दिल्ली-एनसीआर

कुश्ती हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत है, जानिए दिल्ली के ऐतिहासिक अखाड़े के बारे में

Admin Delhi 1
29 Aug 2022 6:44 AM GMT
कुश्ती हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत है, जानिए दिल्ली के ऐतिहासिक अखाड़े के बारे में
x

दिल्ली स्पेशल न्यूज़: कुश्ती...जोश, धैर्य, पराक्रम, संस्कृति व मिट्टी से जुड़ा खेल है। सुल्तान फिल्म का गाना, जोश में तेरे मिट्टी...मिट्टी में तेरा खून निरंतर मेहनत करने वाले ऐसे पहलवानों पर बिल्कुल सटीक बैठता है जो अपने खेल ही नहीं बल्कि अखाड़े की मिट्टी को भी सहेजने के लिए लगातार खून-पसीना बहाते हैं। धोबी पछाड़ हो या फिर अन्य दांवपेंच लेकिन इन्हें सीखने के लिए अनुशासन और लंबे समय तक धैर्य की जरूरत रहती है। ये धैर्य दिल्ली के ऐतिहासिक अखाड़ों में कुश्ती सीखने वाले युवाओं व बच्चों में साफ देखी जा सकती है। जो खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए लंबे समय तक लगातार प्रयास करते रहते हैं। मालूम हो कि कुश्ती हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत है और अब आधुनिकीकरण की और बढ़ते हुए विश्व में कई कीर्तिमान बना चुका है। आज भी कुश्ती में सबसे विशिष्ट स्थान भगवान हनुमान के साथ ही गुरू या कोच का होता है।तो आइए हम आपको बताते हैं कि कैसे तैयार की जाती है अखाड़े की मिट्टी, जिसमें कई सालों का परिश्रम चमकता है।

सरसों का तेल व हल्दी डाली जाती है मिट्टी में: हनुमान अखाड़े के कोच गुरू महासिंह राय बताते हैं कि उनके अखाड़े में हरियाणा व उत्तर प्रदेश के गांवों से मंगवाई जाती है जोकि काली व कुछ लाल रंग की होती है। इस मिट्टी में सरसों का तेल व हल्दी डालकर मिलाया जाता है। इसके पीछे एक तरह का चिकित्सा विज्ञान जुड़ा हुआ है। दरअसल जब अखाड़े में पहलवान कुश्ती करते हैं तो उन्हें चोट व मोच बहुत आती है। ऐसे में सरसों का तेल व हल्दी उनके घावों पर किसी भी प्रकार का इंफेक्शन होने से रोकता है। मिट्टी में 10 से 15 किलो तेल व 10-15 किलो हल्दी डाली जाती है। आज भी हमारे पहलवान गुरू हनुमान के डंबल से व्यायाम करते हैं जोकि 100 साल पुराना है।

डेढ़ से दो साल बाद डाली जाती है अखाड़े में मिट्टी: रोजाना अखाड़े में पहलवानों द्वारा कुश्ती के दांवपेंच सीखे जाते हैं। ऐसे में पहलवानों के शरीर से लग-लगकर अखाड़े की मिट्टी धीरे-धीरे कम होने लगती है। यही वजह है कि डेढ़ से दो साल के बीच अखाड़े में मिट्टी को दोबारा डलवाने की जरूरत पड़ती है। अखाड़े की मिट्टी को खुदाई करने का मकसद यह होता है कि वो बिल्कुल वैसे ही मुलायम हो जाए जैसा कि रूई का गद्दा होता है। हनुमान अखाड़े का साइज 30 गुणा 30 फुट का है, जिसमें एक से डेढ ट्रक मिट्टी कम होने पर डालनी पड़ती है।

