दिल्ली-एनसीआर

43 साल में पहला फरमान होने से हैं हलकान, बढ़ती भीड़ और क्राइम ने बदलवाई पुलिसिंग

Nidhi Markaam
23 Oct 2021 12:17 PM GMT
43 साल में पहला फरमान होने से हैं हलकान, बढ़ती भीड़ और क्राइम ने बदलवाई पुलिसिंग
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दिल्ली पुलिस में इन दिनों एक बार फिर हड़कंप मचा है. हड़कंप की वजह है दिल्ली पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी नया आदेश

दिल्ली पुलिस में इन दिनों एक बार फिर हड़कंप मचा है. हड़कंप की वजह है दिल्ली पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी नया आदेश. आदेश का मजमून पढ़ने के बाद से ही महकमे में तैनात तमाम आईपीएस अफसरों और थानों में तैनात थाना-प्रभारी इंस्पेक्टरों (Station House Officer SHO) के चेहरों पर हवाईयां उड़ रही हैं. आदेश में साफ-साफ निर्देश है कि अब से आईंदा के लिए हर जिले में रात के वक्त एक डीसीपी (आईपीएस) स्तर का अधिकारी ड्यूटी देगा. जबकि थानों में SHO पद पर तैनात इंस्पेक्टर को आईंदा थाना इलाके में हुई हर वारदात स्थल पर पहुंचना जरूरी/अनिवार्य होगा. महकमे के मुखिया की ओर से दिल्ली पुलिस मुख्यालय ने जब से यह आदेश निकाला है, तभी से उस पर चर्चाओं का बाजार गरम है.

