती है, जिसका एक पतला वायुमंडल हो सकता है.
इन सवालों के जवाब
लेकिन खगोलविदों ने हबल टेलीस्कोप और केक वेधशाला का उपयोग कर दो तरह मिनी नेप्च्यून के मामले पाए हैं जो अपना फूला हुआ वायुमंडल खो देते और सुपर अर्थ में बदल देते हैं. यह ग्रहों में विविधता का एक और प्रमाण दर्शाता है. यह नई पड़ताल बताती है कि इस तरह के ग्रह कैसे बनते और विकसित होते हैं इसके साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि तारों के ग्रहों के आकार में रोचक अंतर होने की क्या वजह है.
दो अलग तारों के ग्रहों का अध्ययन
नए शोधों में खगोलविदों ने हबल टेलीस्कोप की मदद से HD 63433 नाम के तारे का चक्कर लगाने वाले दो मिनी नेप्च्यून ग्रहों का अध्ययन किया जो 73 प्रकाशवर्ष दूर है. वहीं केक वेधशाला के जरिए 103 प्रकाशवर्ष दूर स्थित TOI 560 तारे के दो मिनी नेप्च्यून ग्रहों का अध्ययन किया.
वायुमंडल से बाहर जाती गैस
अध्ययनों में पाया गया है कि TOI 560 के अंदर के मिनी नेप्च्यून TOI 560.01 (या HD 73583b) और HD 63433 के बाहरी मिनी नेप्च्यून 63433c के वायुमंडलों की गैस बाहर जा रही है जिससे पता चलता है कि वे सुपर अर्थ में बदलने वाले हैं. इस तरह का अवलोकन इससे पहले कभी नहीं पाया गया है.
गैस के निकलने की दिशा
इससे भी रोचक बात यह भी पता चली है कि TOI 560.01 ग्रह से निकलने वाली गैस ग्रह के तारे की ओर जा रही है. यह एक अप्रत्याशित अवलोकन है, अधिकांश प्रतिमान यह अनुमान लगाते हैं कि गैस तारे से दूर जानी चाहिए. इसका स्पष्ट मतलब यही है कि हमें अभी काफी कुछ जानना समझना है.
दो ही श्रेणी
अभी तक खोजे गए छोटे पथरीले बाह्यग्रह दो ही श्रेणियों में रखे गए हैं – मिनी नेप्च्यून और सुपर अर्थ. सुपर अर्थ पृथ्वी से 1.6 गुना बड़े होते हैं जबकि मिनी नेप्च्यून पृथ्वी से दो या चार गुना बड़े होते हैं. ऐसे ग्रह कम होते हैं, लेकिन हमारे सौरमंडल में नही होते. आकार में अंतर की एक वजह यह है कि मिनी नेप्चून सुपर अर्थ में बदल जाते हैं. अपने तारे के पास होने के कारण इनका हाइड्रोजन और हीलियम वाला वायुमंडल उड़ जाता है. जिसके बाद एक पथरीला ग्रह रह जाता है और बीच की स्थति ही नहीं बन पाती है.
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