दिल्ली-एनसीआर

मौजूदा चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावे को मानने से बीमा कंपनी इनकार नहीं कर सकती, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Deepa Sahu
28 Dec 2021 3:36 PM GMT
मौजूदा चिकित्सा स्थिति का हवाला देकर दावे को मानने से बीमा कंपनी इनकार नहीं कर सकती, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक बार बीमा करने के बाद बीमा कंपनी किसी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देकर दावा देने से इनकार नहीं कर सकती जिसका उल्लेख बीमा करवाने वाले व्यक्ति ने प्रस्ताव फॉर्म में किया है। न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और बीवी नागरत्न की पीठ ने यह भी कहा कि बीमा करवाने वाले का कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में शामिल सभी तथ्यों को बीमा कंपनी के साथ साझा करे।

पीठ ने आगे कहा कि यह माना जाता है कि बीमा लेने वाला व्यक्ति प्रस्तावित बीमा से जुड़े सभी तथ्यों और परिस्थितियों को भलीभांति जानता है। अदालत ने कहा कि जबकि बीमा करवाने वाला व्यक्ति केवल वही जानकारी दे सकता है जिन्हें वह खुद जानता है, उसका कर्तव्य केवल उसके वास्तविक ज्ञान तक सीमित नहीं रह जाता है। पीठ ने कहा कि इस कर्तव्य का दायरा उन भौतिक तथ्यों तक भी विस्तारित है जो सामान्य तौर पर उसे ज्ञात होने चाहिए।
एनसीडीआरसी के आदेश के खिलाफ याचिका पर दिया फैसला
अपने हालिया आदेश में अदालत ने कहा, 'बीमा करवाने वाले की चिकित्सकीय स्थिति का आकलन करने के बाद जब एक बार पॉलिसी जारी कर दी जाती है, बीमा कंपनी किसी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देकर दावा देने से इनकार नहीं कर सकती है, जिसका उल्लेख बीमा करवाने वाले ने प्रस्ताव फॉर्म में किया है।' अदालत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
यह याचिका मनमोहन नंदा ने एनसीआरडीसी के उस आदेश के खिलाफ दायर की है जिसमें इसने अमेरिका में इलाज में आए खर्च के लिए दावे की मांग करने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। नंदा को अमेरिका की यात्रा करनी थी इसलिए उन्होंने एक ओवरसीज मेडिक्लेम बिजनेस और हॉलिडे पॉलिसी खरीदी थी। सैन फ्रांसिस्को पहुंचने पर उन्हें दिल का दौरा पड़ गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा जहां उनकी एंजियोप्लास्टी हुई।
इसके साथ ही उनके हृदय की धमनियों से अवरोध को हटाने के लिए तीन स्टेंट भी डाले गए थे। इसके बाद नंदा ने बीमा कंपनी से इलाज में आए खर्च के लिए दावा किया। लेकिन, बीमा कंपनी ने यह कहते हुए उनके मेडिक्लेम को खारिज कर दिया कि नंदा का हाइपरलिपिडिमिया और मधुमेह का इतिहास था, जिसकी जानकारी उन्होंने बीमा पॉलिसी खरीदते समय नहीं दी था। बीमा कंपनी के इस कदम को मनमोहन नंदा ने एनसीआरडीसी में चुनौती दी थी।
बीमा के दावे को खारिज किया जाना कानून के अनुसार नहीं था
एनसीआरडीसी ने अपने फैसले में कहा था कि नंदा स्टैटिन दवाओं का सेवन कर रहे थे, जिसकी जानकारी उन्होंने पॉलिसी खरीदते समय नहीं दी थी। ऐसे में वह अपनी स्वास्थ्य स्थिति की पूरी जानकारी देने के अपने कर्तव्य का पालन करने में असफल रहे थे। वहीं, शीर्ष अदालत ने मनमोहन नंदा की याचिका पर अपने फैसले में कहा कि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की ओर से पॉलिसी को खारिज किया जाना अवैध था और कानून के मुताबिक नहीं था।
पीठ ने कहा कि मेडिक्लेम पॉलिसी को खरीदने का उद्देश्य अचानक बीमारी या बीमारी के संबंध में क्षतिपूर्ति की मांग करना है जो अपेक्षित नहीं है और विदेशों में भी हो सकती है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'अगर बीमा करवाने वाला व्यक्ति ऐसी किसी बीमारी से अचानक ग्रसित हो जाता है, जिसे पॉलिसी के तहत स्पष्ट रूप से बाहर नहीं रखा गया है तो दावा करने वाले व्यक्ति को उसके खर्चों के लिए क्षतिपूर्ति देना बीमा कंपनी का कर्तव्य है।'
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