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जानिए रहस्यमयी एवं प्राचीन लेपाक्षी मंदिर के बारे में

Gulabi
7 Jan 2022 7:05 AM GMT
जानिए रहस्यमयी एवं प्राचीन लेपाक्षी मंदिर के बारे में
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भारत आदि काल से ऋषि-मुनियों एवं मंदिरों का देश रहा है
भारत आदि काल से ऋषि-मुनियों एवं मंदिरों का देश रहा है. यहां हजारों साल प्राचीन एवं नये अनगिनत मंदिर मिलेंगे, कुछ मंदिरों के साथ कुछ चौंकानेवाली एवं चमत्कारी बातें भी जुड़ी हुई हैं, जिसकी महत्ता और मान्यताओं को विज्ञान तक भी चुनौती नहीं दे सका है. आज हम आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अनंतपुर जिले (Anantpur District) में स्थित एक ऐसे ही रहस्यमयी एवं प्राचीन लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple) की बात करेंगे, जिसके बारे में प्रत्यक्षदर्शियों का मानना है कि इस मंदिर में एक विशाल स्तम्भ सैकड़ों सालों से हवा में लटका हुआ है. आइये जानें इस रहस्यमयी मंदिर में किस देवी-देवता की प्रतिमा स्थापित है और लटकते खम्भों के बारे में किस तरह की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं.
भगवान शिव इस रूप में विद्यमान हैं इस मंदिर में
बंगलुरू से करीब 122 किमी दूर अनंतपुर जिले का यह लेपाक्षी मंदिर 'हैंगिंग पिलर टेंपल' (Hanging Pillar Temple) के नाम से दुनिया भर में मशहूर है. यहां कुल 70 स्तम्भ हैं. मंदिर के गर्भ में भगवान शिव के क्रूर स्वरूप वीरभद्र की प्रतिमा स्थापित है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वीरभद्र महाराज दक्ष के यज्ञ के बाद अस्तित्व में आये थे. मंदिर में भगवान वीरभद्र के अलावा भगवान शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर की प्रतिमा भी स्थापित है. यहां स्थापित माता को भद्रकाली कहते हैं. लेपाक्षी मंदिर के स्तम्भ को आकाश स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है. इसमें एक स्तम्भ जमीन से एक इंच ऊपर उठा हुआ है. कहते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के समय अंग्रेजों ने इस रहस्य को जानने की तमाम कोशिशें की, लेकिन वे असफल रहे.
हवा में झूलते खम्भे का रहस्य एवं मान्यता!
यहां आने वाले श्रद्धालु इस स्तम्भ के नीचे से कोई कपड़ा डालकर दूसरी तरफ से निकालने का प्रयास करते हैं, जो इस प्रयास में सफल होता है, मान्यता है कि उसके घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है. कहते हैं कि झूलते खंभे का रहस्य जानने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने 1902 में इस मंदिर के झूलते खंभे के रहस्य को समझने की अथक कोशिश की. उसने हवा में झूलते खंभों पर हथौड़ा चलाया. इस वजह से करीब 25 फीट दूर स्थित कुछ खंभों पर दरारें आ गईं, जिससे पता चला कि मंदिर का सारा वजन इसी झूलते खंभे पर टिका हुआ है. लेकिन अंत तक वह झूलते खंभों के रहस्य को नहीं समझ सका और इसे कुदरत का करिश्मा मानते हुए हार स्वीकार कर लिया.
लेपाक्षी नाम क्यों पड़ा
कर्नाटक के कुर्मासेलम की पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर कछुए के आकार में बना है. यहां स्थापित शिलालेखों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 1583 में विजय नगर के राजा के यहां कार्यरत दो भाइयों विरुपन्ना एवं विरन्ना ने करवाया था. हांलाकि पौराणिक मान्यतानुसार इस मंदिर का निर्माण महर्षि अगस्त्य ने करवाया था. वाल्मीकि कृत रामायण में इस मंदिर के संदर्भ में उल्लेखित है कि इसी स्थान पर मां सीता की रक्षार्थ जटायु रावण से युद्ध कर घायल हुआ था. जब भगवान राम एवं लक्ष्मण मां सीता की खोज करते हुए इस स्थान से गुजरे तो उन्हें मुर्छित अवस्था में जटायु मिला. श्रीराम ने जटायु को हाथ में लेकर कहा 'उठो पक्षी राज' इसे तेलुगू में ले पाक्षी कहते हैं. इसके बाद से ही इसका नाम लेपाक्षी पड़ गया. मंदिर परिसर में एक बड़ा से पैर का निशान भी है, जिसे त्रेता युग का प्रमाण बताया जाता है. इस पैर को कोई श्रीराम का बताता है तो कोई मां सीता का
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