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आर्किटेक्ट ने किया कमाल का काम, कागज से बनाई दुकान की दीवार
Apurva Srivastav
7 May 2021 7:04 AM GMT
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मकान अब कागज से भी बनने लगे हैं
किसी भी मकान को बनाने के लिए ईंट, सिमेंट और तमाम तरह के मैटेरियल की जरूरत पड़ती है. साथ ही बड़ी मात्रा में खपत होती है पानी की. मगर आपको पता चले कि कंक्रिट के इस्तेमाल किए बिना भी मकान बनते हैं, तो आप जरूर हैरान होंगे. लेकिन यह सच है. दरअसल, मकान अब कागज से भी बनने लगे हैं. दरअसल, जयपुर की एक आर्किटेक्ट जोड़ी ये कमाल का काम कर रही है और मकान से लेकर दुकान तक कागज से बना रही है. आइए जानते हैं इनके बारे में…
जयपुर के बाजार में कपड़े की एक दुकान की दीवारें कागज से बनी हैं. ये कमाल किया है जयपुर की आर्किटेक्ट जोड़ी अभिमन्यु औैर शिल्पी ने. अभिमन्यु औैर शिल्पी की जोड़ी भारतीय कंस्ट्रकस्न को बदल रही है.
कैसे आया कागज से घर बनाने का तरीका
अभिमन्यु बताते हैं कि कागज की दीवार बनाने के स्ट्रक्चर में हॉनीकॉम्प डिजाइन का इस्तेमाल होता है. इसके पेपर में तब्दील किया जाता है और फिर इसे स्टीक पैनल में तब्दील किया जाता है. इसके बाद छह ट्रायंगल वाला एक स्ट्रक्चर निकलकर आता है, जो सबसे टिकाउ होता है. आर्किटेक्टचर की पढ़ाई करने वाले अभिमन्यु औैर शिल्पी पढ़ाई के दौरान मिलान गए थे. वहां केंटेनर में रहने वाले रिफ्यूंजी को देखकर कागज से घर बनाने का ख्याल आया.
कैसे तैयार होती है दीवार
अभिमन्यु इसके बनाने के तरीके बारे में बताते हैं कि हॉनीकॉम पेपर के दोनों तरफ जिप्सम बोर्ड लगते हैं. वो कहते हैं इस कागज वाले बोर्ड की तुलना अगर हम ईंट, सिमेंट जैसे कंक्रिट से करें तो ये उससे 10 गुना हल्का और पांच गुना अधिक मजबूत होता है. बारिश से बचाव के लिए बोर्ड पर एक कैमिकल लगाया जाता है. आग से बचाव के लिए हॉनीकॉम्प पेपर के सेल में राख भर दी जाती है. जिससे यह फायर प्रूफ भी बन जाता है.
कितनी सुरक्षित
हॉनीकॉम्प पैनल से बने घर भूकंप में भी बहुत सुरक्षित हैं. भूकंप के दौरान आम दीवारों का मैटेरियल कंपन से अलग होने लगता है. क्योंकि दीवार कई चीजों को मिलाकर खड़ी होती है. इससे दीवार के टूट के गिरने का खतरा अधिक होता है. मगर हॉनीकम में ऐसा नहीं है, क्योंकि ये पूरे मैटेरियल को एक साथ जोड़े रहता और भूकंप ये एक साथ हिलती हैं.
इसे बनाने में पानी का इस्तेमाल नहीं होता. जयपुर में कपड़े की दुकान कागज से सिर्फ सात दिन में तैयार हो गई थी और खर्चा भी आम लागत से करीब 50 फीसदी कम आया था.
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