पहलवान करते हैं कई तरह से व्यायाम व खुद को वार्म अप: सुबह उठकर दौड़ लगाने के साथ ही पहलवान अखाड़े की मिट्टी को निकालते व फिर वापस भरने का काम करते हैं ये एक तरह का पहलवानों का वार्म अप होता है जो उनमें जोश को भी बढ़ाता है। इसके अलावा डंबल, मलखंभ, मुगदर, दंड मारना, उठक-बैठक सहित पट्टा धूमाना होता है। बता दें कि पट्टा धूमाना एक ऐसा व्यायाम है जिसमें एक पहलवान गले में रस्सी और टायर बांधकर उसे खींचता है जबकि दूसरा पहलवान उस टायर पर बैठा रहता है इससे पैर की नशें मजबूत बनती हैं। जबकि रस्सी पर चढऩे से हाथ की। बता दें कि हनुमान अखाड़े के पहलवानों को रोजाना 30 फुट की रस्सी पर चढऩा व उतरना होता है।

मालिश व खान-पान का भी होता है महत्व: पहलवान रोजाना सुबह उठकर अपने शरीर पर सरसों के तेल से खूब मालिश करते हैं ताकि वो अखाड़े में जाने के लिए तैयार हो सकें। कहते हैं कि मालिश करने से पहलवान का शरीर मजबूत होता है। मालिश के बाद ही वो कसरत के लिए अखाड़े में उतरता है। साथ ही इनकी डाइट भी विशेष होती है जो पूरी सात्विक व शाकाहार पर आधारित होती है। इसमें दूध, घी व बादाम का घोल विशेष रूप से शामिल होता है। पहलवान सीजन के अनुसार फल व सब्जी को भी अपने आहार में विशेषतौर पर शामिल करते हैं।

हनुमान अखाड़ा : शक्ति नगर

बिरला मिल व्यायामशाला में हनुमान अखाड़ा साल 1928 से चलाया जा रहा है। ये दिल्ली का सबसे पुराना अखाड़ा है, जिसे गुरू हनुमान यानि विजय पाल के नाम पर शुरू किया गया। वो झुंझुनूं जिले के रहने वाले थे और 20 साल की उम्र में घर छोड़कर राजस्थान से दिल्ली आ गए। उन्हीं की बात मानकर पहलवानों को सरकारी नौकरी दिए जाने की शुरूआत हुई थी। इस अखाड़े ने 17 अर्जुन अवॉर्डी दिए हैं और 6 द्रोणाचार्य अवॉर्डी दिए हैं जबकि 5 पद्मश्री व एक पद्मभूषण महाबली सतपाल भी हैं। द्रोणाचार्य अवार्डी में महासिंह राव, जगमिंदर सिंह, सतपाल, राज सिंह व सुखचैन हैं। इसके अलावा साल 1960 में अखाड़े को राष्ट्र गुरू, 1982 में राजस्थान श्री, 1983 में पद्मश्री, 1989 में भीष्म पीतामह व 1991 में छत्रपति साहू अवार्ड भी मिल चुकें हैं। बात यदि अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की करें तो 1980 में फ्रांस ने डिप्लोमा ऑफ ऑनर, 1981 में जापान ने लार्ड बुद्धा अवार्ड, 1989 में कुश्ती खुदा, 1991 में जापान ने मास्टर डिग्री ब्लैक बेल्ट, 1991 में अमेरिका ने कुश्ती किंग अवार्ड व 1991 में ही इंग्लैंड ने अमर शहीद ऊधम सिंह अवार्ड मिल चुका है। मजे की बात यह है कि यहां एक कमरा ऐसा है जो अवार्डों व फोटो से भरा हुआ है। यहां पहलवान खुद अपना खाना बनाते हैं।

जज्बे से ही जीत सकते हैं कुश्ती में अवॉर्ड : गुरू महासिंह राव

कुश्ती एक ऐसा खेल है जिसमें जज्बा होने से ही अवॉर्ड जीता जा सकता है। हनुमान अखाड़े में हम खेल के साथ प्रतियोगिताओं की जानकारी भी शिष्यों को देते हैं। सुबह 4 बजे से शाम 7 बजे तक ट्रेनिंग दी जाती है। जब कोच निस्वार्थ भाव से शिष्य को ट्रेंड करेंगे तो सफलता मिलेगी, सभी शिष्यों पर गुरू हनुमान की कृपा बनी रहती है। सरकार भी खेलों के लिए सकारात्मक रवैया रखती है। भारतीय कुश्ती संघ आज इतना सक्षम है कि पहलवानों को स्कॉलरशीप मिलती है जिससे आर्थिक परेशानी दूर हो गई, बच्चे अब अपने खेल पर पूरी तरह केंद्रित रह पाते हैं।

