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करगिल युद्ध ने बदल दी इस गांव के लोगों की किस्मत, जानें क्या है इसकी कहानी

Gulabi
23 Feb 2021 4:07 PM GMT
करगिल युद्ध ने बदल दी इस गांव के लोगों की किस्मत, जानें क्या है इसकी कहानी
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देश में सरहदें कई बार अच्छी होती है तो वही कई बार खराब

देश में सरहदें कई बार अच्छी होती है तो वही कई बार खराब, अच्छी इसलिए क्योंकि सरहदें किसी देश को उसकी पहचान दिलाती है और खराब इसलिए क्योंकि ये सरहदें लोगों को आपस में बांट देती है. बंटवारे के दर्द को भारत से बेहतर और कौन जान सकता है. यहां हुए बंटवारे ने अपने ही मुल्क के लोगों को बेगाना बना दिया. विश्वगुरू कहे जाने वाला हिंदुस्तान दो हिस्सो में बंट गया. एक तरफ भारतीय और दूसरी तरफ पाकिस्तानी.


बंटवारे की इस लकीर के बाद कई जगह ऐसी भी थी जहां दोनों मुल्क अपना अपना दावा ठोंक रहे थे. इसी कड़ी में से एक था जम्मू-कश्मीर के बाल्टिस्तान इलाके का तुरतुक गांव. जब भारत और पाकिस्तान के बीच सरहदों का बंटवारा हुआ तो उस समय ये गांव पाकिस्तान में था. सरहद पर होने के कारण यहां बाहरी लोगों के आने पर पाबंदी थी.

करगिल युद्ध के बाद भारत में हुआ शामिल
यहां के लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह कटे हुए थे, लेकिन जब 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की हार हुई तो ये गांव पाकिस्तान के हाथों से निकल कर भारत में शामिल हो गया. भारत और पाकिस्तान के बीच खींचतान का शिकार रहा तुरतुक बरसों तक बेरुखी का शिकार रहा. हालांकि एक दौर था जब ये इलाका मशहूर सिल्क रोड से जुड़ा हुआ था. जहां से भारत, चीन, रोम और फारस तक व्यापार होता था.

इंडो-आर्यन है यहां के लोग
ये गांव बौद्धों के गढ़ लद्दाख में बसा है, लेकिन यहां ज्यादातर आबादी मुसलमानों की है. ऐसा कहा जाता है कि ये इंडो-आर्यनों के वंशज है. मूल रूप से यहां के लोग बाल्टी भाषा बोलते हैं. ये इलाका कराकोरम पहाड़ों से घिरा हुआ है. यहां दूर-दूर तक जहां देखिए पहाड़ ही पहाड़ नजर आते हैं.

सैलानियों की पहली पसंद हैं ये गांव
भारत को आजादी 70 साल पहले नसीब हुई थी, लेकिन तुरतुक करगिल युद्द के बाद भारत का हिस्सा बन पाया. भारत में शामिल होने के बाद यहां कुछ सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनाए गए हैं, लेकिन अभी ये गांव पूरी तरीके से विकसित नहीं है. एक दौर था जब तुरतुक के लोग कहीं नहीं जाते थे, न ही यहां कोई आता था. लेकिन अब तुरतुक सैलानियों की पहली पसंद बन चुका है.


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