जरा हटके

बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने बेटे को खोया , पोती को पढ़ने के लिए घर बीच दिया लेकिन ज़िन्दगी में हार नहीं मानी जाने इनकी कहानी

HARRY
12 Feb 2021 3:38 PM GMT
बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने बेटे को खोया , पोती को पढ़ने के लिए घर बीच दिया लेकिन ज़िन्दगी में हार नहीं मानी जाने इनकी कहानी
x
मुंबई में एक बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने पोती को पढ़ाने के लिए अपना घर बेच दिया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | मुंबई में एक बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर ने पोती को पढ़ाने के लिए अपना घर बेच दिया। बुजुर्ग ऑटो ड्राइवर की यह दिल छू लेने वाली कहानी जानकर चारों तरफ से उनके लिए मदद के हाथ आगे आ रहे हैं। ऑटो ड्राइवर देसराज पर दो साल के भीतर दो बेटों की मौत से दूखों को पहाड़ टूटा, मगर वह कभी नहीं टूटे। 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' ने अपने फेसबुक वॉल पर देसराज की कहानी को साझा किया है और बताया कि उन्हें अपनी पोती को पढ़ाने के लिए क्या-क्या संघर्ष करने पड़े हैं।

ऑटो ड्राइवर देसराज ने 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' को दिए इंटरव्यू में बताया, '6 साल पहले मेरा बड़ा बेटा घर से गायब हो गया। वह हर दिन जैसे काम के लिए जाता था, वैसे ही उस दिन भी गया, मगर कभी लौटा नहीं है। एक सप्ताह बाद लोगों को उसकी डेडबॉडी ऑटो में मिली। उसकी मौत के साथ कुछ हद तक मैं भी मर ही गया था, मगर जिम्मेदारियों की भार की वजह से मुझे शोक का भी समय नहीं मिला और अगले दिन ही मैं ऑटो चलाने सड़क पर निकल गया।'
उन्होंने आगे कहा, 'मगर दो साल बाद एक और दुख का पहाड़ टूटा और मैंने अपना दूसरा बेटा भी खो दिया। जब मैं ऑटो चला रहा था, तभी एक कॉल आई- 'आपके बेटा का शव प्लेटफॉर्म नंबर पर मिला है, सुसाइड कर लिया है उसने।' दो बेटों की चिताओं को आग दिया है मैंने, इससे बुरी बात एक बाप के लिए और क्या हो सकती है?'
देसराज ने आगे बताया, 'यह मेरी बहू और उनके 4 बच्चों की ज़िम्मेदारी थी, जो मुझे जिंदा रखा। दाह संस्कार के बाद मेरी पोती, जो उस वक्त 9वीं कक्षा में थी, मुझसे पूछा- दादाजी, क्या मैं स्कूल छोड़ दूंगी? 'मैंने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और उसे आश्वस्त किया, कभी नहीं! आप जितना चाहें पढ़ाई करें। ' मैंने अधिक समय तक काम करना शुरू कर दिया। मैं घर से सुबह 6 बजे निकलता और देर रात तक ऑटो चलाकर घर लौटता। तब भी मैं महज 10 हजार रुपए ही कमा पाता था। बच्चों की स्कूल फीस और किताबों पर 6 हजार खरच करने के बाद मेरे पास सात लोगों का भरन-पोषण करने के लिए सिर्फ 4 हजार रुपए बचते थे। इसी में किसी तरह गुजारा करना पड़ता था।
वह आगे कहते हैं, 'ज्यादातर दिन हमारे पास खाने के लिए मुश्किल से ही कुछ होता है। एक बार जब मेरी पत्नी बीमार हो गई, तो मुझे उसकी दवाएं खरीदने के लिए घर-घर जाकर भीख मांगनी पड़ी। लेकिन पिछले साल जब मेरी पोती ने मुझे बताया कि उसकी 12वीं बोर्ड में 80% अंक आए हैं, तो मैं उस दिन खुशी से आसमान में उड़ने लगा, पूरे दिन मैंने अपने सभी ग्राहकों को मुफ्त सवारी दी। उस दिन मेरी पोती ने मुझसे कहा, 'दादाजी, मैं दिल्ली में बी.एड कोर्स करना चाहती हूं।' पोती को दूसरे शहर में पढ़ाना मेरी क्षमता से परे था, लेकिन मुझे किसी भी कीमत पर उसके सपने पूरे करने थे। इसलिए, मैंने अपना घर बेच दिया और उसकी फीस चुकाई। फिर मैंने अपनी पत्नी, बहू और अन्य पोतों को हमारे गांव में अपने रिश्तेदारों के घर भेज दिया, जबकि मैंने मुंबई में बिना छत के रहना जारी रखा।
उन्होंने कहा, 'अब एक साल हो गया है और ईमानदारी से कहूं तो जीवन खराब नहीं है। मैं अपने ऑटो में खाता हूं और सोता हूं और दिन के दौरान मैं अपने यात्रियों को बैठाता हूं। बैस बैठे-बैठे कभी पैर में दर्द हो जाता है। मगर मेरी पोती मुझे फोन करती है और मुझे बताती है कि वह अपनी कक्षा में प्रथम आई है तो और मेरा सारा दर्द मिट जाता है। मैं उसके शिक्षक बनने की प्रतीक्षा कर रहा हूं, ताकि मैं उसे गले लगा सकूं और कह सकूं, 'तुमने मुझे इतना गौरवान्वित किया है।' वह हमारे परिवार में पहली ग्रेजुएट बनने जा रही है। उन्होंने कहा कि मैं तो पूरे हफ्ते सबको फ्री राइड दूंगा।
ऑटो चालक देसराज की यह कहानी सोशल मीडिया पर कई लोगों को छू गई है। कई लोगों ने उनकी मदद करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया है। एक सोशल मीडिया यूजर ने कहा कि वह देसराज को आर्थिक तौर पर कुछ दान देना चाहते हैं। वहीं, गुंजन रत्ती नाम के एक फेसबुक यूजर ऑटो चालक देसराज की मदद के लिए फंड इकट्ठा करने का अभियान चलाया है। इसके तहत अब तक करीब पांच लाख से अधिक की मदद आ चुकी है।


Next Story