हनुमान अखाड़े से जुडऩा गौरव की बात : विनीत पहलवान

हनुमान अखाड़े में अभाव की भरमार है, बावजूद इसके अखाड़े से जुड़कर सभी पहलवान खुद को गौरवांवित महसूस करते हैं। एशिया गेम में इस साल 2 बच्चों का मेडल आया है, 6 बच्चे फेडरेशन कप में हिस्सा लेने गए हैं। यहां करीब 70-80 पहलवान अखाड़े में रहकर कुश्ती सीख रहे हैं और 40-50 बच्चे बाहर से आते हैं कुश्ती सीखने। करीब 50-60 बच्चे 18 साल की कम उम्र के हैं। मुझे 3 साल अखाड़े से जुड़े हो गए हैं।

महाराष्ट्र से कुश्ती सीखने आया हूं दिल्ली : मनीष

मैं महाराष्ट्र के कोल्हापुर से कुश्ती सीखने दिल्ली आया हूं और करीब 10-12 सालों से कुश्ती सीख रहा हूं। हनुमान अखाड़ा का इतिहास हरेक पहलवान को अपनी ओर आकर्षित करता है। राजीव तोमर हमारे कोच हरेक पहलवान पर बेहद ध्यान देते हैं, जिससे खेल में लगातार निखार आ रहा है। मैं 2 मेडल जीत चुका हूं और 2 प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी रह चुका हूं।

पहलवान बनकर पिता का सपना करना है पूरा : दक्ष राठी

12 साल के दक्ष राठी ने बताया कि मेरे पिताजी का सपना था कि मैं पहलवान बनूं और अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए मैं अखाड़े आ गया। मुझे 1 साल हो गया है। पहलवानी में अभी तक मैंने धोबी पछाड़, ढाक, कलाजंग, लकड़बग्गा सहित कई दांवपेंच मैं यहा रहकर सीख चुका हूं।

यहां दो बार मिलता है प्रेक्टिस का मौका : राहुल

ग्रेटर नोएडा, यूपी से अखाड़े में पहलवानी सीखने 4 साल पहले आया था। अभी तक स्टेट लेवल की प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका हूं। बंगाल में कुश्ती में मेडल जीता था। गांव में सिर्फ एक बार प्रेक्टिस का मौका मिलता था, यहां दो बार प्रेक्टिस का मौका मिलता है। सुबह साढ़े 4 बजे उठकर दौडऩे लगाने के बाद कुश्ती के दांवपेंच सीखते हैं।

मैंने सभी नेशनल मेडल जीते हैं : सुमीत

मैं 12-13 साल से कुश्ती सीख रहा हूं, गाजियाबाद के गांव खडख़ड़ी का रहने वाला हूं। गाजियाबाद में कई अखाड़े थे लेकिन हनुमान अखाड़ा देश का नंबर 1 अखाड़ा है इससे जुड़कर अच्छा लगा। कई साल कमरा बाहर लेकर रहा, इंटरनेशनल खेलने के बाद अखाड़े के अंदर जगह मिली। मैंनें सभी नेशनल चैंपियनशीप में मेडल जीता है और भारत केसरी, दिल्ली केसरी व यूपी केसरी हूं।

बजरंग पूनिया हैं मेरे प्रेरणास्त्रोत :प्रेम मिलिंद मारणे

मैं पुणे, महाराष्ट्र से हाल ही में कुश्ती सीखने हनुमान अखाड़ा आया हूं पहले मुकुंद व्यायामशाला में कुश्ती सीखता था। लेकिन यहां आकर काफी नया सीखने का अवसर मिला है। मेरा सबसे पसंदीदा दांव धोबी पछाड़ है। मुझे संजय कोच ट्रेनिंग दे रहे हैं। बस आगे जाकर बजरंग पूनिया की तरह बड़ा पहलवान बनने का मेरा सपना है, वो मेरे प्रेरणास्त्रोत हैं।

