साली यानी कि सिस्टर इन लॉ के रिश्ते को अगर इस दृष्टि से ही देखा जाए तो बेहतर है। बहन से भी मधुर छेड़छाड़, हंसी मजाक, चुहलबाजी की जाती है लेकिन हमेशा मर्यादा के भीतर रहकर। इसी तरह साली से भी ऐसे ही मर्यादित व्यवहार किया जाना चाहिए।
किशोर वय की लड़कियां अक्सर नादान होती हैं। उन्हें अच्छे बुरे की पहचान नहीं होती। किसी पर वे बगैर सोचे समझे एकदम विश्वास कर बैठती हैं। इसी का फायदा उठाने वाले कई दिलफेंक मजनू किस्म के जीजा होते हैं जो उन्हें बहलाने फुसलाने की पुरजोर कोशिश कर कई बार कामयाब होकर उनसे जिस्मानी ताल्लुक बना लेते हैं। उनका तो कुछ नहीं बिगड़ता लेकिन लड़की की जि़ंदगी जरूर तबाह हो जाती है। इतना ही नहीं, उसकी अपनी सगी बहन उसे सौतन मान कर उससे नफरत करने लगती है।
लड़कियों को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि ऐसा पुरूष जिसका कोई चरित्र नहीं, क्या उनके आदर और प्यार के काबिल है? जिसने उसकी बहन को धोखा दिया, क्या गारंटी है कि वह कल उन्हें भी धोखा नहीं देगा। जिसका प्यार मात्र छलावा, दिल बहलाव का साधन या सामयिक आकर्षण है, क्या वह प्यार के काबिल है ?
जीजा साली का रिश्ता निस्संदेह बहुत आकर्षक होता है। इसका नयापन, नजदीकी एवं लुभावना होता है। जीजा घर के सदस्य की तरह ही होता है। घर के हर सुख-दुख का वह सहभागी होता है। ये अच्छे संस्कार ही हैं जो व्यक्ति में हमेशा मर्यादित व्यवहार करने की आदत बनाये रखते हैं। जीजा अगर रंगीन मिजाज का है तो यह साली के हित में होगा कि वह उसे बढ़ावा न दे और किसी भी तरह की शारीरिक छेड़छाड़ या अश्लील हरकत का जमकर विरोध करें। जीजा को वहीं झिड़ककर भविष्य में ऐसा न करने के लिए कहें। इस पर भी यदि वह न माने तो उसे धमकी दें कि वह उसकी हरकतों का घर पर बड़ों के सामने पर्दाफाश कर देगी।
अपनी इज्जत की रक्षा करने का हर स्त्री को हक है और इसमें उसे किसी का भी भय नहीं होना चाहिए। इसके लिए नैतिकता, घर वाले, समाज व कानून, सभी उनके साथ हैं, यह उसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
साली आधी घरवाली नहीं होती। न जाने किस मनचले ने यह कहावत चलाई होगी। अनैतिकता को बढ़ावा देने वाली एवं गैरकानूनी बात है। आज का कानून हिंदुओं को एक से अधिक बीवी रखने की इजाजत नहीं देता।
ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण मिल जाएंगे जहां जीजा साली के अवैध संबंधों से घर की सुख शांति खत्म हो गई है। कहते हैं डायन भी सात घरों को अपनाने के बाद आठवें घर की कल्पना छोड़ देती है। फिर कुछ स्त्रियां ही क्यों इतनी नीचता पर उतर आती हैं कि अपनी ही बहन के सुहाग पर डाका डाल उसकी खुशियां लील जाती है। यह बहके कदमों की दास्तान है। जीजा से ज्यादा साली दोषी होती है।
यह निर्विवाद है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। जीजा-साली के केस में अगर जीजा अकेला जोर जबर्दस्ती करता तो वह बलात्कार कहलाता लेकिन ऐसी विरले ही केस होंगे। ज्यादातर मामलों में रजामंदी दोनों ही ओर से होती है बल्कि पहल भी अक्सर सालियों की तरफ से ही होती है वर्ना जीजा की सीमा का उल्लंघन करने की हिम्मत ही न पड़े।
छोटी उम्र की कुंवारी किशोरियां कई बार भोली और नादान हो सकती हैं। ऐसे में जीजा को कभी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे सालियों के जीजा के प्रति आकर्षण को बढ़ावा मिले। उन्हें कभी एकांत और अकेले में नहीं मिलना चाहिए और न ऐसी रसीली बातें करनी चाहिए जिससे रोमांटिक स्थितियां पैदा हों। रोमांस के लिए जीजा के पास पत्नी है और साली के पास उसका पति।
रोमांस प्रेमी से किया जा सकता है, कल्पना में किया जा सकता है, बहन या पत्नी का घर बर्बाद कर नहीं। जो नैतिकता का उल्लंघन करता है, जीवन भर अपराध बोध उसे चैन नहीं लेने देता, इसीलिए मर्यादा का इतना महत्त्व है। मर्यादा में रहने वाले जीजा साली को कभी जिल्लत और रूसवाई का सामना नहीं करना पड़ेगा। उनके स्वस्थ रिश्तों का समाज के स्वास्थ्य निकास में बड़ा योगदान है। इसलिए जीजा-साली के पवित्र रिश्ते की पवित्रता कायम रखते हुए कभी इसे बदनाम न होने दें।