नए अध्ययन के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से बदले तापमान ने इन सभी प्रजातियों को विलुप्त करने में अहम भूमिका निभाई। शोध का कहना है कि मानव की कई प्रजातियां इन बदलावों से तालमेल नहीं मिला सके और इसमें नाकाम होने के कारण विलुप्त हो गए। अध्ययन कर रही टीम ने स दौर के जलवायु परिवर्तनों की स्थितियों का आंकलन करते हुए विलुप्त प्रजातियों के जीवाश्मों को भी अपने शोध में शामिल किया
वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित हुए इस शोध में कहा गया है कि आग और पत्थर के हथियारों के आविष्कार के कारण एक बड़े सामाजिक नेटवर्क बन गए थे। इसके अलावा कपड़ों का उपयोग और जेनेटिक आदान प्रदान भी बहुत सारे होमो सेपियन्स का बचाव नहीं कर सका था। इंसान से जुड़ी ये प्रजातियां तकनीकी विकास और क्रांतिकारी आविष्कारों के बावजूद भी बदलती जलवायु के साथ सामंजस्य नहीं बना सके थे।
शोध में यह बात सामने आई कि होमो सेपियन्स जिसमें एच इरेक्टस, एच हेडिलबर्जेनिसिस और एच निएंडरथलेंसिस ने अपनी काफी संख्या में आवास जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त होने से ठीक पहले खो दिए थे। यह उस दौर की बात है जब वैश्विक जलवायु में बहुत सारे अनचाहे बदलाव हो रहे थे। इसके साथ ही निएंडरथॉल को होमो सेपियन्स से संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करनी होती थी, जिससे उनकी मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई
शोधकर्ताओं ने ये भी कहा कि ये नतीजे आज के मानव के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत हैं। अगर इससे पहले हुए जलवायु परिवर्तन के कारण इंसानी प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं, तो आज भी यह संभव है। चिंता का विषय ये है कि इंसानी गतिविधियों के कारण ही खतरनाक जलवायु परिवर्तन की संभावना है।