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कमाल की तकनीक! शहद भी मिल रहा और सेब का भी बढ़ा उत्पादन, जानें यहां के किसानों ने ऐसा कौन सा तरीका अपनाया

Gulabi
7 March 2021 2:49 PM GMT
कमाल की तकनीक! शहद भी मिल रहा और सेब का भी बढ़ा उत्पादन, जानें यहां के किसानों ने ऐसा कौन सा तरीका अपनाया
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हिमाचल प्रदेश में सेबी की खेती करने वाले किसानों ने ऐसा तरीका अपनाया है

हिमाचल प्रदेश में सेबी की खेती करने वाले किसानों ने ऐसा तरीका अपनाया है, जिससे उनकी आमदनी दोगुनी हो गई है. केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से किसानों को गीली मिट्टी के छत्ते में मधुमक्खी पालन (Mud Hive Beekeeping) का प्रशिक्षण दिया गया. इस तकनीक से परागण में ऐसा सुधार हुआ कि सेब का उत्पादन भी बढ़ गया. सेब उत्पादन किसान इस तकनीक के जरिये अच्छी आमदनी कर रहे हैं.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश में जिला मंडी के तलहर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सीड डिवीजन के टाइम-लर्न कार्यक्रम के तहत सोसाइटी फॉर फार्मर्स डेवलपमेंट द्वारा क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान स्टेशन (RHRS) बाजौरा की यह पहल है. डॉ वाईएस परमार यूएचएफ के साथ तकनीकी सहयोग से बालीचौकी ब्लॉक के ज्वालापुर गांव में स्वदेशी मधुमक्खियों (Apis Cerana) के लिए इस तकनीक की शुरुआत की गई. इस प्रशिक्षण में कुल 45 किसान शामिल हुए.
क्या है यह तकनीक और कैसे है फायदेमंद?
गीली मिट्टी छत्ता मधुमक्खी पालन तकनीक, दीवार छत्ता और लकड़ी के छत्ते प्रौद्योगिकी का एक संयोजन है. इसमें मिट्टी के छत्ते के अंदर फ्रेम लगाने और अधिक अनुकूल परिस्थितियों के लिए आंतरिक प्रावधान है. विशेष रूप से लकड़ी के छत्तों की तुलना में पूरे वर्ष मधुमक्खियों के लिए यह तापमान की दृष्टि से अनुकूल है.
इस प्रौद्योगिकी को बेहतर कॉलोनी विकास और सीमित संख्या में मधुमक्खियों के लिए लाया गया है. ये पहले से इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी के बक्से वाली तकनीकी की तुलना में ज्यादा फायदेमंद हैं. देसी मधुमक्खियां सेब के बगीचे वाले क्षेत्रों में बेहतर तरीके से जिंदा रह सकती हैं. इस प्रौद्योगिकी के माध्यम से इतालवी मधुमक्खियों की तुलना में सेब के बागों की औसत उत्पादकता को लगभग 25 फीसदी बढ़ाने में मदद मिली है.

ऐसे मधुमक्खी छत्ते की क्या है खासियतें?
मौजूदा मिट्टी के छत्ते में इसके आधार पर एल्यूमीनियम शीट रखकर छत्ते के अंदर आसानी से सफाई के प्रावधान उपलब्ध कराए गए हैं. इस शीट को गाय के गोबर से सील कर दिया जाता है और मिट्टी के छत्ते को खोले बिना ही सफाई के लिए इसे हटाया जा सकता है. मिट्टी के छत्ते की छत भी पत्थर की स्लेट से बनी होती है, जो बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है और छत्ते के अंदर अनुकूल तापमान बनाए रखती है.

इस प्रौद्योगिकी ने लकड़ी के बक्सों की तरह शहद के अर्क का उपयोग करके हाइजीनिक तरीके से शहद के निष्कर्षण (Honey Tracking) में भी मदद की है. सा​थ ही बेहतर प्रबंधन प्रणालियों जैसे- पारंपरिक दीवार के छत्ते की तुलना में भोजन, निरीक्षण, समूह और कॉलोनियों का विभाजन आदि को सामने रखा है.

500-600 रुपये किलो शहद बेच रहे हैं किसान
प्रशिक्षित किसानों द्वारा तैयार किए गए 80 मिट्टी के छत्ते सेब के बगीचों में लगाए गए. इससे 6 गांवों में कुल 20 हेक्टेयर जमीन को कवर किया गया है. गांव में एक सामान्य जन सुविधा केंद्र (सीएफसी) स्थापित किया गया है और किसानों को शहद के प्रसंस्करण (Honey Processing) और पैकिंग के लिए प्रशिक्षण दिया गया है. किसान स्थानीय स्तर पर 500-600 रुपये प्रति किलोग्राम शहद भी बेच रहे हैं.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का दावा है कि आवश्यकता के अनुसार तकनीकी हस्तक्षेपों ने हिमाचल प्रदेश के किसानों को बेहतर जीवन के लिए आजीविका के नये विकल्प सुलभ कराने में मदद की है. सेब का उत्पादन बढ़ने से तो कमाई बढ़ी ही है, शहद उत्पादन के जरिये भी किसानों की अतिरिक्त कमाई हो रही है. इससे किसानों का जीवन स्तर भी उठ रहा है


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