छत्रसाल स्टेडियम

छत्रसाल अखाड़े की शुरूआत साल 1988 में हुई थी। ये प्रमुख कुश्ती शिक्षक महाबली सतपाल सिंह के नाम से काफी मशहूर है। इस अखाड़े ने पांच अर्जुन अवॉर्डी सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, रविंद्र सांगवान, बजरंग पूनिया और अमित दहिया दिए हैं। सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त को तो पद्श्री और राजीव गांधी खेल रत्न भी मिल चुका है। साथ ही यशवीर सिंह और रामफल मान को द्रोणाचार्य अवॉर्ड मिला है। यहां के युवा पहलवान दीपक पुनिया ने 86 किलो ग्राम और रवि दहिया ने 57 किलो में भारत को टोकियो के लिए ओलंपिक दिलाया है।

कैप्टन चांदरूप अखाड़ा: आजादपुर मंडी में कैप्टन चांदरूप अखाड़ा है, जिसने कई ओलंपिक पहलवान तैयार किए हैं। कैप्टन चांदरूप के 5 शिष्य अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। कई भारत केसरी और राष्ट्रीय चौंपियन बन चुके हैं। कैप्टन चांदरूप को साल 2010 में द्रोणाचार्य अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। यहां से ओमबीर सिंह, रोहतास दहिया, अशोक कुमार, रमेश कुमार, धर्मेंद्र दलाल आदि को कुश्ती में अर्जुन पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं।

दिल्ली पुलिस अखाड़ा: न्यू पुलिस लाइन की बटालियन परिसर में दिल्ली पुलिस अखाड़ा मौजूद है। ये करीब 50 साल पुराना अखाड़ा है। जहां आज भी दिल्ली पुलिस के पुरूष ही नहीं बल्कि महिला पहलवानों को तैयार किया जाता है। इस अखाड़े के कई पहलवान अर्जुन अवॉर्ड हासिल कर चुके हैं। साल 1967 में बने इस अखाड़े के अंदर अभी भी झूलते मोटे रस्से व पारंपरिक शैली में व्यायामशाला है। यहां से अर्जुन अवॉर्ड मिलने वालों चंदगीराम पहलवान, एसीपी रहे सुदेश पहलवान, एडिशनल डीसीपी प्रेमनाथ, एडिशनल डीसीपी जगमिंदर पहलवान है। एडिशनल डीसीपी सत्यवीर ध्यानचंद अवार्डी हैं। एसीपी कृष्ण पहलवान, एसीपी जयभगवान, इंस्पेक्टर सूरजभान पहलवान। ये सभी नामी पहलवान हैं। पुलिस अखाड़े की टाइमिंग सुबह साढ़े 6 से साढ़े 8 बजे और शाम को 4 से 6 बजे के बीच है।

चंदगीराम अखाड़ा: राजधानी के सबसे पुराने अखाड़ों में चंदगीराम अखाड़े का नाम शुमार किया जाता है। यहां लड़के व लड़कियां दोनों कुश्ती सीखते हैं। इसकी शुरूआत मास्टर चंदगीराम ने 60-70 के दशक में की थी। उन्हें भारत सरकार ने 1969 में अर्जुन व 1971 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। गुरू चंदगीराम ने ही पहली बार महिला कुश्ती की शुरूआत की थी और अपनी तीन बेटियों सोनिका, दीपिका व मोनिका को कुश्ती में उतारा था। सोनिका पहली महिला भारत केसरी बनीं थीं, जबकि दीपिका भारत कुमारी के अलावा ऑल इंडिया वूमेन रेसलिंग एसोसिएशन बनाकर महिला पहलवानों को ट्रेंड करती हैं। इस अखाड़े से पांच अर्जुन अवॉर्डी सत्यवान कादियान, कृपाशंकर पटेल, नेहा राठी, जगरूप सिंह राठी व संजय कुमार हैं।

Next Story