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गरीबों के बच्चों के पास न कोई इंटरनेट न मोबाइल, फिर भी 6 स्टूडेंट्स ले रही है फ्लाईओवर के नीचे 'पाठशाला'

Tara Tandi
17 April 2021 10:15 AM GMT
गरीबों के बच्चों के पास न कोई इंटरनेट न मोबाइल, फिर भी 6 स्टूडेंट्स ले रही है फ्लाईओवर के नीचे पाठशाला
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कोरोना महामारी के समय ने स्कूली छात्रों को घर पर रहने और अपनी पढ़ाई ऑनलाइन जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोरोना महामारी के समय ने स्कूली छात्रों को घर पर रहने और अपनी पढ़ाई ऑनलाइन जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया है. इससे मजदूरों के बच्चों के पास अपनी पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि ये स्मार्टफोन और 24 घंटे इंटरनेट कनेक्टिविटी का खर्च नहीं उठा सकते, इस बात को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के कुछ विद्यार्थी स्वयं बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं. राजधानी दिल्ली के मयूर विहार फेज वन स्थित कुछ छात्रों ने मिलकर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए 'यमुना खादर पाठशाला' खोली है. फ्लाईओवर के नीचे बने इस स्कूल में लगभग 250 बच्चे पढ़ते हैं.

फ्लाईओवर के नीचे चल रही इस पाठशाला को 6 टीचर मिलकर चलाते हैं, जो कि खुद छात्र हैं. जिनमें पहले पन्ना लाल जो की 12वीं पास हैं और एक साल का कम्प्यूटर कोर्स किया हुआ है. वहीं दूसरे देवेंद्र हैं, जो कि बीएएलएलबी के छात्र हैं.
तीसरे टीचर एमए के छात्र दीपक चौधरी हैं, जिन्होंने 2 साल का कम्प्यूटर कोर्स किया हुआ है. चौथी टीचर रूपम हैं, जो कि बीए की छात्रा हैं. पांचवे टीचर 12 वीं पास मुकेश हैं, जिन्होंने एक साल का कम्प्यूटर कोर्स किया है. छठवें टीचर देव पाल हैं, जो इस स्कूल का सारा मैनेजमेंट देखते हैं.
ये लोग उन बच्चों के लिए स्कूल चला रहे हैं, जिनके पास न तो इतना पैसा है और न ही कोरोना के समय में पढ़ाई करने के लिए कोई व्यवस्था है. इन बच्चों के माता-पिता या तो दिहाड़ी मजदूर हैं या रिक्शा चालक हैं और अपना गुजर-बसर करने के लिए मेहनत करते हैं. पन्ना लाल ने बताया, 'मैं एक साल पहले से बच्चों को पढ़ा रहा हूं. यहां कुछ समस्याएं हैं, जिनके कारण बच्चे ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं और उनके माता-पिता भी स्मार्टफोन नहीं खरीद सकते.'
देव पाल, जो यमुना खादर पाठशाला का मैनेजमेंट देखते हैं, उन्होंने बताया, 'इस पाठशाला को पिछले साल मार्च महीने से शुरू करने का सोचा था, जिसके बाद लॉकडाउन लग गया, फिर हमने ऑनलाइन क्लास शूरु करने का सोचा, लेकिन बिजली न होने के कारण और स्मार्ट फोन न होने के कारण ये शुरू नहीं हो सकी.' देव पाल ने कहा, 'कुछ समय बाद हमने नर्सरी से कक्षा 10 तक के छात्रों को शारीरिक रूप से पढ़ाना शुरू किया. हमारे पास कुल छह शिक्षक हैं.' उन्होंने आगे कहा, कुछ समय बाद हमने नर्सरी से लेकर 10वीं तक के छात्रों के बच्चों की पढ़ाई शुरू की. हमारे पास इन बच्चों को पढ़ाने के लिए कुल 6 टीचर हैं, जो इन बच्चों को पढ़ाते हैं.
'हम बच्चों पर पैसों को लेकर दबाब नहीं बनाते हैं. वह अपने हिसाब से हमें पैसा देते हैं.' देव पाल ने बताया, 'इस पाठशाला में जितने टीचर पढ़ाते हैं वे खुद छात्र हैं. हमने कुछ लोगों को अपने स्कूल के बारे में बताया था ताकि हमारी आर्थिक परेशानी दूर हो जाएं. लेकिन कोई आगे नहीं आया. उसके बाद हमने ये तक कहा था कि पैसे न देकर टीचर ही भेज दीजिए, लेकिन फिर भी किसी ने मदद नहीं की.'
देव पाल के अनुसार, इन बच्चों को पढ़ाने वाले वे टीचर हैं, जो इन्ही जगहों से निकले हैं साथ ही उन्हें इन बच्चों को काबिल बनाना है, हालांकि इन बच्चों से जो भी पैसा मिलता है उससे ये टीचर अपनी जीविका भी चलाते हैं.



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