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30 साल बाद मिले बचपन के दोस्त ने झोपड़ी में रहने वाले शख्स की बदल दी किस्मत, किया ये काम

Gulabi
18 Nov 2020 4:04 PM GMT
30 साल बाद मिले बचपन के दोस्त ने झोपड़ी में रहने वाले शख्स की बदल दी किस्मत, किया ये काम
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मतलब की दोस्ती से परे सच्चे यारों की तलाश सबको रहती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। मतलब की दोस्ती से परे सच्चे यारों की तलाश सबको रहती है। ना जाने अब तक के सफर में आपने कितने खोए और पाए होंगे। आपको तो शायद उस इंसान का नाम भी याद ना हो जिसे स्कूल टाइम में कभी 'पक्का दोस्त' माना था? खैर, दोस्ती क्या है? कहते हैं जो वक्त पर काम आ जाए वही दोस्त है! तो भैया… यह सच्ची कहानी है तमिलनाडु के पुदुकोट्टई के स्कूल के दो यारों मुत्थुकुमार और के. नागेंद्रन की। वैसे तो स्कूल के दोस्तों को बड़े होने के साथ अधिकतर लोग भूल जाते हैं। लेकिन यहां तो स्कूल के यारों ने ऐसी दोस्ती निभाई कि आप भी कहेंगे- पक्की यारी तो यही होती है।

लॉकडाउन ने बनाया जिंदगी को मुश्किल

रिपोर्ट के मुताबिक, 44 वर्षीय मुत्थुकुमार ट्रक चलाकर अपने परिवार का पेट पालते थे। पहले वो महीने के लगभग 10,000 से 15,000 रुपये कमा लेते थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद उनके लिए 1000 से 2000 रुपये कमाना भी मुश्किल हो गया। वह 6 लोगों के परिवार के साथ एक झोपड़ी में गुजारा कर रहे थे। सबके लिए खाने का इंतजाम करना भी उनके लिए एक मुश्किल टास्क बन गया।

जब दोस्त ने देखी घर की हालत

मुत्थुकुमार सितंबर में अपने एक स्कूल टीचर के घर गए थे जहां उनकी मुलाकात स्कूल के दोस्त नागेंद्रन से हुई। उन्होंने नागेंद्रन को अपने घर आने का न्यौता दिया। जब नागेंद्रन, मुत्थुकुमार के यहां पहुंचे और उनके घर की हालत देखी तो वह काफी दुखी हुए। इसके बाद उन्होंने मुत्थुकुमार की मदद के लिए TECL हायर सेकेंडरी स्कूल पुदुक्कोट्टई के दोस्तों के व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए फंड जुटाया।

30 साल बाद हुई थी दोनों की मुलाकात

नागेंद्रन ने बताया, 'हम स्कूल की पढ़ाई पूरी होने लगभग 30 साल बाद मिले। मैं उसके घर की हालत देखकर परेशान था। 'गाजा चक्रवात' ने घर की छत और आस-पास के पेड़ों को तबाह कर दिया था। घर में दाखिल होने के लिए भी झुकना पड़ता था। मैं जानता था कि मुझे उसकी मदद करनी है। मैंने एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर उसके घर की तस्वीरें और वीडियो शेयर कीं, जिसके बाद कईयों ने उसकी सहायता के लिए हाथ बढ़ाया।

तीन महीने में तैयार कर दिया घर

बिना किसी इंजीनियर की मदद के नागेंद्रन और उनके साथियों ने तीन महीने के भीतर 1.50 लाख रुपये में घर बनाया और दिवाली के गिफ्ट के तौर पर वह मुत्थुकुमार और उनके परिवार को सौंप दिया। नागेंद्रन ने कहा, 'भले ही हम संपर्क में नहीं हैं लेकिन स्कूल के दोस्त हमेशा खास होते हैं। हमें अपने दोस्तों की जरूरत में मदद करनी चाहिए। लॉकडाउन के दौरान बहुतों को नुकसान उठाना पड़ा है। अगर आप किसी ऐसे दोस्त को जानते हैं जो मुसीबत में है तो कृपया उसकी मदद के लिए कुछ करें।'

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