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अमरोहा की शबनम को होने वाली फांसी की सजा को लेकर काफी चर्चा हो रही है
अमरोहा की शबनम को होने वाली फांसी की सजा को लेकर काफी चर्चा हो रही है। हालांकि, तिथि अभी तक तय नहीं है लेकिन इस महीने के आखिर या मार्च के शुरू में उसे फांसी की सजा दी जाएगी। आज हम आपको इस लेख के माध्यम से फांसी देने की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताएंगे। तो आइए जानते हैं फांसी देने से पहले क्या वाकई में सजायाफ्ता से उसकी आखिरी इच्छा पूछी जाती है?
जेल मैन्युल के मुताबिक, मुजरिम को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद, उसी दिन से जल्लाद का काम शुरू हो जाता है। ऑर्डर की कॉपी मुजरिम और उसके परिवार को सौंप दी जाती है। जल्लाद को सूचना मिलने के बाद वो उस जेल का दौरा कर तैयारियों को पूरी कराने में मदद करता है, जहां फांसी दी जानी है।
वैसे तो कई फिल्मों में ड्रामेटाइज कर फांसी के समय आखिरी इच्छा पूछने के दृश्य को दिखाया जाता है, जबकि हकीकत कुछ और ही है। फांसी देने के पहले दोषी की अंतिम इच्छा पूछे जाने का कोई नियम नहीं है। हालांकि, सजायाफ्ता से ये जरूर पूछा जाता है कि वो क्या कुछ खास खाना चाहता है या किसी तरह की कोई पूजा या आराधना करना चाहता है। इसके साथ ही उसकी वसीयत के बारे में भी पूछा जाता है।
दिल्ली जेल में लंबे समय तक लॉ अफसर रहे सुनील गुप्ता ने पिछले दिनों मीडिया को बताया था, "आखिरी इच्छा वाली कोई बात नहीं होती है। मान लीजिए, अपराधी आखिरी इच्छा के तौर पर कह दे कि उसे फांसी नहीं दी जाए, तो उसकी बात नहीं मानी जा सकती या कोई भी ऐसी चीज मांग ले, जो आप नहीं दे सकते। यह भ्रम है, जेल मैनुअल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है?"
फांसी के बाद पहले पोस्टमार्टम जांच नहीं की जाती थी, लेकिन अब न्यायिक निर्णय और मानवाधिकार आयोग के निर्देशानुसार अन्त्यपरीक्षण जरूरी है। हालांकि, अभी तक उत्तर प्रदेश जेल मैनुअल में संशोधन नहीं गया है।
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