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बेटी तुझे सलाम: दिव्यांग अंकिता के पिता हैं बीमार... ऑटो रिक्शा चलाकर करा रही इलाज

Triveni
6 Oct 2020 11:37 AM GMT
बेटी तुझे सलाम: दिव्यांग अंकिता के पिता हैं बीमार... ऑटो रिक्शा चलाकर करा रही इलाज
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छोरियां छोरों से कम बिलकुल भी नहीं होती। फ़िल्म दंगल का यह डायलोग अहमदाबाद की एक दिव्यांग बेटी पर सटीक बैठता हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| छोरियां छोरों से कम बिलकुल भी नहीं होती। फ़िल्म दंगल का यह डायलोग अहमदाबाद की एक दिव्यांग बेटी पर सटीक बैठता हैं। दिव्यांग होने के बावजूद वो नौकरी कर के परिवार का सहारा बनी हुई थी लेकिन पिता को कैंसर होने के बाद उनकी दुनिया ही बदल गयी। अस्पताल के चक्कर लगना शुरू हुए और लम्बे इलाज के कारण उन्हें अपनी नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ी। जिसके चलते उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। इसके चलते परिवार में आर्थिक तंगी शुरू हो गयी। इलाज के लिए पैसे कम पड़ने लगे।

लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय ऑटो रिक्शा चलाना सींखा। पिता के इलाज के लिए पिछले कई समय से वो ऑटो रिक्शा चला रही हैं। वो सम्भवतया: अहमदाबाद की पहली दिव्यांग ऑटो रिक्शावाली हैं। कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है अहमदाबाद की 35 वर्षीय अंकिता शाह की।

अंकिता दिव्यांग हैं लेकिन हौसले बुलंद हैं। दरअसल, बचपन में पोलीयो की वजह से उनका दायां पैर काटना पड़ा था। लेकिन पढ़ने में शुरू से ही अच्छी रही। इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट अंकिता साल 2012 में अहमादाबाद आईं और एक कॉल सेंटर में नौकरी करने लगीं। जीवन में सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन पिता की बीमारी ने उन्हें नौकरी छोड़ कर ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला लेना पड़ा।

अंकिता ने इण्टरव्यू में कहा कि , 'काल सेण्टर की नौकरी से लगभग 12,000 रुपये प्रतिमाह मिलते थे लेकिन 12 घंटे की मुश्किल शिफ्ट करनी पड़ती थी। सामान्य जीवन चल रहा था लेकिन जब पिताजी के कैंसर से पीड़ित होने की बात पता चली तो पाँव तले ज़मीन खिसक गयी। मुझे उनके इलाज के लिए बार-बार अहमदाबाद से सूरत जाना पड़ता और छुट्टियां मिलने में दिक्कत होती। तनख्वाह भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया।

वो आगे कहती हैं, 'वह दौर आसान नहीं था। घर का गुजारा चलाना मुश्किल हो रहा था। मुझे पिताजी के इलाज में मदद ना कर पाने का मलाल था। इसलिए मैंने अपने दम पर कुछ करने की ठानी। कई कंपनियों में इंटरव्यू दिए। लेकिन कंपनीवालों के लिए उनका दिव्यांग होना परेशानी बन रहा था। ऐसे में अंकिता ने ऑटो चलाना शुरू किया।

अंकिता ने बताया, 'मैंने ऑटोरिक्शा चलाना अपने दोस्त- लालजी बारोट- से सीखा, वो भी दिव्यांग है और ऑटोरिक्शा चलाता है। उसने ना सिर्फ मुझे ऑटो चलाना सिखाया बल्कि मुझे अपना कस्टमाइज्ड ऑटो लेने में भी मदद की, जिसमें एक हैंड-ओपरेटेड ब्रेक है।

आज अंकिता 8 घंटे ऑटो चलाकर 20 हजार रुपये महीने तक कमा लेती हैं। वह भविष्य में खुद का टैक्सी बिजनेस शुरू करना चाहती हैं।

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