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श्मशान घाट में लगने लगी क्लास, गरीब बच्चों के मां-बाप के पास नहीं थे पैसे

Shiddhant Shriwas
4 Aug 2021 12:41 PM GMT
श्मशान घाट में लगने लगी क्लास, गरीब बच्चों के मां-बाप के पास नहीं थे पैसे
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कहा जाता है कि 'जिंदा हो तो ताकत रखो बाजुओं में लहरों के खिलाफ तैरने की, क्योंकि लहरों के साथ बहना तो लाशों का काम है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कहा जाता है कि 'जिंदा हो तो ताकत रखो बाजुओं में लहरों के खिलाफ तैरने की, क्योंकि लहरों के साथ बहना तो लाशों का काम है.' ऐसा ही कुछ बिहार के मुजफ्फरपुर में तीन दोस्त अपने मजबूत हौसले के साथ करते दिख रहे हैं. जिस जगह पर जाना लोग पसंद नहीं करते, वहां पर युवा सुमित अपने दो अन्य दोस्तों के साथ मिलकर गरीब बच्चों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.

श्मशान घाट में लगने लगी क्लास
बात मुजफ्फरपुर शहर के सिकन्दरपुर स्थित मुक्तिधाम (श्मशान घाट) की हो रही है. इस इलाके के गरीब परिवार के बच्चे अक्सर आने वाले शवों पर से बताशा (एक प्रकार की मिठाई), फल और पैसे चुनते थे. लेकिन, आज वे 'दो एकम दो, दो दूनी चार पढ़' रहे हैं. यह सब मुमकिन हुआ है जिज्ञासा समाज कल्याण के संस्थापक सुमित की बदौलत.
दाह संस्कार पर बच्चे बिनते थे बताशा
सुमित बताते हैं, 'साल 2017 में एक परिचित की मौत हो गई थी. शव के दाह संस्कार को लेकर वह भी मुक्तिधाम आए थे. उसी समय देखा कि किस तरह बच्चे शव पर से बताशा और फल चुन रहे हैं. यह देखकर उन्हें बहुत बुरा लगा और उन्होंने इन बच्चों के लिए कुछ करने को ठान ली. पढ़ने-लिखने और खेलने की उम्र में ये बच्चे अपने पेट के लिए मारामारी कर रहे थे. यहीं से उनके मन मे जिज्ञासा जगी की क्यों न इन्हें साक्षर बनाया जाए.'
गरीब बच्चों के मां-बाप के पास नहीं थे पैसे
सुमित ने कहा हैं कि उन्होंने योजना तो बना ली, लेकिन इन गरीब बच्चों के मां-बाप के पास इतना पैसे नहीं थे कि वे इनकी पढ़ाई पर खर्च कर सके और बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल भेजते. इस समस्या के समाधान के लिए खुद इन बच्चों को साक्षर करने का मन बनाया और मुक्तिधाम स्थित महाकाल मंदिर के पुजारी से संपर्क किया. पुजारी सोखी लाल मंडल से जब इस संदर्भ में बातचीत की तब उन्होंने खुद ही आसपास के लोगों को बुलाया और उन्हें बच्चों की पढ़ाई के विषय में जागरूक किया. इसके बाद अभिभावक भी तैयार हो गए.
सप्ताह में तीन दिन लगने लगी स्कूल
सुमित ने बताया कि वहीं एक चबूतरे पर सप्ताह में तीन दिन स्कूल लगने लगी. उन्होंने बताया कि प्रारंभ में एक-एककर कर 46 बच्चे जमा हो गए और इन्हें मुफ्त शिक्षा मिलने लगी. इसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों अभिराज कुमार और सुमन सौरभ को भी पढ़ाने के लिए तैयार कर लिया. उन्होंने बताया कि आज बच्चों की संख्या बढ़कर आज 81 हो गयी है.
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