- Home
- /
- दिल्ली-एनसीआर
- /
- क्या है मामला,...
क्या है मामला, सुप्रीम कोर्ट में किस केस में दी गई यह दलील

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान श्रीलंका में मुफ्त की चीजें देने का उदाहरण देते हुए कहा गया कि वहां फ्री में सबकुछ बांटने की वजह से ऐसी स्थिति आई है और भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है. यह दलील सीनियर वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में दी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर यह मांग की कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे वादे नहीं किए जाए, जिसमें चुनाव जीतने के बाद जनता को मुफ्त सुविधा या चीजें बांटने की बात कही जाती है.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन वी रमना ने कहा कि यह बहुत ही संजीदा मसला है. यह वोटर को घूस देने जैसा है. जब मुख्य न्यायाधीश ने केंद्र सरकार के वकील के एम नटराज से उनकी राय मांगी तो उन्होंने कहा कि ये चुनाव आयोग को तय करना है. इसमें केंद्र सरकार का कोई दखल नहीं है. लेकिन जस्टिस रमना ने इस बात पर नाराज़गी जताई और कहा कि केंद्र सरकार इससे अपने आपको अलग नहीं कर सकती. अदालत ने फिर केंद्र सरकार को एक हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष साफ करने को कहा है.
जस्टिस रमना ने कोर्ट में मौजूद वकील और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल से कहा की वो भी अपनी अनुभव से इस मामले में अपनी राय दे सकते है. सिब्बल ने फिर कोर्ट को बताया कि इसमें केंद्र सरकार का बहुत रोल नहीं है. ये काम वित्त आयोग को देखना चाहिए. सिब्बल के मुताबिक, वित्त आयोग एक निष्पक्ष एजेंसी है जो राज्यों को फंड देती है. ऐसे में वित्त आयोग राज्य सरकारों को फंड देने से पहले ये कह सकती है कि आप को मुफ्त सुविधा देने की लिए फंड आवंटित नहीं किया जाएगा. सिब्बल ने कहा कि सीधे सरकारों पर इसे नियंत्रित करने की जिम्मेदारी डालने से कोई हल नहीं निकलेगा.
सीजेआई ने सुनवाई इस मामले में आगे सुनवाई के लिए अगले बुधवार यानी तीन अगस्त की तारीख तय की है. कोर्ट ने कहा की केंद्र सरकार इस दौरान यह बताए की इस पर वित्त आयोग क्या कर सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल से भी पूछा कि आपकी क्या राय है सिब्बल ने कहा की ये बहुत गंभीर मुद्दा है और फाइनेंस कमिशन से पूछा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह वित्त आयोग से पता लगाए कि पहले से कर्ज में डूबे राज्य में मुफ्त की योजनाओं का अमल रोका जा सकता है या नहीं.
क्या कहना है याचिकाकर्ता का
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि हर राज्य पर लाखों का कर्जा है. जैसे पंजाब पर तीन लाख करोड़ रुपये, यूपी पर छह लाख करोड़ और पूरे देश पर 70 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. ऐसे में अगर सरकार मुफ्त सुविधा देती है तो ये कर्ज और बढ़ जाएगा. अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि श्रीलंका में भी इसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई है और भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा की केंद्र सरकार का जवाब आने की बाद इस मामले में अगले हफ्ते सुनवाई होगी.