- Home
- /
- दिल्ली-एनसीआर
- /
- केंद्र ने हाईकोर्ट से...
केंद्र ने हाईकोर्ट से कहा- कानून जैसा भी है... जानिए पूरा मामला विस्तार से
जनता से रिस्ता वेबडेसक | केंद्र सरकार ने एक बार फिर दोहराया कि भारत में अभी केवल पुरुष और महिला के बीच विवाह की अनुमति है। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर विरोध करते हुए यह तर्क रखा।
केंद्र ने दावा किया कि नवतेज सिंह जौहर मामले को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लेकर कुछ भ्रांतियां हैं, जिसमें समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया, लेकिन शादी की बात नहीं की गई। सुनवाई के दौरान जॉयदीप सेन गुप्ता और स्टीफेंस की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने बताया कि उनके मुवक्किलों ने न्यूयॉर्क में शादी की है और उनके मामले में नागरिकता अधिनियम, 1955, विदेशी विवाह अधिनियम, 1969 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 कानून लागू होता है। उन्होंने कहा नागरिकता कानून विवाहित जोड़े के लिंग पर मौन है, राज्य को केवल पंजीकरण करना है।
30 नवंबर को अगली सुनवाई
मुख्य न्यायधीश डीएन पटेल व न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ अभिजीत अय्यर मित्रा, वैभव जैन, डॉ. कविता अरोड़ा, ओसीआई कार्ड धारक जॉयदीप सेन गुप्ता और उनके साथी रसेल ब्लेन स्टीफेंस द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। पीठ ने फिलहाल सभी पक्षों को अपनी दलीलें पूरी करने के लिए और समय देते हुए सुनवाई के लिए 30 नवंबर तय कर दी। उन्होंने नागरिकता अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि विषमलैंगिक, समान-लिंग या समलैंगिक पति-पत्नी के बीच कोई भेद नहीं करता है। इसमें प्रावधान है कि भारत के एक विदेशी नागरिक से विवाहित एक 'व्यक्ति' जिसका विवाह पंजीकृत है और दो साल से अस्तित्व में है को ओसीआई कार्ड के लिए जीवनसाथी के रूप में आवेदन करने के लिए योग्य घोषित किया जाना चाहिए।
कानून जैसा भी है मात्र पुरुष और महिला के बीच विवाह की अनुमति
वहीं केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि 'स्पाउस' का अर्थ पति और पत्नी है, 'विवाह' विषमलैंगिक जोड़ों से जुड़ा एक शब्द है और इस प्रकार नागरिकता कानून के संबंध में कोई विशिष्ट जवाब दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कानून जैसा भी है मात्र पुरुष और महिला के बीच विवाह की अनुमति है।
क्या समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की अनुमति है?
उन्होंने कहा नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार के मामले के बारे में याचिकाकर्ताओं की गलत धारणा है, जिसने निजी तौर पर वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। उन्होंने कहा कि यहां मुद्दा यह है कि क्या समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की अनुमति है। अदालत को यह तय करना है। इससे पहले केंद्र ने दायर याचिकाओं का विरोध करते हुए हलफनामा दाखिल किया था।
अस्पताल जाने के लिए विवाह प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं
हलफनामे में कहा गया है कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह की संस्था की स्वीकृति को न तो मान्यता प्राप्त है और न ही किसी भी असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानूनों या किसी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में स्वीकार किया गया है। केंद्र ने इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई करने का विरोध करते हुए कहा कि आपको अस्पतालों में जाने के लिए विवाह प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।