अगर कहें कि नई आईपीएस लॉबी (विशेषकर 2008 से लेकर उसके बाद के अग्मूटी कैडर के IPS) और थानों के एसएचओ में हड़कंप मचा हुआ है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. मुश्किल यह है कि इस आदेश को सबने पढ़ लिया है. आदेश देखने के बाद उसकी जद में आने वाले आईपीएस अफसरों और इंस्पेक्टरों (थानाध्यक्षों) के दिलों पर क्या बीत-बिसर रही है. यह वे खुलकर किसी से कह पाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं. दरअसल दिल्ली पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी यह आदेश इन सबको इसलिए भी प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अखरना लाजिमी है कि, इस आदेश की हद में आए अफसरान और इंस्पेक्टरों ने इस सब की कल्पना तो अपनी अब तक की पूरी नौकरी में नहीं की होगी.
43 साल में पहला फरमान होने से हैं हलकान
यहां उल्लेखनीय है कि दिल्ली पुलिस में कमिश्नर सिस्टम 1 जुलाई सन् 1978 को लागू हुआ था. उससे पहले देश की राजधानी में आईजी पुलिस प्रणाली से ही पुलिस महकमा चलाया जाता था. यानी दिल्ली में कमिश्नर सिस्टम लागू होने के करीब 43 साल बाद यह पहला मौका है जब दिल्ली के किसी पुलिस आयुक्त ने मातहत आईपीएस (जिले में तैनात डीसीपी, एडिश्नल डीसीपी) अफसरों को हर जिले में रात में भी ड्यूटी बजाने का हुक्म सुनाया है. कमोबेश कुछ ऐसा ही राजधानी दिल्ली के थानों में तैनात एसएचओ का भी हाल है. अब तक एसएचओ अपने थाना क्षेत्र में मर्जी का मालिक होता था. वो थाना इलाके का खुद को 'सर्वोपरि-बॉस' समझता था. थाने में तैनात बाकी दोनो इंस्पेक्टर (एडिश्नल एसएचओ) से लेकर सिपाही हवलदार, दारोगा, होमगार्ड सब उसी की 'चाकरी' और 'हुकुम' की फरमानी करने के लिए बाध्य हुआ करते थे.
नाइट ड्यूटी तो अफसर पहले भी करते थे मगर…
जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि अब से पहले तक (कालांतर में) देश की राजधानी दिल्ली में 'नाइट गश्त' के लिए अफसर के नाम पर दो "नाइट जीओ" (रात्रिकालीन पुलिस प्रशासनिक अफसर) दिल्ली पुलिस की ओर से तैनात हुआ करते थे. इनमें एक संयुक्त पुलिस आयुक्त (Joint Police Commissioner) और दूसरा अधिकारी डीसीपी (Deputy Commissioner of Police) स्तर का होता था. इन दोनो की जिम्मेदारी होती थी कि वे रात के वक्त शहर की कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करें. रात भर दिल्ली की सड़कों पर खुद घूमें. और थाने, चौकी, सड़क पर तैनात अपने मातहत पुलिसकर्मियों के कामकाज पर भी नजर रखें. वो नाइट ड्यूटी डीसीपी स्तर के अफसर की रात्रि 11 बजे से सुबह पांच बजे तक की होती थी. जबकि संयुक्त पुलिस आयुक्त स्तर के अफसर/नाइट जीओ की जिम्मेदारी होती थी कि वो, जरूरत के मुताबिक दिल्ली पर रात के वक्त अपनी पैनी नजर रखें.
बढ़ती भीड़ और क्राइम ने बदलवाई पुलिसिंग
दिल्ली पुलिस मुख्यालय के इस नए आदेश के मुताबिक अब से आईंदा, दिल्ली शहर में मौजूद पुलिस के हर जिले में (दिल्ली में पुलिस के 15 जिले और छह रेंज हैं) एक आईपीएस अधिकारी नाइट ड्यूटी पर तैनात रहेगा. यहां उल्लेखनीय है कि दिल्ली के 15 जिलों में तीन-तीन डीसीपी तैनात रहते हैं. इनमें एक डीसीपी फुलफ्लैश होता है. जबकि उसके साथ दो सहयोगी डीसीपी (एडिश्नल डीसीपी-1 और एडिश्नल डीसीपी-2) तैनात किए जाते हैं. इस नए फरमान के मुताबिक अब इन तीन में से कोई भी एक डीसीपी हर रात अपने जिले में 'नाइट ड्यूटी' देगा. इतना ही नहीं जिले में रात के वक्त अगर कहीं कोई बड़ी आपराधिक घटना अंजाम दे दी जाती है. तो उस घटनास्थल का दौरा करने की जिम्मेदारी भी नाइट ड्यूटी डीसीपी की अनिवार्य कर दी गई है. यह तो बात रही कि महकमे के मुखिया के इस फरमान से आखिर जिलों में तैनात आईपीएस (डीसीपी, एडिश्नल डीसीपी) क्यों हलकान हुए पड़े है?
सौ समस्याओं से ऊपर रहेगा 'जनहित'
मुश्किल यह है कि अब जिलों में तैनात डीसीपी-एडिश्नल डीसीपी स्तर के अधिकारियों के पास, जनहित में जारी पुलिस आयुक्त के इस आदेश को अमल में लाने के सिवाए इससे बचने का कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा है. अब बात करते हैं कि इस आदेश में आखिर वो कौन से बिंदु हैं जिनके चलते दिल्ली के थानों में SHO, Additional SHO पद पर तैनात इंस्पेक्टरों की हालत खराब है. जानकारी के लिए बताना जरूरी है कि, दिल्ली के थानों में तीन इंस्पेक्टर तैनात होते हैं. एक फुलफ्लैश SHO और दो एडिश्नल एसएचओ. फुल एसएचओ थाने का सर्वेसर्वा और सुपरवाइजरी अधिकारी होता है. जबकि दोनो एडिश्नल एचएचओ में से एक को आपराधिक मामलों, कोर्ट-कचहरी संबंधी पड़ताल का कामकाज देखने-संभालने के लिए एडिश्नल एसएचओ इंवेस्टीगेशन के पद पर तैनात किया जाता है.
इसलिए बेहाल हैं थानों के SHO इंस्पेक्टर
जबकि तीसरे इंस्पेक्टर की जिम्मेदारी एडिश्नल एसएचओ के रूप में थाना क्षेत्र की कानून-व्यवस्था देखने की होती थी. यह सब अब आईंदा भी बरकरार रखा जाएगा. बस कमिश्नर के नए आदेश से थानों में तैनात तीनों इंस्पेक्टरों की मुश्किल यह आन पड़ी है कि, अब उन्हें जनहित में जनता के प्रति पहले से कहीं ज्यादा जबावदेह बनने की हिदायत दी गई है. कहा गया है कि अब तक जैसे थाने का एसएचओ खुद थाने में बैठकर मातहत थानेदार, दारोगा, हवलदार सिपाहियों को किसी आपराधिक घटना की कॉल मिलने पर मौके पर भेज देता था. वो सब अब तत्काल बंद करना होगा. अब थाना क्षेत्र में हुई हर आपराधिक घटना के मौका-मुआयना के लिए थाने में तैनात तीन में से किसी भी एक इंस्पेक्टर एसएचो का मौके पर जाना अनिवार्य होगा.
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