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भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो बहुत खूबसूरत है और भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं। सभी मंदिर अपनी नक्काशी से लेकर अपनी कहानियों तक के लिए मशहूर है।
जनता से रिश्ता। भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो बहुत खूबसूरत है और भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं। सभी मंदिर अपनी नक्काशी से लेकर अपनी कहानियों तक के लिए मशहूर है। इसी सूची में एक मंदिर शामिल है कर्नाटक का। यह मंदिर कर्नाटक राज्य के हासन ज़िले के बेलूर नामक ऐतिहासिक स्थान पर बना हुआ है और इस मंदिर को देखने के लिए लोग विदेश से भी आते हैं। यह मंदिर अपने आपमें बड़ा खूबसूरत है और इस मंदिर को देखने के बाद आँखों को ही नहीं बल्कि मन को भी एक अलग ही अनुभूति होती है। कहा जाता है यह मंदिर क़रीब 900 सालों पुराना है और इस मंदिर का निर्माण होयसल वंश के राजा विष्णुवर्धन द्वारा 1106 से 1117 के बीच करवाया गया था।
1104 में युद्ध जीतने की ख़ुशी में विष्णुवर्धन ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ करवाया था जो की 1117 में पूरा हुआ और मंदिर बनकर तैयार हो गया। उस समय में इस मंदिर को "द्वारसमुद्र" के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है "समुद्र का द्वार"। इस मंदिर को देखने पर पता चलता है कि इसमें कई जगह बहुत ही बारीकी के साथ शिल्पकारी की गई है। इस शिल्पकारी को सामान्य आंखों से देख पाना बहुत मुश्किल है। आपको उसे देखने और समझने के लिए मेग्नीफाइन ग्लॉस की जरूरत होगी। यह वाकई में बड़ा अद्भुत है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि उस समय के कारीगर कितने प्रतिभाशाली थे कि उन्होंने इस कारीगरी को किया। यह उस दौर की बात है जब मेग्नीफाईन ग्लास की खोज नहीं हुई थी। कहा जाता है यह विशाल मंदिर चारों ओर से भित्तियों से घिरा हुआ है।
इस मंदिर के अंदर जाने के लिए दो प्रवेश द्वार हैं। इनमे पूर्वी प्रवेश द्वार पर पाँच तलों का विशाल गोपुरम है। हालाँकि दिल्ली सल्तनत के आक्रमणकारियों ने मुख्य द्वार को नष्ट कर दिया था तो विजयनगर साम्राज्य के काल में इसका पुनर्निर्माण करवाया गया था। यहाँ मंदिर के दो सर्वोच्च कोनों पर गौमाता की सींग के आकार की दो संरचनाएं हैं और इसी के चलते इसे गोपुरम नाम से जाना जाता है। इनके दो सींगों के मध्य पाँच सुनहरे कलश हैं जो इनकी शोभा को बढ़ाते हैं। यहाँ मंदिर परिसर के भीतर, गोपुरम के बायीं ओर, दक्षिण दिशा में 42 फुट ऊंचा विशाल दीपस्तंभ है जिसे एकल शिला में उकेरा गया है। जी दरअसल इसे गुरुत्वाकर्षण विरोधी स्तंभ के नाम भी जाना जाता है। यहाँ एक ऊंची पीठिका पर यह स्तंभ बिना संबल अपने ही भार पर खड़ा है जो हैरान करने वाली बात है।
यहाँ के मुख्य मंदिर की बाहरी भित्तियों पर मानवों, पशुओं, देवी तथा देवताओं की प्रतिमाएँ लगी हुईं हैं जो मंदिर के एक अलग ही रंग को दर्शाती है। यहाँ मंदिर का पश्चिमी भाग गर्भगृह की तरफ जाता है। यहाँ गर्भगृह के भीतर आप चतुर्भुज मुद्रा में भगवान विष्णु की 6 फुट ऊंची तथा नाना प्रकार से अलंकृत अत्यंत नयनाभिराम प्रतिमा देख सकते हैं।
इस प्रतिमा में भगवान विष्णु ने अपने ऊपरी दोनों हाथों में शंख एवं चक्र धारण किया हुआ है तथा निचले दोनों हाथों में कमल तथा गदा धारण किया है। वहीं इस दौरान उनके प्रभामंडल पर भगवान विष्णु के दस अवतारों की चक्रीय उत्कीर्णन की गई है। इस मंदिर के बारे में जितनी जानकारी दी जाए उतनी कम है क्योंकि यह अनेकों कलाकृतियों, शिल्पकारियों से सुशोभित है और इस मंदिर के दर्शन करने के बाद मन को आनंद की अनुभूति होती है।
Shantanu Roy
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