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जापान के जंगल में फूटा गर्म पानी का रहस्यमयी फव्वारा

Ritisha Jaiswal
23 Aug 2022 8:54 AM GMT
जापान के जंगल में फूटा गर्म पानी का रहस्यमयी फव्वारा
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कुदरत ने न जाने कितने रहस्य हमसे आज भी छिपा रखे हैं. हमें इसकी उतनी परतें और रंग-रूप दिखाई देते हैं

कुदरत ने न जाने कितने रहस्य हमसे आज भी छिपा रखे हैं. हमें इसकी उतनी परतें और रंग-रूप दिखाई देते हैं, जितना वो हमें दिखाती है. तभी तो कुछ ऐसी घटनाएं हमें चकित कर देती हैं, जिनकी तह तक विज्ञान के लिए भी पहुंचना नामुमकिन हो जाता है. कुछ ऐसी ही एक घटना जापान के एक पारंपरिक मठ के पास हुई. यहां अपने आप ही जंगलों के बीच से गर्म पानी का झरना फूट पड़ा.

आपने इससे पहले ज़मीन में अचानक बनने वाले बड़े और भयानक गड्ढों के बारे में देखा और सुना होगा, कहीं ऐसे चक्रवात देखे होंगे, जो पल भर में तबाही मचा दें. ये कुदरती घटनाएं इंसान को चुनौती देती हैं. इस वक्त चर्चा में जापान में फूटा गर्म पानी का झरना है. जापान के ओशामैम्बे गांव में एक बड़ा सा गर्म पानी का झरना फूट बड़ा है. जंगलों के बीच फूटे इस झरने से 40 मीटर ऊंची धारा बह रही है और देखने वाले इस घटना पर हैरान हैं.
अचानक ही बहने लगा गर्म पानी
जापान के ओशामैम्बे में हर साल 9 अगस्त को शिंतो मठ के पास पारंपरिक जुलूस निकलता है और यहां समर फेस्टिवल मनाया जाता है. इस साल इस त्यौहार से ज्यादा चर्चा उस फव्वारे की है, जो मठ की ज़मीन से लगे जंगल में फूटा है. लोगों ने शोर के साथ पेड़ों के बीच से पानी को बहते हुए देखा. इसमें सल्फर की गंध भी आ रही थी. पानी को बहते हुए 2 हफ्ता बीत चुका है लेकिन अब तक इसकी धारा मंद भी नहीं पड़ी है. लोग इसे धार्मिक कारणों से जोड़ रहे हैं लेकिन इसकी अपनी वैज्ञानिक वजह भी बताई जा रही है. पानी का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस है और ये स्लेटी रंग का है.
जापान के जंगल में फूटा गर्म पानी का रहस्यमयी फव्वारा, 40 मीटर ऊंची उठ रही है धारा

कहां से आ रहा है गर्म पानी ?
वैज्ञानिकों को इसके सैंपल में तलछट मिली है, ऐसे में माना जा रहा है कि फव्वारा मठ के नीचे मौजूद गर्म झरने से पानी पा रहा है. इस रास्ते से गुजरने वाले लोग रुककर झरने को देखने लगते हैं क्योंकि ये काफी अलग दृश्य है. हालांकि इसकी वजह से आस-पास सल्फर की गंध फैल गई है, जिसके चलते लोग अपने घरों की खिड़कियां खोलकर नहीं रह सकते. फिलहाल इस धारा के धीमा पड़ने का कोई संकेत नहीं है.


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