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आखिर क्यों होते हैं कुछ ग्रहों पर छल्ले, जाने क्या कहता है विज्ञान

Subhi
16 Oct 2022 3:07 AM GMT
आखिर क्यों होते हैं कुछ ग्रहों पर छल्ले, जाने क्या कहता है विज्ञान
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सौरमंडल में शनि ग्रह का वलय या छल्ला पिछली चार सदियों से आकाश का अवलकोन करने वालों को आकर्षित करते रहे हैं. लंबे समय समय से यही माना जाता रहा कि सौरमंडल में इसी ग्रह पर ही छल्ले हैं.

सौरमंडल (Solar System) में शनि ग्रह का वलय या छल्ला (Rings of Saturn) पिछली चार सदियों से आकाश का अवलकोन करने वालों को आकर्षित करते रहे हैं. लंबे समय समय से यही माना जाता रहा कि सौरमंडल में इसी ग्रह पर ही छल्ले हैं. इनकी खोज गैलिलियों ने एक सरल टेलीस्कोप से 400 साल पहले की थी. इसके बाद से जैसे जैसे उन्नत टेलीस्कोप आते गए तब नए ग्रहों में छल्ले मिलने लगे. पहले गुरु ग्रह पर छल्ले देखे गए और उसके बाद नेप्च्यून और फिर यूरेनस में भी छल्ले दिखाई दिए, लेकिन ये छल्ले बनते कैसे हैं आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या कहता है विज्ञान (What does Science Say?

ग्रह के बनते समय

इस तरह के छल्ले विशाल गैसीय ग्रह में बनते हैं. ग्रहों पर छल्ले कैसे बनते हैं इस बारे में हमारे वैज्ञानिकों को पास कोई एक प्रमाणिक जानकारी नहीं है. लेकिन इस बारे में कुछ मत दिए गए हैं जो इनकी व्याख्या करते हैं. पहली थ्योरी कहती है कि ये छल्ले तब बने होंगे जब ग्रह का निर्माण हो रहा था. ग्रहों को बनाने वाली धूल और गैस का कुछ हिस्सा ग्रह के क्रोड़ से दूर चला गया होगा और फिर गुरुत्व से केंद्र की ओर इकट्ठा नहीं हो सका होगा और इस तरह से एक छल्ले का तंत्र कायम रहा होगा.

या दो चंद्रमाओं की वजह से

दूसरा सिद्धांत कहता है कि ये छल्ले तब बनते होंगे जब ग्रह के दो उपग्रह या चंद्रमाओं की वजह से निर्माण होता होगा. जो उस समय बने होंगे जब ग्रह बना था. इन चंद्रमाओं की कक्षा किस तरह विचलित हो गई होगी और ये एक दूसरे से टकरा गए होंगे. इस टकारव के बाद बचे अवशेषों एक साथ वापस ना कर एक चंद्रमा नहीं बना सके होंगे और छल्ले के रूप में ग्रह का चक्कर लगा रहे होंगे.

अलग अलग छल्ले

लेकिन फिलहाल वैज्ञानिक और खगोलविद किसी भी तरह की व्याख्या की पुष्टि या खारिज करने की स्थिति में नहीं हैं. लेकिन हम जानते हैं कि सभी सारे ग्रहों के छल्ले एक से नहीं हैं बल्कि अलग अलग हैं. फिर भी उनमें कुछ समानताएं हैं. सभी की चौड़ाई मोटाई से ज्यादा है. शनि का छल्ला 2.8 लाख किलोमीचटर चौड़ा है लेकिन केवल 200 मीटर ही मोटा है.

चट्टानों के बीच की दूरियां

इसके अलावा सभी छल्ले बर्फ और चट्टानों की बनी हुई हैं जिनमें छोटे धूल के कण से लेकर सबसे बड़े 20 मीटर बड़ी चट्टान शामिल हैं. सभी छल्लो में चट्टानों के बीच दूरियां हैं और कई बार यह दूरी कई किलोमीटर तक की पाई गई हैं. पहले तो इसका कारण पता नहीं चला था, लेकिन वैज्ञानिकों ने बाद में पाया कि इन दूरियों का कारण छोटे चंद्रमा थे जिन्होंने अपने आसपास का पदार्थ जमा कर लिया था.

शनि का वलय खास

शनि और दूसरे विशाल गैसीय ग्रहों के छल्लों में अंतर यह है कि शनि के कण औरचट्टानों के प्रकाश बहुत अच्छे से प्रतिबिम्बित होते हैं, जिससे पृथ्वी पर ये छल्ला बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है. इसके बड़े कणों के कारण यह छल्ला और भी विशाल और चौड़ा दिखाई देता है. इसी वजह से दूसरे ग्रहों की तुलना में शनि का वलय या छल्ला देखना आसान हो जाता है.

यूरेनस और नेप्च्यून

वहीं यूरेनस और नेप्च्यून के वलयों की कणों की कहानी कुछ अलग है. ये कण ऐसे तत्वों से बने हैं जो सूर्य की वजह से काले हो गए हैं. ये काले कम कोयले की तरह ही काले दिखाई देते हैं. इस वजह से इन्हें देख पाना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इनसे सूर्य की किरण प्रतिबिम्बित नहीं होती हैं और वे दिखाई नहीं देते हैं.

यह खगोलविज्ञान का स्वर्णिम काल चल रहा है. ज्यादा से ज्यादा उपग्रह और अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित हो रहे हैं. अंतरिक्ष में नई वेधशालाएं स्थापित हो रही हैं जिससे इन वलयों या छल्लों का अध्ययन अब और गहराई से किया जा सकता है. सितंबर में ही जेम्सवेब स्पेस टेलीस्कोप ने नेप्च्यून ग्रह के छल्लों की नई स्पष्ट तस्वीरें जारी की हैं. उम्मीद है कि अब कई इस तरह के सवालों के जवाब ढंढना आसान हो जाएगा.


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