जरा हटके

वीरेन डंगवाल की याद में कवि गोष्ठी

Nilmani Pal
6 Aug 2023 7:18 AM GMT
वीरेन डंगवाल की याद में कवि गोष्ठी
x
प्रसिद्ध कवि, पत्रकार और अनुवादक वीरेन डंगवाल
पहला कविता पाठ -कौशल किशोर (कार्यकारी अध्यक्ष, जन संस्कृति मंच, लखनऊ)
दूसरा कविता पाठ -भगवान स्वरूप कटियार ( जन संस्कृति मंच, लखनऊ)
लखनऊ: प्रसिद्ध कवि, पत्रकार और अनुवादक वीरेन डंगवाल के जन्मदिन के अवसर पर जन संस्कृति मंच की ओर से कलाघर, विकासनगर (लखनऊ) में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। इसकी शुरुआत कौशल किशोर ने की। उनका कहना था कि वीरेन डंगवाल कैंसर जैसी असाध्य बीमारी से जूझते हुए असमय चले गए। वैसे वीरेन सारी जिंदगी इस व्यवस्था के कैंसर से लड़ते रहे हैं। उनका रचना संसार इसका उदाहरण है। कौशल किशोर ने उनकी मशहूर कविता 'इतने भले नहीं बन जाना साथी' का पाठ किया। इसमें वीरेन डंगवाल सजगता का संदेश देते हुए कहते हैं - 'काफ़ी बुरा समय है साथी/गरज रहे हैं घन घमण्ड के नभ की फटती है छाती/अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन/जिस पर बिजली रह-रह अपना चाबुक चमकाती/संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती/इनकी असल समझना साथी/अपनी समझ बदलना साथी'।
इस मौके पर हुई कवि गोष्ठी की शुरुआत जसम लखनऊ के सह सचिव कलीम खान के काव्य पाठ से हुई जिसमें वे कहते हैं 'अभी ना बोले/ अभी चुनाव में बहुत समय है/ अभी ना बोले/ अभी तो चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है/अभी ना बोले/ चुनाव चल रहा है/अभी तो बिल्कुल ना बोलें....अभी तो चुनाव समाप्त हो गया है'।
अगले कवि भगवान स्वरूप कटियार थे। उन्होंने 'सूनी आंखों में सपना बुनना' कविता सुनाई। इसमें वे कहते हैं कि समय चाहे जितना कठिन हो, हमें उम्मीद की डोर को थामे रखना है और बेहतर दुनिया के सपने को जिलाए रखना है। यह बात कविता में कुछ यूं व्यक्त होती है 'इस खराब वक्त में /जब लूट का बाजार गर्म हो / चारो तरफ दहशत और संवैधानिक आवारगी का माहौल हो/ तब किसी पाठशाला में/ अध्यापक का सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाना/ और मजदूर का काम पर जाते हुए /मेहनत और कमाई में यकीन रखना/ आवारा जानवरों से फसल बचाने के लिए /किसान का रात रात भर जागना /इस बात का सबूत है कि/ जुल्मों से लड़ने की शुरुआत /अभी भी हो सकती है /और हमें यही करना है'।
इस मौके पर कौशल किशोर ने अपनी दो कविताओं के माध्यम से वीरेन डंगवाल को याद किया। पहली कविता में इस ग्लोबल दौर में पूंजी की आक्रामकता और बढ़ती अमानवीयता व पतनशीलता सामने आती है। उसमें वे कहते हैं 'उनसे पूछिए/ तो सीना ठोक गर्व से अपने को लिबरल बताते हैं/ गांव नगर डगर के ग्लोबल होने पर खूब इतराते हैं/ ऐसा ही लिबरल दौर है जब पूंजी छुट्टा सांढ की तरह हर जगह मुंह मार रही है/गरीबी दहाड़ रही है/ पानी उतर गया है शर्म नहीं बची है /हत्यारों के साथ होने की उनमें होड़ मची है'।
कौशल किशोर की दूसरी कविता वरवर राव को समर्पित थी। इसका शीर्षक था 'बहुत याद आए बाबा नागार्जुन'। यह दौर है जब अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है। वरवर राव जैसे कवि और बुद्धिजीवी दमन का शिकार बनाए गए हैं, बनाए जा रहे हैं। कविता इसी हकीकत को बयां करती है और इस बात को कहती है कि दमन उत्पीड़न से प्रतिरोध की आवाज को नहीं दबाया जा सकता है । प्रतिरोध की ऐतिहासिकता और उसकी परंपरा है। यह विचार कविता में व्यक्त होता है 'मैं बड़े घर में दाखिल हो चुका था /पर चिड़ियों का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा था/ उस वक्त बहुत याद आए बाबा नागार्जुन /मन मस्तिष्क में उमड़ने घुमाने लगी यह पंक्तियां - जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक, बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक'।
कवि वीरेन डंगवाल की याद में आयोजित इस कवि गोष्ठी में कलाकार धर्मेंद्र कुमार व आलोक कुमार तथा जसम लखनऊ के सचिव फरजाना महदी और सह सचिव राकेश कुमार सैनी मौजूद थे। सभी ने वीरेन डंगवाल को अपना श्रद्धा सुमन अर्पित किया।





Next Story