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दुनिया में छा गए थे इस प्रजाति के घोड़े, अब जीन्स से सामने आई ये बात

Gulabi
23 Oct 2021 9:39 AM GMT
दुनिया में छा गए थे इस प्रजाति के घोड़े, अब जीन्स से सामने आई ये बात
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दुनिया में छा गए थे इस प्रजाति के घोड़े

सभी पालतू घोड़ों (Horses) के पूर्वज पश्चिम यूरेशिया (Western Eurasia) के स्टेपीज घास के मैदानों से आए थे. यह नतीजा ने अनुवंशिक शोध से निकला है. इस अध्ययन के मुताबिक घोड़ों के ये पूर्वज 4200 साल पहले इन मैदानों में पाए जाते थे. ऐसा लगता है कि आधुनिक रूस (Russia) के इलाकों में ये शक्तिशाली घोड़ों ने एक हजार सालों ही में यूरोप और एशिया की दूसरी प्रजातियों की जगह तक ले ली. यहां तक कि एक हजार ईसा पूर्व के समय तक ये घोड़े वैश्विक हो गए थे और उन्होने मानव गतिविधि, संस्कृति और युद्ध कला को भी बदल कर रख दिया था.


इससे पहले भी पाले जाते थे घोड़े

दिलचस्प बात यह है कि रूस के निचले वोल्गा डॉन इलाके में पनपी घोड़ों की यह प्रजाति मानव द्वारा पाली जाने वाली घोड़ों की पहली प्रजाति नहीं थी. इससे भी पुराने उदाहरण हैं जिसमें मध्य एशिया, आइबेरिया, एनातोलिया इलाकों घुड़सवारी के उदाहरण देखने को मिलते हैं. लेकिन जेनेटिक प्रोफाइल से पता चलता है कि केवल इसी प्रजाति के जीव इंसानों के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी रहे हैं.

जीनोम का अध्ययन

शोधकर्ताओं ने पुरातन काल में पाले गए घोड़ों हर जगह के 273 घोड़ों के जीनोम की जनसंख्या बदलाव का नक्शा बनाया. उन्होंने पाय कि आधुनिक पालतू घोड़े एक समूह में जमा हो गए थे जो ईसा पूर्व दूसरी सदी के आसपास भौगोलिक रूप से ज्यादा फैल गया था. अंत में यह समूह अनुवंशिकी तौर पर उन घोड़ों से मिलता जुलता था जो ईसा पूर्व तीसरी सदी में पश्चिमी यूरेशिया में रहा करते थे.

सभी पुरातन घोड़ों की जगह ली इन्होंने

ये नतीजे सुझाते हैं कि एक तरह से आधुनिक घरेलू घोड़ों के सभी पूर्वजों की जगह इन घोड़ों ने ले ली थी. शोधकर्ताओं ने लिखा है कि रथों के लिए घोड़ों की नई बेहतर प्रजाति ने पूरी दुनिया के कांस्य युगीन समाजों को ईसा पूर्व 2000 के बाद के समय बदल डाला था. यूरोप और पश्चिम एशिया में नए युद्ध कौशलों का विकास, घोड़ों को प्रतिष्ठा से जोड़कर देखना, जैसे कई कारक इसकी वजह हो सकते हैं जिससे इतिहास के अध्ययन का एक नया आयाम खुलता है.

दो ही जीन खास थे इनके

रूस के इन पुरातन इलाकों में पाले गए इन घोड़ों के दो मुख्य जीन उन्होंने अपने समय की बाकी जनसंख्या से अलग करते हैं. इनमें से GSDC का संबंध विनम्र बर्ताव से है तो दूसरी जीन ZFPM1 का संबंध मजबूत रीढ़ की हड्डी से है. दोनों ही जीन्स से पता चलता है कि घोड़ों को सवारी, भार सहन करने और शांत और विश्वसनीय बर्ताव के लिए पाला जाता है.

इस धारणा को बदलने की चुनौती

नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन की पड़ताल के नतीजे उस पुरानी धारणा के अध्ययन की सूची में जुड़ गए हैं जिसमें माना जाता है कि घोड़े की पीठ पर सवारी को यूरोप में पूर्व के घुमंतु प्रजातियां पांच हजार साल पहले लाईं थीं. इसके विपरीत इस अध्ययन का कहना है कि धुड़सवारी का वैश्वीकरण उस समय के कम से कम हजार साल बाद हुआ था जब पश्चिम यूरेशियाई स्टेपीज से घोड़े पश्चिम एवं दक्षिण पूर्व यूरोप, मध्य एशिया और मंगोलिया में फैले.

और इंसान को मिला उसका आदर्श घोड़ा

वही 1500 से 1000 ईसा पूर्व काल की अनुवंशिकी से पता चलता है कि इन पालतू घोड़ों ने तब तक सभी स्थानीय जनसंख्या की जगह ले ली थी और तब तक यह पूरी तरह इंसानों के लिए आदर्श घोड़ा बन गया था. शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इन घोड़ों को पालने वाले पश्चिम यूरेशिया से बाहर निकलने को मजबूर हुए हों और अपने साथ इन घोड़ों को ले गए हों.

वो रेनबो आईलैंड जहां मसाले की तरह खाई जाती है वहां की मिट्टी

इसके कुछ सदियों बाद उन्होंने एशिया के इलाकों को जीता जिससे इन घोड़ों की प्रजाति इन इलाकों में फैली. यूरोप में इनकी वजह दूसरी रही होगी. युद्ध की जगह घोड़ों को प्रशिक्षण देने वाले रथ बनाने वालों ने इन्होंने यूरोप के दूसरे भूभाग में फैलाया होगा और ये घोड़े हर जगह के घोड़ों से बहुत बेहतर थे. शोधकर्ताओं का मानना है कि ये घोड़े कांस्य युग में बढ़ते लंबे व्यापार की आवश्यकताओं की पूरा करने के लिए उपयुक्त थे जो धीरे धीरे प्रतिष्ठ की वस्तु तक बनते गए.
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