मृत्यु के बाद दोबारा जिंदा हो सकते है इंसान, जाने इस पर विज्ञान का मत
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जीवन और मृत्यु से जुड़े सवालों के प्रति हर कोई उत्सुक रहता है। ऐसे कई सवाल हैं, जिनका अब तक कोई ठोस उत्तर नहीं मिल पाया है। रहस्यदर्शी उसे अपने मुताबिक परिभाषित करते हैं। वहीं विज्ञान का अपना ढर्रा है, जिसके अनुसार पर वो चीजों को परिभाषित करता है। देश दुनिया में अब तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें व्यक्ति मौत के बाद जिंदा हो गया। यही नहीं वैज्ञानिकों ने अपनी मेडिकल रिपोर्ट्स में भी उनको मृत घोषित कर दिया था। हालांकि इन मामलों में कितनी सच्चाई और कितना फसाना हैै? ये एक बहस का विषय है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या व्यक्ति मौत के बाद भी दोबारा जिंदा हो सकता है? शायद इसी उम्मीद से पिछली आधी सदी से कुछ लोगों ने अपने मृत शरीर को क्रायोजेनिक टैंकर में फ्रीज करवा रखा है। इसी सिलसिले में आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि क्या व्यक्ति मौत के बाद भी जिंदा हो सकता है? और इस सवाल को विज्ञान किस नजरिए से देखता है?
आपको बता दें कि इंसानी शरीर एक बायोलॉजिकल प्रोसेस पर आधारित होता है। हमारी बॉडी काम कैसे करती है उसे जानने से पहले हमें उसकी कार्यप्रणाली को समझना होगा। हमारी कोशिकाओं के अंदर कई तरह के केमिकल रिएक्शन्स होते हैं। इन रिएक्शन्स में एटीपी नामक ऊर्जा का काफी महत्व होता है। हमारी बॉडी के सेल्स इसी एटीपी की ऊर्जा का प्रयोग अपने ग्रोथ, रिप्रोडक्शन और रिपेयरिंग के लिए करते हैं।
हालांकि जब कोशिकाएं एंट्रॉपी के कारण कमजोर हो जाती हैं, तो शरीर कमजोर पड़ने लगता है। इससे हमारी शारीरिक कार्यप्रणाली ठप पड़ा जाती है। ऐसे में व्यक्ति की मृत्यु होती है। इस आधार पर अगर देखा जाए तो हमारी मृत्यु शरीर के भीतर जब कोशिकाएं कमजोर पड़ जाती हैं। उसके बाद होती है। कोशिकाओं के कमजोर होने से शरीर की जटिल प्रक्रिया भी रुक जाती है।
ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या शरीर के मृत होने के बाद भी व्यक्ति को दोबारा जिंदा किया जा सकता है? हालांकि इस बात का उत्तर सटीक शब्दों में हां या नहीं में नहीं दिया जा सकता। क्योंकि विज्ञान भी संभावनाओं की तलाश पर चलता है। हमारी अब तक कि वैज्ञानिक खोजों में ऐसी कोई प्रविधि इजाद नहीं हुई है, जो शरीर की कोशिकाओं को दोबारा जीवित करके व्यक्ति को फिर से जिंदा कर सके। ये कयास लगाए जा सकते हैं कि भविष्य में हम कुछ ऐसा आविष्कार कर सकें, जो ठप पड़ गई बॉडी को दोबारा मेंटेन करके उसे जिंदा कर सके।
इसी उम्मीद में कई लोग मरने के फौरन बाद आप अपनी बॉडी को क्रायोजेनिक टैंकर में इस उम्मीद से स्टोर करवा रहे हैं कि शायद भविष्य में कभी उन्हें जिंदा किया जा सके। इन क्रायोजेनिक टैंकर में व्यक्ति के शरीर के भीतर की कोशिकाएं फ्रीज हो जाती हैं। भविष्य में अगर कोई नई खोज विकसित होती है, जो उनकी कोशिकाओं को दोबारा नैनो बॉट्स की मदद से रिपेयर कर सके, तो शायद उन्हें आने वाले समय में दोबारा जिंदा किया जा सकता है।
अब यहां पर दो विचारों का क्लेश होता है। जीवन को लेकर अगर विज्ञान की इस धारणा को देखें तो चेतना और अस्तित्व जैसी कोई चीज नहीं होती। हम केवल एक जटिल शारीरिक संरचना के आधार पर जिंदा हैं। वहीं रहस्यदर्शियों और धर्म की मानें तो व्यक्ति के जिंदा रहने के पीछे चेतना का अहम योगदान है। अब सच क्या है? ये अब तक हम नहीं जान पाए हैं। विज्ञान और रहस्यदर्शी उसे अपने अपने मुताबिक परिभाषित और खोज कर रहे हैं।