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चांद पर बम गिराना चाहता था अमेरिका, जानें प्रोजेक्ट A-119 की कहानी

Gulabi
18 April 2021 1:29 PM GMT
चांद पर बम गिराना चाहता था अमेरिका, जानें प्रोजेक्ट A-119 की कहानी
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Project A-119

Project A-119: शीत युद्ध (Cold War) का दौर बेशक खत्म हो गया है, लेकिन उस समय के किस्से आज भी सुनने को मिलते हैं. तब अमेरिका और सोविय संघ हर क्षेत्र में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में थे, अंतरिक्ष भी इससे अछूता नहीं रहा. अमेरिका की वायुसेना ने साल 1958 में एक टॉप सीक्रेट प्लान तैयार किया, जिसे 'अ स्टडी ऑफ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स' (A Study of Lunar Research Flights) नाम दिया गया. इसे प्रोजेक्ट 'ए-119' के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य चांद पर परमाणु बम गिराना था, ताकि विज्ञान के विषयों प्लेनेटरी एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोजियोलॉजी के कुछ रहस्यों से जुड़े जवाब मिल सकें.


अमेरिका ने परमाणु बम लूनर क्रिएटर के बजाय सतह पर गिराने की योजना बनाई थी, ताकि धरती से ही नंगी आंखों से उसकी चमकती रोशनी को देखा जा सके. ऐसा अमेरिका अपनी ताकत दिखाने और ये साबित करने के लिए करना चाहता था कि उसके पास कितना कुछ करने की क्षमता है. यानी अपने ही देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा करने की तैयारी की गई थी क्योंकि तब सोवियत संघ (Soviet Union) अंतरिक्ष की रेस में जीत हासिल कर रहा था. सोवियत भी इसी तरह के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था. हालांकि ये प्रोजेक्ट भी कभी पूरा नहीं हुआ और इसे बाद में रद्द कर दिया गया.
क्यों रद्द किया गया प्रोजेक्ट?
प्रोजेक्ट ए-119 को रद्द करने को लेकर 'वायुसेना (US Air Force) के अधिकारियों ने कहा था कि इसके फायदों से ज्यादा जोखिम हैं.' और चांद पर उतरना अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों की नजर में अधिक लोकप्रिय उपलब्धि होगी. अगर इस प्रोजेक्ट पर काम होता तो अंतरिक्ष पर सैन्य अड्डा भी बनाया जाता. सोवियत संघ भी ऐसे ही एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था, जिसका नाम ई-4 था. हालांकि ये भी सफल नहीं हो सका. अमेरिका के इस प्रोजेक्ट के बारे में साल 2000 में नासा (National Aeronautics and Space Administration) में पूर्व एग्जीक्यूटिव रहे लियोनार्ड रीफिल ने बताया था. जिन्होंने 1958 में प्रोजेक्ट का नेतृत्व किया था.
45 साल तक गुप्त रखे गए दस्तावेज
प्रोजेक्ट के पूरा नहीं होने के पीछे का एक अन्य कारण नकारात्मक सार्वजनिक प्रतिक्रिया का डर था. अमेरिकी खगोलविज्ञानी कार्ल सागन भी इस प्रोजेक्ट टीम (Project A-119 Team) का हिस्सा थे. उन्हें वैक्यूम और लो ग्रैविटी में परमाणु विस्फोट के प्रभावों की भविष्यवाणी करनी थी. इसके साथ ही प्रोजेक्ट की साइंटिफिक वैल्यू का मूल्यांकन भी करना था. ए-119 प्रोजेक्ट से जुड़े दस्तावेज करीब 45 साल तक गोपनीय रखे गए थे. रीफिल द्वारा किए गए इस खुलासे से बावजूद भी अमेरिका की सरकार ने इस अध्ययन में अपने शामिल होने की बात को आज तक आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है.


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