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नई दिल्ली: कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों से बचने में शारीरिक सक्रियता का अहम योगदान हो सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए 200 से ज्यादा महिला साइकिलिस्ट ने शारीरिक सक्रियता वाली जीवनशैली के प्रति जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित साइक्लोथॉन 'होप ऑन द व्हील्स' में हिस्सा लिया. राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी), नीति बाग ने रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट के साथ मिलकर साइकिल रैली का आयोजन किया. इस दौरान महिलाओं ने राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट नीतिबाग से 20 किलोमीटर की साइकिल रैली निकाली. इस मौके पर अभिनेत्री सयाली भगत बतौर मुख्य अतिथि थीं. उन्होंने भी इस साइकिल रैली में शिरकत की.
रैली दिल्ली गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल, मदनगीर और साईंधाम, हौजखास से होकर निकली, जहां स्तन कैंसर, सर्विक्स कैंसर और ओरल कैंसर की निशुल्क स्क्रीनिंग के लिए हेल्थ चेकअप कैंप लगाए गए थे. ये तीनों भारत में सबसे ज्यादा होने वाले तीन कैंसर हैं. इनसे बचना और शुरुआती स्टेज पर इनकी स्क्रीनिंग संभव है. आरजीसीआईआरसी नीति बाग की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. गौरी कपूर ने कहा, कैंसर के बढ़ते मामलों में तंबाकू एवं शराब के सेवन और खराब जीवनशैली की बड़ी भूमिका है. विशेष तौर पर आलस्य वाली जीवनशैली इसका बड़ा कारण है. अध्ययनों में ज्यादा शारीरिक सक्रियता और विभिन्न प्रकार के कैंसर के कम खतरे के बीच सीधा संबंध पाया गया है.साइक्लोथॉन का आयोजन विशेष तौर पर महिलाओं के बीच सक्रिय जीवनशैली का संदेश देने के लिए किया गया. साइकिल रैली का नाम 'होप ऑन द व्हील्स' था. डॉ. कपूर ने कहा कि यहां व्हील्स का अर्थ है एक सक्रिय जीवनशैली, जिससे कार्डियोवस्कुलर डिजीज और कई तरह के कैंसर समेत विभिन्न गैर संक्रामक बीमारियों के कारण होने वाली मौतों के खतरों को कम करने की उम्मीद बनती है.
डॉ. गौरी कपूर ने आगे कहा कि व्यायाम करने से कैंसर का खतरा काफी कम होता है. इससे वजन कम रखने में मदद मिलती है. मोटापे का संबंध 13 तरह के कैंसर से पाया गया है. यह हार्मोन्स को नियमित करने में मदद करता है. हार्मोन्स की बढ़ी मात्रा भी कई तरह के कैंसर का खतरा बढ़ा देती है. इसके अतिरिक्त व्यायाम से पाचन तंत्र बेहतर होता है और शरीर में कई तरह के विषाक्त पदार्थ कम होते हैं. महिला साइकिलिस्ट ने इस साइक्लोथॉन के दौरान स्तन एवं सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग का संदेश भी दिया. इन दोनों ही कैंसर का आसानी से शुरुआती स्टेज में जांच से पता लगाया जा सकता है. इनका पता प्रीकैंसरस स्टेज में ही लगाया जा सकता है. जल्द जांच हो जाए तो इलाज तेजी से होता है और उसका असर भी ज्यादा होता है.