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ढाई साल का समय शेष, अभी तक लैंडफिल साइटों पर 20 फीसदी कचरे का भी निपटान नहीं
दिल्ली न्यूज़: दिल्ली में कचरे के पहाड़ों को निपटाने के लिए अक्टूबर 2019 में परियोजना शुरू की गई थी, लेकिन ढाई साल का समय बीत जाने के बाद भी इसके 20 फीसदी से भी कम हिस्से का निस्तारण हुआ है जबकि परियोजना के लिए तय समय सीमा के पूरा होने में केवल ढाई साल का समय शेष रह गया है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की कई रिपोर्ट से एकत्रित आंकड़ों के अनुसार इन तीन लैंडफिल स्थलों गाजीपुर, ओखला और भलस्वा पर प्रति वर्ष (अक्टूबर 2019 से) कुल 21 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया जा रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि इस अवधि के दौरान हर साल नगरपालिका का लगभग 20 लाख टन ताजा ठोस कचरा इन स्थलों पर फेंका जाता है। पूर्व के तीनों निगमों द्वारा एनजीटी को सौंपी गई एक कार्य योजना के अनुसार गाजीपुर लैंडफिल स्थल, तीनों लैंडफिल में सबसे बड़ी है जहां 140 लाख टन पुराने कचरे का भंडारण है। ओखला में 60 लाख टन पुराना कचरा है और भलस्वा में 80 लाख टन पुराना कचरा है। गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल स्थल 70 एकड़, 46 एकड़ और 70 एकड़ में फैले हैं। ओखला लैंडफिल में जमा कचरे को दिसंबर 2023 तक संसाधित किया जाना है, गाजीपुर और भलस्वा लैंडफिल के कचरे को संसाधित करने की समय सीमा दिसंबर 2024 है।
रिपोर्ट के अनुसार तीन स्थलों पर अब तक केवल 52.5 लाख टन पुराने कचरे को संसाधित किया गया है। गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कचरा स्थल पर मई के अंत तक केवल 11 लाख टन (7.86 प्रतिशत) पुराने कचरे को संसाधित किया गया है। इसने परियोजना के पहले वर्ष (अक्टूबर, 2019 से अक्टूबर, 2020 तक) में तीन लाख टन पुराने कचरे को संसाधित किया, दूसरे वर्ष में 4.81 लाख टन (अक्टूबर 2020 से अक्टूबर 2021 तक) और तीसरे वर्ष में अब तक लगभग 3.2 लाख टन कचरे का संसाधन किया। आंकड़ों से पता चलता है कि तत्कालीन पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने प्रति वर्ष औसतन 4.4 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया। इस गति से अधिकारियों को पूरे कचरे को वहां संसाधित करने में लगभग 29 वर्ष लगेंगे। ओखला लैंडफिल स्थल पर 60 लाख टन कचरे में से 16.5 लाख टन को संसाधित किया जा चुका है। तत्कालीन एसडीएमसी ने पहले वर्ष में लगभग 1.6 लाख टन, दूसरे वर्ष में 5.84 लाख टन और तीसरे वर्ष में अब तक 8.66 लाख टन कचरे का जैव-खनन किया। ओखला लैंडफिल में औसतन 6.6 लाख टन पुराने कचरे को संसाधित किया जा रहा है, जिसका मतलब है कि पुराने कचरे के निस्तारण के लिए और साढ़े छह साल की जरूरत है। पूर्व के उत्तरी निगम ने परियोजना शुरू होने के बाद से 25 लाख टन (31.25 प्रतिशत) कचरे का जैव-खनन किया है। यानी इसने औसतन हर साल 10 लाख टन कचरे का निस्तारण किया, इस हिसाब से अधिकारियों को काम पूरा करने में 5.5 साल और लगेंगे। आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर 2019 में गाजीपुर, ओखला और भलस्वा लैंडफिल स्थलों पर 12, 8 और 15 ट्रॉमेल मशीन चालू थीं। लेकिन अब गाजीपुर में मशीनों की संख्या घटकर आठ रह गई, जबकि इस दौरान ओखला में यह 26 और भलस्वा में 44 हो गईं। निगम के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें दिसंबर 2024 तक लक्ष्य हासिल करने की उम्मीद है और ट्रॉमेल मशीनों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है।